Abhishek Bachchan And Chitrangda Singh Movie Bob Biswas Movie Review In Hindi: आपने विद्या बालन (Vidya Balan) स्टारर फिल्म कहानी (2012) देखी है तो बॉब बिस्वास को नहीं भूले होंगे. सहज मुस्कान और सादा-सा दिखने वाला बीमा एजेंट. जो पलक झपकते साइलेंसर युक्त पिस्तौल से शिकार के माथे पर गोली मारता है और उसके चेहरे पर शिकन तक नहीं आती. बॉब कहता है, क्लाइंट और मौत कभी भी बुला सकते हैं. जी5 पर रिलीज हुई फिल्म इसी बॉब बिस्वास की कहानी है. फिल्म कहानी में बॉब जितना दिखा था, उसके पीछे की कहानी. कौन है बॉब, क्या है उसका अतीत, उसका परिवार, उसके दोस्त, उसके दुश्मन. उसकी रहस्यमयी दुनिया. कहानी के लेखक-निर्देशक सुजॉय घोष ने बॉब बिस्वास लिखी है परंतु निर्देशन उनकी बेटी दीया अन्नपूर्णा घोष ने किया है. बतौर निर्देशक दीया की यह फिल्म है, जिसे शाहरुख खान (Shahrukh Khan) की कंपनी रेड चिलीज ने प्रोड्यूस किया है. इस फिल्म से बॉलीवुड में एक और ऐक्टर-किड समारा तिजोरी (Samara Tijori) ने डेब्यू किया है. वह दीपक तिजोरी की बेटी हैं. अमिताभ (Amitabh) और जया बच्चन (Jaya Bachchan) के बेटे अभिषेक बच्चन (Abhishek Bachchan) बॉब बिस्वास (Bob Biswas) के रोल में हैं. फिल्म कहानी में बॉब बिस्वास की भूमिका बांग्ला अभिनेता स्वास्तिक चटर्जी ने निभाई थी.
कहानी में बॉब बिस्वास ने अपने अंदाज से दर्शकों का ध्यान खींचा था और उसे जबर्दस्त लोकप्रियता मिली. वह वास्तविकता के नजदीक सनकी हत्यारा था. हालांकि बॉब की इस बैक स्टोरी में उतनी धार नहीं दिखती और उसकी जिंदगी की धुंध भी पूरी तरह नहीं छंटती. बॉब बिस्वास शुरू होती है कोलकाता में, जब वह अस्पताल से बाहर निकलता है. पत्नी मैरी (चित्रांगदा सिंह) और नन्हा बेटा बेनी उसे लेने आए हैं. कॉलेज में पढ़ने वाली बेटी मिनी (समारा तिजोरी) घर पर है. आठ साल पहले एक हादसे में बॉब कोमा में चला गया था. अब उसे कुछ याद नहीं. डॉक्टर का कहना है कि बॉब जिंदगी में लौटेगा तो यादें भी लौट आएंगी. बॉब की वापसी का स्पेशल क्राइम ब्रांच वालों को भी इंतजार है. वह उसे बाहर आते ही लपक लेते हैं. पता चलता है कि बॉब उनके लिए हत्याएं किया करता था. एक बार फिर क्राइम ब्रांच के लोग उसे पहले की तरह इस्तेमाल करते हैं. महानगर में ब्लू नाम के नशीले ड्रग्स का कारोबार करने वालों के सफाए के लिए. यहां से कुछ पेच फंसते हैं, जिनमें बॉब की जिंदगी उलझती जाती है. बॉब के सामने अनसुलझे सवाल पैदा होते हैं कि क्यों उसने पहले लोगों को मारा, कितनों को मारा, मरने वाले कौन थे, उन्हें मारने से क्या मिला. क्या वह जान पाएगा कि वह क्यों हत्याएं करता है. मगर इन सवालों को छोड़ बॉब परिवार के साथ सुखी जीवन जीना चाहता है. क्या ऐसा हो पाता है. फिल्म यही बताती है.
बॉब बिस्वास की शुरुआत अच्छी है. आपको लगता है कि इस सनकी हत्यारे की जिंदगी के रहस्य खुलेंगे. मगर ऐसा नहीं होता. शुरू से अंत तक मालूम नहीं चलता कि किस हादसे की वजह से वह आठ साल कोमा में था. जिस दोस्त की बीवी से उसकी शादी हुई, उस दोस्त की उसने क्यों हत्या की. जिस डॉक्टर अंकल का जिक्र बॉब की बीवी और बेटी अक्सर करते हैं, उसका क्लाइमेक्स झाग जैसा निकलता है. कहानी में अटेंशन डेफिशियेंसी दूर करने के लिए बनाए गए ड्रग ब्लू के गैर-कानूनी कारोबार का ट्रैक और बॉब की कहानी समानांतर चलते हैं. अंत में दोनों का मिलान रोमांच नहीं पैदा करता. जो फिल्म शुरू में आकर्षित करती है, महसूस कराती है कि कुछ नया मिलेगा, वह आखिर तक 1970-80 के फिल्मी फॉर्मूलों में उलझ जाती है. कहानी का नशा उतर जाता है.
फिल्म में कुछ देखने जैसा है तो अभिषेक बच्चन और चित्रांगदा सिंह. यह शायद अभिषेक का भाग्य है कि उन्हें अक्सर मजबूत किरदार मिलने पर कहानी कमजोर रह जाती है. यहां बॉब बिस्वास ठोस किरदार है, जो रोमांच पैदा करते-करते कहानी के ढर्रे से मेच हो जाता है. उसमें नया करंट नहीं बहता. आप पहले से जान जाते हैं कि वह आगे क्या करेगा, कैसे करेगा. बावजूद इस लेखकीय कमजोरी के अभिषेक ने अच्छा काम किया है. प्रोस्थेटिक्स, मेकअप और हेयर स्टाइल ने भी उनके किरदार को संवारा है.
चित्रांगदा पहली फिल्म हजारों ख्वाहिशें की तरह खूबसूरत लगी हैं. आप उन्हें और देखना चाहते हैं. मगर लेखक-निर्देशक ने उनके किरदार को आयाम नहीं दिए. बाकी कलाकारों ने अच्छा काम किया है. रहस्यमयी दवा विक्रेता काली दा के रोल में परम बंदोपाध्याय याद रहते हैं. बॉब बिस्वास की बेटी के रूप में समारा तिजोरी और पुलिस इंस्पेक्टर इंदिरा वर्मा बनीं टीना देसाई ने भी अपनी भूमिका सही ढंग से निभाई हैं. दीया अन्नपूर्णा घोष का डेब्यू निर्देशन विद्या बालन की फिल्म कहानी के सहारे पर टिका है. उन्हें स्वतंत्र और नई कहानी में अपनी प्रतिभा दिखानी होगी. वह सुजॉय घोष की बेटी हैं तो मना जा सकता है कि आगे प्रोड्यूसर भी मिलेंगे और प्लेटफार्म भी.
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