Crime Stories-India Detectives Review: किसी अपराध के लिए गिरफ्तार या संदिग्ध व्यक्ति अदालत में अपराधी सिद्ध होने तक निर्दोष माना जाता है. कानून की किताब में सबसे ऊपर लिखा यह वाक्य अक्सर भारत के पुलिस थानों में घुटने टेके नजर आता है. आम धारणा है कि पुलिस का डंडा और गालियां गिरफ्तार या संदिग्ध व्यक्ति को अदालत से पहले अपमानित और प्रताड़ित करती है. क्या यही है पुलिस के काम करने का तरीका? नेटफ्लिक्स की ताजा डॉक्यु सीरीज पुलिस का दूसरा चेहरा आपके सामने लाने की कोशिश करती है. कैसे आम आदमी की सुरक्षा और उसे न्याय दिलाने के लिए बनी पुलिस केस सुलझाती है? थाने में दिन-रात काम करते पुलिसवाले, अपराधियों को पकड़ने के लिए कितना पसीना बहाते हैं?


भारतीय पुलिस के संदर्भ में क्राइम स्टोरीजः इंडिया डिक्टेटिव्स एक रोचक सीरीज है, जिसे अवश्य देखना चाहिए. यह पहला सीजन है. हिंदी के साथ कन्नड़, तमिल, तेलुगु और अंग्रेजी में भी. सीरीज में दक्षिण भारत के राज्य कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरू की पुलिस को चार एपिसोड में चार अलग-अलग केस सुलझाते दिखाया गया है. भले ही यहां संदिग्धों को जेल तक पहुंचाया गया मगर अदालत में उनका अपराध साबित होना शेष रह जाता है. फिर भी कमोबेश जो तस्वीरें आती हैं, वे यही दिखाती हैं कि पुलिस ने वास्तविक अपराधी को दबोच लिया है. यहां चार में से तीन केस निम्न-मध्यमवर्ग के और चौथा फुटपाथ पर रहने वाले गरीब का है. पहले तीन मामले जहां हत्या के हैं, जिसमें पुलिस हत्यारे की तलाश में है, वहीं चौथा डेढ़ साल की बच्ची के अपहरण का है.




2018 से 2020 तक के नेशनल क्राइम ब्यूरो के रिकॉर्ड बताते हैं कि देश में हर साल औसतन 28 हजार हत्याएं होती हैं. औसतन 80 प्रतिदन. हर केस को सुलझा पाना आसान नहीं है. जबकि कई में हत्यारे बेहद शातिर होते हैं. क्राइम स्टोरीजः इंडिया डिक्टेटिव्स का कैमरा हत्या की खबर का कॉल आने से लेकर अपराधी को पड़ने तक बंगलुरू पुलिस के समानांतर चलता है और अपराधी की तलाश की पूरी प्रक्रिया थ्रिलर फिल्म जैसी बन जाती है. हत्या को लेकर दो सबसे अहम सवाल होते हैं. हत्या किसने की और हत्यारे की मंशा क्या थी?


सीरीज में पहला केस एक बेटी द्वारा मां की हत्या और भाई पर जानलेवा हमले का है. युवती फरार है. दूसरे केस में पत्नी और सास के साथ ससुराल में रहे व्यक्ति के मर्डर का है. लाश कॉलोनी की सड़क पर मिली. मृतक की मां और भाई का आरोप है कि पत्नी तथा सास ने मिलकर हत्या की. तीसरी हत्या एक महिला सेक्स वर्कर की है. हत्यारे का कोई सुराग नहीं है. चौथा मामला सड़क पर गुब्बारे बेचने वाले की दुधमुंही बेटी के अपहरण का है. वह पुलिस को बताता है कि किस पर शक है. पुलिस संदिग्ध युवक को गिरफ्तार कर पूछताछ करती है. दुखद यह है कि बच्चों के अपहरण के ज्यादातर मामले में निर्णायक सफलता नहीं मिलती. क्या बंगलुरू पुलिस को सफलता मिलेगी?


अपराध हमारे समाज, वर्तमान और इंसान की मनोदशा की खबर देते हैं. क्राइम स्टोरीजः इंडिया डिक्टेटिव्स में आप यह साफ देख सकते हैं. बेटी द्वारा मां की हत्या का केस खुलता है तो बताता है कि बेंगलुरू जैसे ग्लोबल चरित्र में ढलते शहर में रहने का दबाव कितना है! सफलता, पैसा और ग्लैमर पीछे छूटने वालों को ऐसे मुंह चिढ़ाते हैं कि उनका मानसिक और भावनात्मक संतुलन हिल जाता है. आधुनिक लाइफस्टाइल का दबाव संवेदनाओं को कुचल देता है. पराजित व्यक्ति दुनिया में जीना ही नहीं चाहता. वहीं सड़क पर मिली व्यक्ति की लाश का रहस्य जब खुलता है तो सामने आता है कि लोग कैसे आज आधुनिक तकनीक का गलत इस्तेमाल करने से नहीं हिचकिचाते. इसके नुकसान फिर खतरनाक ढंग से सामने आते हैं. सेक्स वर्कर की हत्या का केस हैरान करता है. यह किसी थ्रिलर कहानी से कम नहीं. कहानी इसलिए कि खुद पुलिस कहती हैः अपराध की सच्ची कहानी ही हमें मुजरिम तक लेकर जाती है.


ये चारों केस बताते हैं कि पुलिस की जांच-पड़ताल का कोई पक्का तौर-तरीका नहीं होता. सीरीज में ऐसे भी क्षण आते हैं जब पुलिस अधिकारी शूट करने वाले कैमरों से कहते हैं कि दस मिनिट के लिए जरा ऑफ कीजिए, हम संदिग्ध से ‘अपने अंदाज से’ पूछताछ कर लें. वास्तव में क्राइम स्टोरीजः इंडिया डिक्टेटिव्स हमारी पुलिस का ऐसा चेहरा सामने लाती है, जहां उसकी संवेदनाएं भी उभरती हैं. उनके परिवार हैं. पत्नी-पति-बच्चे हैं. एक पुलिस अफसर कहता है कि किसी मर्डर की सूचना पर उसे लगता है कि उसके ही परिवार के किसी व्यक्ति की हत्या हो गई. सेक्स वर्कर की हत्या का केस लीड करने वाली महिला अफसर पेशा करने वाली महिलाओं से घृणा करती है लेकिन हत्यारे को पकड़ने के लिए 10-12 दिन की भागदौड़ और ऐसी महिलाओं से नियमित संपर्क-बातचीत उसका हृदय परिवर्तन कर देती है. यहां आप पाते हैं कि पत्थर दिल दिखने वाली खाकी की आंखें भी कभी-कभी नम हो जाती हैं. अपने मनुष्य होने के बावजूद पुलिस संवेदनाओं को हावी नहीं होने देती, क्राइम सीन पर विचलित नहीं होती, भावुकता को नियंत्रित रखती हैं क्योंकि समाज में अपराध को रोकना उसका काम है. पुलिस अपराधी को पकड़ती है ताकि जिसके प्रति अपराध हुआ, उसे इंसाफ दिला सके.


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