Do Patti Review: यहां दो काजोल हैं, वही पुलिस इंस्पेक्टर हैं जो क्रिमिनल को पकड़ती हैं और काजोल ही वकील हैं जो मुजरिम को सजा दिलवाली हैं. अब ये काजोल का टैलेंट है या फिर प्रोड्यूसर को पैसे बचाने थे कि दोनों रोल काजोल से ही करवाएं. ये आप फिल्म देखकर ही फैसला कीजिएगा, ये दो दो कृति सेनन हैं लेकिन यहां उनको सीता और गीता की तरह इस्तेमाल नहीं किया गया. डबल रोल वाला वैसा कन्फ्यूजन क्रिएट नहीं किया गया जैसी उम्मीद थी. अच्छे एक्टर्स होने के बावजूद ये एक सस्ती टाइमपास फिल्म भी नहीं बन पाई है.
कहानी
ये कहानी है दो जुडवां बहनों की. सौम्या और शैली यानि कृति सेनन, दोनों को दूसरी से बचपन से ही जलन होती है. मां बाप बचपन में ही साथ छोड़ देते हैं,और फिर जब दोनों बड़ी होती हैं तो दोनों को एक ही शख्स ध्रुव सूद यानि शहीर शेख से प्यार हो जाता है, लेकिन ध्रुव की शादी एक ही से होती है और फिर दूसरी बहन बदला लेती है. फिर एक एक्सीडेंट होता है, किसी का कत्ल करने की कोशिश होती है जिसमें क्रिमिनल को पकड़ती हैं काजोल यानि विद्या और कोर्ट में वकील के तौर पर केस भी लड़ती हैं काजोल यानि विद्या. असली मुजरिम कौन है, और कहानी कैसे घरेलू हिंसा की बात करती है इसके लिए आपको नेटफ्लिक्स पर देखनी होगी दो पत्ती.
कैसी है फिल्म
आज के दौर में कंटेंट काफी बदल गया है. एक से बढ़कर एक मर्डर मिस्ट्री, क्राइम थ्रिलर ओटीटी पर मौजूद हैं. इंटरनेशनल कंटेंट भी काफी है. उन सबके आगे ये फिल्म एक मजाक लगती है, कहानी में कुछ ऐसा ट्विस्ट और टर्न नहीं है जो आपको चौंका सके. पहाड़ों में शूट हुई ये फिल्म पहाड़ों की खूबसूरती को भी ठीक से कैप्चर नहीं कर पाती. कृति के डबल रोल को ठीक से नहीं भुनाया गया. अच्छे एक्टर्स को एक तरह से वेस्ट कर दिया गया है, दो पत्ती नाम की ये फिल्म मोबाइल पर तीन पत्ती गेम जैसे एंटरटेनमेंट भी नहीं दे पाती. कनिका ढिल्लन की कहानी काफी ढीली है, उन्होंने मुद्दा अच्छा चुना लेकिन उसे ठीक से लिख नहीं पाईं और यही इस फिल्म की सबसे बड़ी कमी. अगर कृति सेनन काजोल और शहीर शेख के फैन हैं तो उनके लिए देख लीजिएगा वर्ना फिल्म के तौर पर ये काफी कमजोर है.
एक्टिंग
काजोल ने अच्छा काम किया है, पुलिस और वकील दोनों किरदारों में वो अच्छी लगती हैं. कृति ने डबल रोल में अच्छी एक्टिंग की है, वो लगी भी काफी खूबसूरत हैं. शहीर शेख का काम सबसे शानदार है, वो सबसे ज्यादा चौंकाते हैं. तन्वी आजमी और बृजेंद्र काला का काम भी अच्छा है लेकिन इन सबकी एक्टिंग कमजोर कहानी के आगे फीकी पड़ जाती है.
डायरेक्शन और राइटिंग
कनिका ढिल्लन की कहानी इस फिल्म की सबसे बड़ी विलेन है. उन्हें कहानी में कुछ और ऐसा डालना चाहिए था जिससे वो आज के दौर की फिल्मों को टक्कर दे सकें. आज ओटीटी पर मुकाबला सिर्फ हिंदी फिल्मों में ही आपस में नही है. साउथ की फिल्मों और इंटरनेशल कंटेंट से भी है. शशांक चतुर्वेदी की डायरेक्शन ठीक है लेकिन कमजोर कहानी के आगे वो भी क्या ही कर लेते. कृति सेनन इस फिल्म की प्रोड्यूसर भी हैं लेकिन अगली बार कृति को फिल्म प्रोड्यूस करने से पहले सबसे ज्यादा ध्यान कहानी पर देना होगा क्योंकि आज के दौर में कंटेट ही किंग है.
कुल मिलाकर ये फिल्म बड़ी मुश्किल से आपका टाइमपास करेगी.
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