Collar Bomb Review: जिंदगी आपके फैसलों का एक सिलसिला. जैसे फैसले लेंगे, वैसी जिंदगी बनेगी. कभी ऊपर जा सकते हैं और कभी नीचे आ सकते हैं. इस तरह जिंदगी सांप-सीढ़ी का खेल भी है. लेकिन खास बात यह है कि जिंदगी के इन फैसलों की राहों से आपके अपनों और परायों की गाड़ियां भी गुजरती हैं. इससे अच्छा-बुरा घटता है. निर्देशक ज्ञानेश झोटिंग की फिल्म ‘कॉलर बम’ इसी बात को साबित करने की कोशिश करती है. डिज्नी-हॉटस्टार पर रिलीज हुई यह थ्रिलर शुरू से अंत तक बांधे रहती है. हिमाचल प्रदेश के सनावर में तैनात पुलिस अधिकारी मनोज हेसी (जिमी शेरगिल) का एक गलत काम उसके साथ कइयों को मुश्किल में डाल देता है. शहर के सबसे बड़े स्कूल, सेंट जॉर्ज में एक बच्ची के लिए शोक सभा हो रही है कि तभी वहां एक आत्मघाती हमलावर अली (स्पर्श श्रीवास्तव) पहुंच जाता है. उसने विस्फोटकों से लदा जैकेट पहन रखा है. विस्फोट अलग-अलग कोड वर्ड से डिफ्यूज हो सकते हैं. बम फटने में सिर्फ एक घंटे का समय है. क्या चाहता है आत्मघाती हमलावर? सारा रहस्य इसी सवाल के इर्द-गिर्द बुना गया है.


कहानी अलग-अलग मोड़ लेती है. कभी लगता है कि यह आतंकी हमला है और कभी हिंदू-मुस्लिम जैसा रंग दिखता है. कहानी जैसे-जैसे बढ़ती है, कुछ लोगों की निजी जिंदगियां भी इसमें शामिल होती जाती है. हत्याएं होती हैं और कुछ हत्या की कोशिशें. दर्शक लगातार सोच में रहता है कि आखिर हो क्या रहा है? क्यों हो रहा है? ज्ञानेश झोटिंग ने 2018 में मराठी फिल्म बनाई थी, राक्षस. इस सस्पेंस थ्रिलर को बहुत सराहा गया था. सस्पेंस और थ्रिल ‘कॉलर बम’ में भी है और 87 मिनिट की फिल्म सधे अंदाज में आगे बढ़ती है. फिल्म का अंत हालांकि बहुत उत्साहित नहीं करता और न अधिक चौंकाता है. बावजूद इसके ओटीटी पर थ्रिलर फिल्मों का अच्छा खासा दर्शक वर्ग है और उसे यह पसंद आएगी.


जिमी शेरगिल के फैन्स की संख्या भी अच्छी खासी है. जो उन्हें खास तौर पर पुलिस या फौजी वर्दी में पसंद करती है. यहां, अ वेडनस डे, स्पेशल 26 और मदारी जैसी फिल्मों में जिमी वर्दी में आए हैं. मगर इस फिल्म में खास यह है कि मनोज हेसी का 13 साल का बेटा (नमन जैन/चिल्लर पार्टी) भी है और कहानी में दोनों के रिश्तों की बनावट-बुनावट देखी जा सकती है. जिमी शेरगिल का लंबा फिल्मी करिअर है, जिसमें वह खामोशी से आगे बढ़ते रहे हैं और इधर उन्होंने खुद को ओटीटी पर भी जमा लिया है. इससे पहले रंगबाज, रंगबाज फिर से और योर ऑनर जैसी सीरीजों में आ चुके हैं. राजश्री देशपांडे (मॉम, मंटो, द स्काई इज पिंक, कनपुरिये, चोक्ड) फिल्म में देर से सक्रिय होती हैं और अपने रंग में आकर असर छोड़ती हैं. जबकि आशा नेगी (एएसआई स्मृति) को लंबा स्क्रीन टाइम मिला है. वह अपने किरदार से न्याय कर पातीं अगर इस रोल को बेहतर ढंग से लिखा जाता. उनके साथ एक और समस्या दिखती है कि वह बोल-चाल की पहाड़ी टोन को ठीक ढंग से नहीं पकड़ पाईं. नेटफ्लिक्स के जामताड़ाः सबका नंबर आएगा के स्टार स्पर्श श्रीवास्तव यहां लगभग कहानी के केंद्र में हैं, लेकिन उसमें ऐसी बात नहीं कि आप याद रख सकें. अतः उनके फैन्स को निराशा हाथ लगेगी. स्पर्श के किरदार की सबसे बड़ी खामी यह है कि महत्वपूर्ण होने के बावजूद उसमें परतें नहीं हैं और वह बेहद सपाट है. इसमें भी बेहतरी की गुंजयाश थी.


फिल्म में लेखन का विभाग निखिल नायर, निसर्ग मेहता और गौरव शर्मा ने संभाला है. ‘कॉलर बम’ कहीं पिछड़ती है तो अपनी कथा-पटकथा और संवादों में. फिल्म की रफ्तार और संपादन कसे हुए हैं. कैमरावर्क भी अच्छा है. हिलस्टेशन की खूबसूरती इसमें नजर आती है. यही वजह है कि इसे डेढ़ घंटे से कम समय में देखना नहीं अखरता. पूरी कहानी में फिल्म का हीरो स्कूल के बच्चों को बचाने के लिए एक अनजान कॉलर द्वारा दिए गए तमाम टास्क पूरे करने के लिए यहां से वहां दौड़ता है. अगर एक भी टास्क पूरा नहीं हुआ, तो बच्चों की जान चली जाएगी. ‘कॉलर बम’ का एकमात्र संदेश यह है कि किसी को भी जाति-धर्म और रूप-रंग से देख कर उसके बारे में फैसला लेना गलत है. गलत फैसले जिंदगियों को गलत रास्ते पर बढ़ा देते हैं. खास तौर पर ऊंची जगहों पर बैठे लोग यह गलत काम करते हैं. कॉलर बम उनके लिए सबक है.