Dhai Aakhar Review: इन दिनों कुछ फिल्में हम देखते नहीं हैं, एक तो वो हम तक पहुंच ही नहीं पाती क्योंकि उनकी मार्केटिंग इतनी नहीं की जाती क्योंकि बजट कम होता है. और दूसरा अगर हमें पता चल भी जाए तो भी हम सोचते हैं कि बड़े स्टार्स वाली बड़ी फिल्में देखेंगे भले उन्हें देखकर बाल नोचते हुए थिएटर निकलें, और उन फिल्मों की मार्केटिंग इस तरह से की जाती है कि कई बार आप इसी वजह से वो फिल्में देख लेते हैं कि सब पूछेंगे कि अब तक नहीं देखी. फिर लगता है कि फलाने पैपराजी पेज पर तो लिखा था ये कमाल की फिल्म है, 4 स्टार भी दिए थे लेकिन ये तो बेकार निकली. फिर लगता है कि वहां तो हर फिल्म के लिए लिखा होता है और अब पैपराजी भी स्टार देने लगे. खैर इस बारे कभी अलग से बात करेंगे, ऐसे में कुछ ऐसी फिल्मों की बात करना और उन्हें देखना भी जरूरी है जो सिनेमा की आत्मा को जिंदा रखे हुए हैं, ऐसी ही एक फिल्म है ढाई आखर.


कहानी
ये कहानी हर्षिता नाम एक ऐसी महिला की है जो सारी उम्र अपने पति के जुल्मों का शिकार रही. अब जब बच्चे बड़े हो गए उनकी शादी हो गई और पति की एक हादसे में मौत हो गई तो एक किताब के लेखक से चिट्ठियों के जरिए उनकी बात होने लगी. वो लेखकर श्रीधऱ उनका दर्द समझने लगा, दोनों के बीच प्यार पनपने लगा, फिर एक दिन वो तीर्थ का बहाना कर उससे मिलने गई और परिवार को सब पता चल गया. फिर तो परिवार ने बवाल काट दिया, बेटे मां पर हाथ उठाने तक को तैयार हो गए. फिर क्या होता है, यहां फिर क्या होता है से ज्यादा हर्षिता और श्रीधर के बीच जो रिश्ता पनपता है वो आपसे बहुत कुछ कहता है, और ये सुनने के लिए थिएटर में जरूर जाइएगा.


कैसी है फिल्म
विवाह को समाज ने बनाया है और प्यार को प्रकृति ने बनाया है. ये इसी फिल्म का डायलॉग है और ये फिल्म इसी बात को समझाती है, एक और डायलॉग है जब आदमी असभ्य होने लगा तो उसने विवाह जैसी संस्था बना दी. ये फिल्म भी डोमेस्टिक वॉयलेंस पर बात करती है, कुछ दिन पहले एक अच्छे खासे बजट की फिल्म दो पत्ती ने भी ये बात की थी. लेकिन यहां वो बात आपके दिल को छूती है. आप उसे समझते हैं, हर्षित और श्रीधर के बीच का रिश्ता आपको बताता है कि जिंदगी में सम्मान, प्यार कितना जरूरी है और उम्र कोई भी हो, हर किसी को अपनी जिंदगी जीने, प्यार करने का हक है. इस फिल्म से शायद बहुत से लोग रिलेट कर पाएंगे जो मजबूरी में कुछ रिश्तों को निभा रहे हैं. ये छोटे बजट की फिल्म है लेकिन बात बड़ी कहती है और असरदार तरीके से कहती है. आज की शोर शराबे वाली फिल्म के बीच ये एक ताजी हवा का झोंका है. अगर इस फिल्म में लीड रोल में अमिताभ बच्चन या हेमा मालिनी जैसे दिग्गज होते तो शायद इस फिल्म की बात बहुत ज्यादा होती लेकिन बात अब भी होनी चाहिए.  क्योंकि बात होगी तो अच्छा कंटेंट अपना रास्ता तलाश लेता है.


एक्टिंग
हर्षिता के किरदार में मृणाल कुलकर्णी ने कमाल का काम किया है. उनसे बहुत सारी महिलाएं खुद को जोड़ पाएंगी, वो अपने किरदार, अपने एक्स्प्रेशन, अपने अंदाज से बहुत कुछ ऐसा कह गई हैं जो हमारे समाज की बहुत सारी महिलाएं कह नहीं पाती. उन्होंने इस किरदार को जिस तरह से जिया है वो जिंदगी इस देश की बहुत सी औरतें जीती हैं. राइटर और हर्षिता के प्रेमी श्रीधर के किरदार में हरीश खन्ना लाजवाब हैं. उनके डायलॉग्स बहुत से लोगों को हिम्मत देंगे. उन्होंने इस किरदार को बड़े सधे हुए तरीके से निभाया है. हर्षिता के पति के किरदार में रोहित कोकाटे शानदार हैं, एक जुल्मी पति के किरदार को उन्होंने कमाल तरीके से निभाया है, उन्हें देखकर लगता है कि अब ये क्या करेगाय प्रसन्ना बिष्ट ने बेला का किरदार निभाया है जो हर्षिता की बहू है और उसका साथ देती हैं, और बेला के किरदार में प्रसन्ना ने कमाल का काम किया है. एक यंग एक्ट्रेस को इस तरह का किरदार इस शिद्दत से निभाते देख अच्छा लगता है, बाकी के सारे कलाकारों का काम भी अच्छा है.


डायरेक्शन और राइटिंग
अमरीक सिंह दीप और असगर वजाहत ने फिल्म को लिखा है और प्रवीण अरोड़ा ने फिल्म को डायरेक्ट किया है. राइटिंग अच्छी है, हर्षिता और श्रीधऱ के बीच के सीन कमाल के लिखे गए हैं. डायरेक्शन भी अच्छा है, 1 घंटे 38 मिनट की ये फिल्म है और कहीं ये खिंची हुई नहीं लगती और बोर नहीं करती.


कुल मिलाकर ये फिल्म देखी जानी चाहिए, ऐसी अच्छी फिल्मों को अगर सपोर्ट मिलेगा तो सिनेमा और बेहतर होगा.


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