Faraaz Review: आतंकवाद पर अब तक कितनी फिल्में बनी हैं शायद गिनती नहीं होगी लेकिन जब फिल्म हंसल मेहता की फिल्म हो तो सवाल ये होता कि अलग क्या होगा और इसका जवाब आपको फिल्म देखते हुए मिल जाता है. 


कहानी
कहानी बांग्लादेश की है जहां कुछ आतंकी एक होटल में कुछ लोगों को बंधक बना लेते हैं और इन्हीं में से एक है 'फराज' (faraaz). जहां बाकी लोग आतंकियों के आगे डर रहते हैं वहीं फराज इनसे सवाल करता है, वो सवाल करता है की इस्लाम के नाम पर ये लोग ऐसा क्यों कर रहे हैं? इन आतंकियों का सरगना फराज को मारना नहीं चाहता क्योंकि वो उसे पहले से जानता है.फिर क्या होता है? इसके लिए आपको ये फिल्म देखनी पड़ेगी.

 

यह फिल्म आपको बांधकर रखती है. पहले सीन से आप फिल्म से जुड़ जाते हैं और जैसे जैसे फिल्म आगे बढ़ती है आप हैरान होते हैं, परेशान होते हैं, भावनात्मक तौर पर डिस्टर्ब भी होते हैं. फिल्म में ट्विस्ट भी आते हैं और जब आपको लगता है कि ये कहानी देखी हुई है तो फराज आपकी ये सोच बदल देता है. इसमें आपको 2 इस्लाम दिखते हैं . एक मासूमों की जान लेता हुआ और दूसरा उनके हक की बात करता हुआ और एंड में पता चल जाता है कि कौनसा सही है कौनसा गलत. 


एक्टिंग

फिल्म के हर किरदार ने शानदार काम किया है.शशि कपूर के पोते जहान कपूर का इस फिल्म से डेब्यू हुआ है. वो फराज के किरदार में हैं और शानदार हैं. मेन विलेन के किरदार में आदित्य रावल जबरदस्त हैं. जूही बब्बर ने फराज की मां का किरदार बहुत मजबूत तरीके से निभाया है. आमिर अली का काम अच्छा है. पुलिस कमिश्नर के किरदार में दानिश इकबाल शानदार है. वो कॉमेडी का एक टच भी लाते हैं जो मजेदार लगता है.  कुल मिलाकर इस बार भी हंसल मेहता ने निराश नहीं किया है और वो कुछ नया लाने में कामयाब हुए हैं