Dange Review: शाहरुख की 'जोश' याद है? वैसी ही स्टाइलिश फिल्म है ये, इस वीकेंड आपकी 'मस्ट वॉच' लिस्ट में शामिल हो सकती है 'दंगे'
Dange Review: इस वीकेंड आप अगर ओटीटी पर कुछ देखना चाहते हैं, तो 'दंगे' की लिस्ट में शुमार हो सकती है. इससे पहले कि आप फिल्म देखें जान लीजिए कि ये फिल्म है कैसी?
बिजॉय नांबियार
हर्षवर्धन राणे, एहान भट्ट
Netflix
Dange Review: बैकग्राउंड में बजते इलेक्ट्रिक गिटार और गूजबंप देने वाले म्यूजिक के साथ गैंग्स का आपस में भिड़ना. हर बात में एटीट्यूड झलकना और कपड़ों से लेकर बात करने के तरीके तक, हर चीज में टशन होना. ये सब कुछ स्क्रीन में देखना पसंद करते हैं तो बिजॉय नांबियार के निर्देशन में बनी फिल्म 'दंगे' आपके लिए ही बनाई गई है.
थिएटर में 1 मार्च को रिलीज हुई फिल्म 'दंगे' अब नेटफ्लिक्स पर 1 मई से स्ट्रीम हो रही है. इस वीकेंड आपको एंटरटेन करने के लिए एक बेहतरीन फिल्म हो सकती है. इससे पहले कि आप फिल्म देखने का मन बनाएं, फिल्म के बारे में जान लेते हैं.
कहानी:
कहानी गोवा के एक कॉलेज की है. जहां सीनियर-जूनियर के बीच संघर्ष है, रैगिंग है, जातिवाद है. इसके अलावा, नशा, मस्ती और गैंगवार भी है. फिल्म में दोस्ती और प्यार के साथ-साथ छात्र राजनीति भी है. कहानी के दो सेंटर हैं पहला सीनियर जेवियर (हर्षवर्धन राणे) और दूसरा युवा (एहान भट्ट). दोनों के बीच वैसी ही दुश्मनी है जैसी 'जोश' के 'मैक्सी'और 'प्रकाश' के बीच थी. दोनों के बीच दुश्मनी की वजह है जो उनके बचपन से जुड़ी है. युवा अपना बदला लेना चाहता है जिसकी आग में वो कॉलेज के फ्रेशर्स को झोंक देता है. तो वहीं जेवियर अपने ईगो के लिए सीनियर्स की पूरी सेना बना लेता है. इसके बाद, फिल्म में दंगे जैसा माहौल बनता जाता है.
कैसी है फिल्म?
विजुअली कैप्टिवेटिंग है ये फिल्म. अगर आपको कॉलेज लाइफ पर बनी फिल्में पसंद हैं तो देखने में मजा आएगा. कॉलेज कैंपस और हॉस्टल में क्या-क्या होता है, ये सब कुछ फिल्म का हिस्सा है. हालांकि, फिल्म में कई सारी छोटी-छोटी कहानियां और सोशल मैसेज देने का प्रेशर भी मेकर्स पर दिखता है. जिस वजह से फिल्म थोड़ी-थोड़ी देर में भटकी हुई लगती है. लेकिन बिजॉय नांबियार के डायरेक्शन का कमाल ये है कि फिल्म में ये सारे लूपहोल्स होने के बावजूद वो दर्शकों को बार-बार कहानी से जोड़ते दिखे हैं.
डायरेक्शन
फिल्म को 'वजीर', 'शैतान (2011)' और 'तैश' जैसी फिल्में बनाने वाले डायरेक्टर बिजॉय नांबियार ने निर्देशित किया है. फिल्म में उनकी पूरी छाप है. कमाल बात ये है कि फिल्म देखते समय बार-बार भटकने के बावजूद दर्शक घूम-फिरकर कहानी को इंजॉय करने पर मजबूर हो जाता है. स्टूडेंट के बीच टशन और ईगो की जंग को उन्होंने सजीव तरीके से पर्दे पर उकेरा है. स्टोरीटेलिंग का तरीका बेहद खास है. अगर आपने हॉस्टल में कुछ दिन गुजारे होंगे तो आप खुद को उनकी स्टोरीटेलिंग से कनेक्ट कर पाएंगे.
एक्टिंग
हर्षवर्धन राणे को लेकर बिजॉय ने इसके पहले साल 2020 में आई 'तैश' बनाई थी. इस फिल्म में भी बिजॉय ने राणे को तैश वाले अंदाज में ही पेश किया है. स्टाइलिश जेवियर के रूप में वो फबे हैं. इसके अलावा, युवा के किरदार में एहान भट्ट ने ठीक काम किया है, लेकिन माइंडगेम खेलते एहान कहीं-कहीं एक्सप्रेशन देने के मामले में चूकते हुए दिखे हैं. इसके अलावा, टीजे भानू और निकिता दत्ता ने भी अच्छा काम किया है. दोनों कॉन्फिडेंट दिखी हैं. सबसे ज्यादा नजर अगर किसी पर ठहरती है तो वो हैं कालिदास जयराम जिन्होंने सीनियर स्टूडेंट के रोल में जान फूंकी है.
फिल्म क्यों देखें और क्यों नहीं?
- साल 2000 में शाहरुख खान की फिल्म 'जोश' आई थी. गैंगवार पर बनी इस फिल्म में झगड़े को जिस स्टाइलिश तरीके से दिखाया गया था, उसे पर्दे पर पसंद करने वालों की कमी नहीं है. ये फिल्म भी कई मामलों में 'जोश' की नई पैकेजिंग लगती है. या यूं कहें कि काफी हद तक इंस्पायर्ड लगती है.
- फिल्म की सिनेमैटोग्राफी और कैमरावर्क काफी अच्छा है. ये और अच्छा तब हो जाता है जब इलेक्ट्रिक गिटार और इंग्लिश रैप बैकग्राउंड में सुनाई देते हैं.
- फिल्म में झगड़े के सीन ओरिजनल लगते हैं. उनको बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने के बजाय असली जैसा दिखाने की कोशिश की गई है. हालांकि, वो सीन कैमरावर्क की वजह से असली से भी बेहतर लगते हैं.
- फिल्म में सोशल मैसेज देने का जो प्रेशर है, वो दर्शकों का ध्यान भटकाता है. जाति की राजनीति, पॉलिटिशियन वाला एंगल और छोटी-छोटी प्रेम कहानियां सिर्फ लंबाई बढ़ाने के काम आई हैं, इंट्रेस्ट बढ़ाने के नहीं.
- हालांकि, फिल्म की खास बात ये है कि फिल्म में नए चेहरों का इस्तेमाल कर उनसे बेहतरीन काम लेने की कोशिश की गई है. इसका फायदा ये मिला है कि फिल्म में एक्टर का चेहरा हावी होने के बजाय वो सारे स्टूडेंट्स लगे हैं.