Kartik Aaryan Movie Dhamaka Review In Hindi: अभी तक आपने कार्तिक आर्यन (Kartik Aaryan) को रोमांटिक और कॉमेडी भूमिकाओं में देखा था. धमाका (Dhamaka) में वह पूरी तरह सीरियस हैं. उनका मोनोलॉग यानी अकेले धाराप्रवाह बोला हुआ लंबा संवाद भी यहां नहीं है. उन्हें देख कर और उनकी बातों से हंसी नहीं आती. नेटफ्लिक्स (Netflix) पर रिलीज हुई करीब एक घंटे 40 मिनिट की फिल्म धमाका आर्यन के फैन्स को उन्हें नए अवतार में देखने का मौका देती है. यह कोरियाई फिल्म द टेरर लाइव (2013) का हिंदी रीमेक है. आप टाइटल से ही अंदाजा लगा सकते हैं कि यहां टेरर भी है और धमाके भी.
फिल्म मुंबई के एक मीडिया हाउस टीआरटीवी के रेडियो ब्रॉडकास्ट रूम में है, जहां आरजे अर्जुन पाठक (कार्तिक आर्यन) को उसके रेडियो शो के दौरान कॉल आता है कि सी-लिंक पर धमाका होने वाला है. कुछ ही पल में धमाका होता है और दफ्तर की खिड़की से धू-धू जलते सी-लिंक को देख कर अर्जुन समझ जाता है कि कॉल करने वाले शख्स, रघुबीर ने मजाक नहीं किया था. सवाल यह कि रघुबीर का मकसद क्या है? यह भी जल्दी सामने आता है, जब वह दूसरा कॉल करता है. वह कहता है कि मंत्री जयदेव पाटिल पूरे देश के सामने उससे माफी मांगें. रघुबीर क्यों मंत्री की माफी चाहता है, क्या मंत्री आकर कैमरे के सामने माफी मांगेगा, क्या धमाके करने वाला पकड़ा जाएगा, उसने तमाम चैनलों को छोड़ अर्जुन को क्यों फोन किया, वगैरह-वगैरह. तमाम सवालों के जवाब तलाशती कहानी आगे बढ़ती है. रेडियो ब्रॉडकास्ट रूम को आनन-फानन में भरोसा टीवी के न्यूजरूम में बदल दिया जाता है. जिसका एंकर है, अर्जुन.
धमाकों से सजी कहानी की परिधि में अर्जुन की वैवाहिक जिंदगी, न्यूज चैनल में प्राइम टाइम की कुर्सी, टीआरपी के खेल, सहकर्मियों की खींच-तान, रिश्वतखोरी, खबर और सच के फर्क से लेकर कुछ बातें उस गरीब-मजदूर के गुस्से की भी होती हैं, जिसे राष्ट्र निर्माण के नाम पर सदा नींव में दबा कर रखा जाता है. कहने को धमाका खबरों की दुनिया की कहानी है, जिसमें एंकर अर्जुन सी-लिंक विस्फोट को आतंकवाद बताता है, लेकिन इसकी कथा-पटकथा और फिल्मांकन में सिर्फ फुस-फुस की आवाजें आती हैं. अव्वल तो यह फिल्म मूलतः तकनीक पर निर्भर है और इसे 10 दिन में स्टूडियो में शूट करके कंप्यूटर वीएफएक्स द्वारा तैयार किया गया है. लेकिन बात बनी नहीं.
शुरुआती बीस मिनट बाद सुई घंटा भर इसी बात पर अटकी रहती है कि क्या मंत्री मांगने आएगा. तब तक अर्जुन को रघुबीर को बातों में लगाना है. यहां पर दफ्तर की और उसके करिअर की ऐसी बातें सामने आती हैं, जिनमें कोई दम नहीं। एंटी-टेररिस्ट स्क्वाड वाले स्टूडियो में आकर क्या करते हैं, आप बिल्कुल समझ नहीं पाते. बीच में मंत्री के जूनियर का एपिसोड बचकाना है. फिल्म स्पष्ट नहीं करती कि रघुबीर ने स्टूडियो, सी-लिंक और बिल्डिंगों में कैसे, कहां और कब बम लगाए. सी-लिंक के ग्राफिक दृश्य कच्चे हैं.वहां पर अर्जुन की पत्नी सौम्या मेहरा पाठक (मृणाल ठाकुर) के अलावा कोई रिपोर्टर नहीं दिखता. मृणाल ठाकुर (Mrunal Thakur) के पास फिल्म में कुछ करने को नहीं है और एक्शन के नाम पर उन्हें पुल से गिरने को तैयार कार से एक बच्ची को बचाते दिखा दिया गया है. सी-लिंक पर धमाकों की इतनी बड़ी घटना को कवर करते सिर्फ दो न्यूज चैनल और एक रिपोर्टर ही नजर आते हैं. मुंबई सैकड़ों फुट ऊंचाई पर हवा में लगे कैमरे से दिखती है. जमीन, लोग और धमाकों से पैदा हड़कंप या भगदड़ जीरो है.
वास्तव में कोरियन फिल्म की यह रीमेक उसी अंदाज बनी है, जैसे अखबारों में किसी घटना की रिपोर्टिंग कोई रिपोर्टर टेबल पर बैठे-बैठे करके कॉपी लिख दे. मौका-ए-वारदात पर गए बगैर. धमाका में न तो आवाज है और न असर। कार्तिक आर्यन टीवी एंकर नहीं लगे. न उनके चेहरे पर एंकरों वाले हाव-भाव हैं और न सयानापन। एंकरों वाली स्मार्टनेस भी उनके किरदार से गुम है. फिल्म का एक दृश्य हास्यास्पद है. इधर, लाइव कर रहे अर्जुन पर एक खबर न चलाने के लिए रिश्वत लेने का आरोप लगता है और उधर दूसरे चैनल में बैठा एंकर उससे लाइन कनेक्ट करके आरोपों पर लाइव ही सफाई मांगने लगता है. आप मेकर्स की इस धमाकेदार समझ पर हंस सकते हैं. आर्यन के लिए रोमांस-कॉमेडी छोड़ कर यह गंभीरता अपनाना सिर मुंडाते ओले पड़े वाली कहावत जैसा है.
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