Chandu Champion Review: कुछ फिल्में सिर्फ फिल्में नहीं होती, आप पर गहरा असर छोड़ जाती हैं. आपको जिंदगी में आगे बढ़ने का जज्बा दे जाती हैं, वो दे जाती हैं जिसकी आपको तलाश होती है. इन दिनों मोटीवेशन हर किसी को चाहिए. कहीं न कहीं हर कोई खुद को आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहा है और आपको एक वो पुश चाहिए होता है जो इसमें आपकी मदद करे. ये फिल्म आपको वो पुश देती है.
कहानी
कोई व्हीलचेयर पर हो, चल फिर न सकता हो, लेकिन फिर भी वो देश के लिए ओलंपिक में गोल्ड ले आए तो उस हीरो की कहानी देश को जाननी चाहिए और ऐसे ही हीरो मुरलीकांत पेडकर की कहानी है चंदू चैंपियन. बचपन से मुरलीकांत का एक ही सपना था, देश के लिए Olympic में गोल्ड मेडल लाना. इस वजह से उसका मजाक उड़ता था लेकिन वो डटा रहा. पहलवानी शुरू की, उस चक्कर में कुछ लोग जान के दुश्मन बन गए. घर छोड़ा, सेना में भर्ती हुआ, फिर बॉक्सिंग की, फिर एक जंग में गोलियां लगी तो paralyse हो गया लेकिन फिर भी स्विमिंग में देश के लिए paralympic में गोल्ड मेडल लाया. ये कहानी सच्ची है और ये कहानी देखनी चाहिए. ये कहानी देश को पता होनी चाहिए.
कैसी है फिल्म
ये एक ऐसी फिल्म है जो आपके अंदर एक अलग जज्बा भर देगी, अगर मोटिवेशन ढूंढ रहे हैं तो इस फिल्म को देख लीजिए बस. शुरुआत से ही फिल्म कमाल है, आपको बांध लेती है, मुरलीकांत की कहानी में आप उसके साथ हो लेते हैं. गांव के सीन काफी अच्छे लगते हैं, बीच में एक आध गाना थोड़ा अखरता है लेकिन इतना नहीं कि फिल्म में आपकी दिलचस्पी कम हो जाए. फर्स्ट हाफ कमाल का है, सेकेंड हाफ थोड़ा स्लो है लेकिन उसकी वजह ये भी है कि वहां व्हीलचेयर पर बैठे मुरली की तकलीफ को कायदे से दिखाना जरूरी था और जल्दी में वो दर्द कहीं छूट सकता था. फिल्म आपको रुलाती है, इमोशनल करती है, हंसाती है, एंटरटेन करती है और बताती है की जिंदगी में हम कई बार बहाने बनाते हैं किसी काम को न करने के लेकिन मुरलीकांत ने तो व्हीलचेयर पर ये कमाल कर दिया और आप एक नए जोश के साथ थियेटर से बाहर आते हैं.
एक्टिंग
कार्तिक ने अपने करियर का बेस्ट दिया है. उन्होंने फिल्म को 2 साल से ज्यादा का वक्त दिया और वो मेहनत दिखती है. चाहे वो एथलीट जैसी बॉडी हो या फिर मराठी लहजा. कार्तिक ने कमाल का काम किया है, उन्होंने मुरलीकांत की उम्र के हर पड़ाव को शानदार तरीके से निभाया है. देश के हीरो पर बनी इस फिल्म के लिए वो नेशनल अवॉर्ड के हकदार हैं. विजय राज ने कार्तिक के सीनियर और उनके कोच के किरदार में जानदार काम किया है, वो हर सीन में लाजवाब हैं. जरनेल सिंह बने भुवन अरोड़ा की एक्टिंग अच्छी है. पुलिसवाले के छोटे से किरदार में श्रेयस तलपड़े ने जान डाल दी है. कंपाउंडर बने राजपाल यादव ने बड़े कमाल तरीके से इस किरदार को निभाया है. बृजेंद्र काला ने एक छोटा सा किरदार निभाया है एक क्रिमिनल का, लेकिन एक अच्छा कलाकार छोटे से किरदार में भी कमाल कर सकता है और उन्होंने कर दिखाया है. यशपाल शर्मा का काम अच्छा है, पत्रकार बनीं सोनाली कुलकर्णी ने भी अच्छा काम किया है.
डायरेक्शन
कबीर खान ने इस फिल्म पर 2 साल से ज्यादा का वक्त दिया और वो दिखता है. फिल्म पर उनकी रिसर्च और पकड़ अच्छी है. वो मुरलीकांत जैसे हीरो की कहानी सामने लेकर आए इसके लिए उनकी तारीफ की जानी चाहिए. कुछ जगह उन्होंने फिल्म मेकर के तौर पर छूट ली है और ये जायज है.
कुल मिलाकर ये शानदार फिल्म है, देख डालिए.
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