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City Of Dreams 2 Review: कुर्सी के लिए घर में मचे महाभारत की कहानी, पैसे और पावर के लिए बहता अपनों का खून

City Of Dreams 2 Review: निर्देशक नागेश कुकनूर की वेब सीरीज सिटी ऑफ ड्रीम्स के दूसरे सीजन में पैसे और कुर्सी दोनों का पावर नजर आता है. राजनीतिक थ्रिलर पसंद करने वालों को इसमें मजा आएगा.

City Of Dreams 2 Review: राजनीतिक फिल्में बनाना निर्माता-निर्देशकों के लिए भले ही आसान काम नहीं रहा लेकिन ओटीटी प्लेटफॉर्मों ने इधर धीरे-धीरे स्थिति को बदला है. राजनीतिक कथानक यहां लगातार आ रहे हैं और उन्हें कमोबेश पसंद भी किया जा रहा है. गुजरे दो-ढाई वर्षों में मोदीः जर्नी ऑफ अ कॉमन मैन (इरॉस), क्वीन (एमएक्स प्लेयर), डार्क 7 व्हाइट (आल्ट बालाजी) से लेकर तांडव (अमेजन) ऐसी ही विशुद्ध राजनीतिक कहानियों वाली वेब सीरीज हैं. 2019 में डिज्नी हॉटस्टार पर आई सिटी ऑफ ड्रीम्स भी कुर्सी के लिए होने वाली राजानीतिक-पारिवारिक जंग की कहानी थी. अब यह ओटीटी इस महाभारत को आगे बढ़ाते हुए इसका दूसरा सीजन लेकर आया है.

वेब सीरीज महाराष्ट्र की राजनीतिक पृष्ठभूमि पर है और इसमें गायकवाड़ परिवार के अंदर छल-कपट, खून-खराबा हो रहा है. पिछले सीजन में महाराष्ट्र जनशक्ति पार्टी के ‘साहेब’ (अतुल कुलर्णी) पर गोलियां चली और उनके जिस्म से बहते खून के फौवारों के बीच, वारिस की गद्दी के लिए बेटे नशेड़ी आशीष और महत्वाकांक्षी बेटी पूर्णिमा के बीच तलवारें खिंची. नतीजा यह कि पूर्णिमा ने भाई का कत्ल करा दिया और राज्य की मुख्यमंत्री बन गई.

City Of Dreams 2 Review: कुर्सी के लिए घर में मचे महाभारत की कहानी, पैसे और पावर के लिए बहता अपनों का खून

दूसरा सीजन सपनों के शहर मुंबई में होने वाली राजनीति के दांव-पेंच से भरा है. साहेब के लिए बेटे की हत्या और पूर्णिमा (प्रिया बापट) का मुख्यमंत्री बनना किसी दुस्वप्न की तरह है. वह मानते हैं कि पुत्र ही कुल को आगे बढ़ाता है. इस तरह पिता अपनी पुत्री का दुश्मन बन जाता है. पूर्णिमा साहेब के तमाम पुराने सहयोगियों को अपने साथ मिला लेती है परंतु जानती है कि ‘बाबा के पास बैक-अप का भी बैक-अप प्लान होता है.’ इसलिए इस शेर को हमेशा के लिए मांद में रहने को मजबूर करना आसान नहीं होगा.

दोनों के टकराव कहानी को रोचक ढंग से आगे बढ़ाते हैं. हालांकि पूर्णिमा की जिंदगी सीधी-सरल नहीं है. उसके किरदार में चौंकाने वाले शेड्स हैं. वह शादीशुदा और एक किशोरवय बेटे की मां है लेकिन अचानक दुनिया का सामने आता है कि उसने कॉलेज के दिनों में छुप पर मंदिर में युवा राजनेता महेश अरावले से शादी की थी क्योंकि दोनों प्यार में थे. इतना ही नहीं, कहानी नवयौवन काल में पूर्णिमा के समलैंगिक रुझान को भी सामने लाती है.


City Of Dreams 2 Review: कुर्सी के लिए घर में मचे महाभारत की कहानी, पैसे और पावर के लिए बहता अपनों का खून

सिटी ऑफ ड्रीम्स के केंद्र में पिता-पुत्री की जंग है, जो कुर्सी के लिए लड़ी जा रही है. पुत्री ने राज्य की जनता को बता रखा है कि साहेब बिस्तर पर घर में हैं और उनके आशीर्वाद से ही वह सरकार चला रही है. दूसरी तरफ साहेब न केवल अगले चुनाव में बेटी को हराने के लिए विरोधियों को उकसा रहे हैं, बल्कि उनसे हाथ मिला रहे हैं, पैसा पानी की तरह बहा रहे हैं और दंगे कराने का षड्यंत्र रच रहे हैं. वह स्वस्थ होकर जोरदार कमबैक के लिए भी तैयार हैं. इस लड़ाई में गायकवाड़ परिवार भले ही कुर्सी पर कब्जा बनाए रखता है लेकिन वह कितना कुछ खोता है, यहां देखा जा सकता है.
City Of Dreams 2 Review: कुर्सी के लिए घर में मचे महाभारत की कहानी, पैसे और पावर के लिए बहता अपनों का खून

सीरीज में मुंबई में पुल गिरने की घटना, मैट्रो रेल परियोजना और अपराधियों का एनकाउंटर करने वाले पुलिस अफसर के पॉलिटिकल पार्टी में शामिल होने जैसी बातों को राजनीतिक दांव-पेंच के साथ इस्तेमाल किया गया है. टेलीविजन मीडिया कैसे हास्यास्पद हो चला है, उसकी ‘बाइट्स’ भी यहां खूब निखर कर आई हैं. इस सीरीज में लालची मगर प्रभावशाली औद्योगिक घरानों और धन-पशु-अपराधियों के साथ राजनीति का रिश्ता भी उभर कर आता हैं. सीरीज का मैसेज साफ हैः पैसा ही पावर है.

औसतन 40 से 45 मिनट की नौ कड़ियों वाली यह वेब सीरीज रोचक है और शुरू से अंत तक बांधे रखती है. अतुल कुलकर्णी और प्रिया बापट का एक-दूसरे पर वार-पटलवार कसी हुई पटकथा के कारण संभव हो सका. पूर्णिमा का लुक भले ही यहां सादगी भरा है लेकिन उसके किरदार में तमाम रंग उसे आकर्षक बनाए रखते हैं. राजनेता के साथ बेटी, पत्नी और मां के रूप में प्रिया बापट ने बढ़िया अभिनय किया है. अतुल कुलकर्णी शानदार हैं. एजाज खान, सचिन पिलगांवकर, सुशांत सिंह और फ्लोरा सैनी समेत अन्य सहयोगी कलाकारों ने अपनी भूमिकाएं सहज ढंग से निभाई हैं. वे समय-समय पर कहानी को सहारा देते हुए आगे बढ़ाते हैं.

यह जरूर है कि आज की असली राजनीति की तरह यहां भी विपक्ष बहुत लचर है. सत्ता पर पैनी नजर रखने या बड़ी चुनौती देने की क्षमता उसमें सिटी ऑफ ड्रीम्स में भी नहीं दिखती. एक सक्रिय, तार्किक और मजबूत विपक्ष जैसे देश के लिए जरूरी है, वैसा ही कहानी में भी चाहिए. इसकी कमी जरूर वेब सीरीज में अखरती है. सीरीज मुंबई में शूट की गई है और नागेश कुकनूर का निर्देशन कसा हुआ है. कैमरावर्क बढ़िया है और संपादन इक्का-दुक्का मौकों को छोड़ कर ढील नहीं आने देता. जिन दर्शकों की रुचि राजनीतिक थ्रिलर में है, वह सिटी ऑफ ड्रीम्स के दूसरे सीजन से रोमांचित होंगे.

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