Furiosa: A Mad Max Saga Review: 'फ्यूरियोसा: अ मैड मैक्स सागा' रिलीज हुए 2 हफ्ते हो चुके हैं. फिल्म अब भी सिनेमाघरों में टिकी हुई है. फिल्म के बारे में बताने में हमने देरी जरूर कर दी है, लेकिन इसके बारे में बात करनी जरूरी है. ऐसा इसलिए क्योंकि ऐसी फिल्में कभी-कभी ही आती हैं. ये हूबहू वैसा ही एक्सपीरियंस देती है जैसा किताब पर लिखी किसी महागाथा को पढ़ने में मिलता है. यानी कल्पना की दुनिया में गोते लगवाती है ये फिल्म.


कहानी
'फ्यूरियोसा' साल 2015 में आई फिल्म 'मैड मैक्स फ्यूरी रोड' के पहले की कहानी है या यूं कहें कि ये एक प्रीक्वल है. पिछली फिल्म की कहानी जहां से शुरू हुई थी, वहीं से इस फिल्म का अंत होता है. पिछली फिल्म में लीड कैरेक्टर फ्यूरियोसा को एक योद्धा की तरह दिखाया गया था. ये फिल्म उसी फ्यूरियोसा के योद्धा बनने की कहानी है. 


साल 1979 में इस फ्रेंचाइजी की नींव रखी गई थी. तब से लेकर अब तक इस फ्रेंचाइजी पर कई फिल्में बन चुकी हैं. सही मायने में कहा जाए तो ये फिल्म मैड मैक्स सीरीज की स्पिनऑफ है, जिसमें एक कैरेक्टर की कहानी दिखाई गई है. कहानी एक ऐसी भविष्य की दुनिया दिखाती है, जहां सब कुछ तबाह हो चुका है. लोग जीने के लिए इंसानियत छोड़ चुके हैं. यहां वही जीता है जो ताकतवर है और सामने वाले को मार सकता है.


फिल्म की कहानी की शुरुआत ऐसी ही दुनिया में छुपी हुई एक ऐसी छोटी सी जगह से शुरू होती है, जहां फल-फूल, खेती, एनर्जी और इंसानियत है. यहां के लोग उसे दुनियाभर से बचाकर रखना चाहते हैं. लेकिन एक दिन एक बाइकर गैंग के कुछ दुर्दांत लोग वहां आ धमकते हैं. यहीं से शुरू होती है जानलेवा मारकाट. मारकाट इसलिए क्योंकि यहां के लोग नहीं चाहते कि बाहर की खतरनाक दुनिया को इनके बारे में पता भी चले और वो वहां आकर राज करें.


फ्यूरियोसा नाम की एक बच्ची को किडनैप करके एक बाइकर गैंग के मुखिया के पास बंधक बना दिया जाता है. वो वहां से दूसरे गैंग को बेच दी जाती है. कहानी उसी बच्ची के सर्वाइव करने से लेकर उसको कई अलग-अलग गैंग्स को खत्म करने तक पहुंचाती है. 






फिल्म की खास बातें
ये बड़ी दिलचस्प बात है कि साल 1979 में जब इस सीरीज की पहली फिल्म बनी तो फिल्म बनाने वालों के पास इतना बजट नहीं था कि वो इस फिल्म में बहुत सारा रुपया लगा सकें. फिल्म का बजट सिर्फ 3,50000 डॉलर था. इसलिए, इस फिल्म को ऐसी भविष्य की दुनिया में सेट कर दिया गया जिसके लिए किसी भारी-भरकम सेट की जरूरत नहीं थी.


फिल्म में सिर्फ रेगिस्तान रेत धूल ही दिखाना था, इसलिए फिल्म कम पैसों में बनकर तैयार भी हो गई. लेकिन किसी ने नहीं सोचा था कि ये फिल्म इतनी बड़ी हिट हो जाएगी कि अपना सफर एक बेहतरीन सीरीज के तौर पर अगले 45 सालों तक कायम रखेगी. पहली फिल्म ने ही 100 मिलियन डॉलर की कमाई की थी.


मूल फिल्म का डायरेक्शन करने वाले डायरेक्टर का नाम जॉर्ज मिलर था. उनका काम इतना बेहतरीन है कि तब से लेकर वही नाम आज तक इस फिल्म से जुड़ा हुआ है. फ्यूरियोसा को भी उन्होंने ही डायरेक्ट किया है. डायरेक्शन के मामले में 79 साल के मिलर की प्रतिभा आप इस फिल्म को देखकर समझ सकते हैं. आपको ये भी समझ आ जाएगा कि आखिर वही इस सीरीज की हर फिल्म को डायरेक्ट क्यों करते हैं.




सिहरन पैदा करने वाले दृश्यों से भ्रमित हो सकते हैं आप
इस सीरीज की फिल्मों की खास बात भी ये है कि फिल्मों का बहुत बड़ा हिस्सा सिर्फ और सिर्फ एक्शन और खतरनाक सीन्स दिखाते हुए गुजरता है. करीब ढाई घंटे की इस फिल्म में भी 80 प्रतिशत हिस्सा सिर्फ और सिर्फ ऐसे ही सीन्स से भरा हुआ है. फिल्म में कई ऐसे सीन हैं, जिनमें जिंदा इंसान की खाल और मांस नोचकर शरीर से अलग करते हुए दिखाया गया है.


गर्दनें कटकर गिरती हुई और पेट के बड़े से घाव से बाहर लटकती आंतें रूह को अंदर तक झकझोर सकती हैं. फिल्म का हर एक किरदार इतना क्रूर है कि जब वो पर्दे पर दिखता है तो वही उस फिल्म का सबसे खतरनाक इंसान लगता है. बाइकर गैंग के मुखिया का किरदार एमसीयू में सुपरहीरो थॉर का किरदार निभाने वाले क्रिश हेम्सवर्थ ने निभाया है. जो बतूनी,खतरनाक और पागल है.


फ्यूरियोसा का किरदार आन्या टेलर जॉय ने निभाया है. जो इसी सीरीज की साल 2015 में आई मैड मैक्स फ्यूरी रोड में निभाए गए चार्लीज थेरॉन के रोल का यंग वर्जन है. गुस्से और बदले की आग में जलता ये लीड किरदार दिल का अच्छा इंसान तो कहा जा सकता है, लेकिन ये भी उतना ही क्रूर है जितने कहानी में मौजूद बाकी के किरदार.


क्यों देखें फिल्म



  • अगर आप एक्शन और रोमांच पैदा करने वाले सीन्स के भूखे हैं. अगर आपको हर पल पर्दे पर कुछ नया होते देखना पसंद है. अगर आप बोर हो चुके हैं एक जैसी एक्शन फिल्में देख-देखकर तो ये फिल्म आपको जरूर देखनी चाहिए.

  • फिल्म देखने की एक खास वजह ये भी है कि फिल्म का डायरेक्शन, स्क्रीनप्ले और कहानी सब कुछ इतना बंधा हुआ और सटीक है कि आपको ढाई घंटे किसी रोमांचक यात्रा से कम नहीं लगेंगे. 

  • क्रिस हेम्सवर्थ के लिए. उन्हें ज्यादातर थॉर की भूमिका में देखा गया है. इस फिल्म में उनके निभाए वॉरलॉर्ड डिमेंटस को देखकर आप सोच भी नहीं पाएंगे कि ये वही एस्गार्ड का सबसे अच्छा देवता है जो दुनिया बचाने के लिए अपने भाई लोकी और पिता ओडिन के खिलाफ चला गया था. फिल्म में उनका किरदार उनके निभाए गए अब तक के बाकी किरदारों से बेहद अलग और रोमांचक है.

  • अगर आप खुद को उस कैटेगरी के दर्शकों में गिनते हैं, जिन्हें गेम ऑफ थ्रोन्सऔर फाइनल डेस्टिनेशन जैसी सीरीज और फिल्मों के मारकाट वाले सीन पसंद आते हैं तो ये फिल्म आपके लिए ही है.

  • इस फिल्म में इतना सारा सीजीआई और पहली बार इतना ज्यादा एआई का इस्तेमाल किया गया है जितना डायरेक्टर मिलर ने  पहले कभी नहीं किया था. आपको इसलिए भी ये फिल्म देखनी चाहिए कि कैसे सब कुछ बिना सेट के सिर्फ कंप्यूटर और एआई की मदद से तैयार किया जा सकता है और वो भी बिना किसी कमी के. क्योंकि सीजीआई के इस्तेमाल में कई बार किसी न किसी पल कुछ न कुछ गड़बड़ लगता है, लेकिन इस फिल्म में आप एक सेकेंड के लिए भी लूपहोल नहीं पकड़ पाएंगे.

  • कार, बाइक चेज सीन तो आपने देखे ही होंगे. फास्ट एंड फ्यूरियस से लेकर मिशन इंपॉसिबल तक. लेकिन ये सीन अगर खूनी हो जाएं वो भी विशालकाय और दैत्याकार ट्रक और जेसीबी जैसी मशीनों के साथ. इन्हें चलाने वाले ड्राइवर और लड़ाके भी उतने क्रूर हों, तो ये सीन और धांसू बन जाते हैं. तो ऐसे रोमांचक चेज सीन्स के लिए फिल्म आपको देखनी चाहिए.




क्यों न देखें फिल्म



  • वैसे तो ये एक स्पिनऑफ है. फिल्म समझ भी आती है. लेकिन फिर भी अगर आपने इसी फ्रेंचाइजी की 2015 वाली फिल्म नहीं देखी है, तो ये फिल्म कई मामलों में कनेक्ट नहीं कर पाएगी. आप वॉरलॉर्ड्स और फ्यूरियोसा वाले कैरेक्टर को कनेक्ट करने में देर लगा सकते हैं.

  • अगर आप एक जैसे एक्शन वाली दशकों से चली आ रही साउथ इंडियन फिल्मों के शौकीन हैं और सिर्फ वही एक्शन आपको पसंद हैं, तो हो सकता है कि इस फिल्म के एक्शन आपको न जचें. क्योंकि फिल्म में क्रूरतम चीजें दिखाते समय भी फिजिक्स का पूरा ख्याल रखा गया है.

  • अगर आप इंडिया में बनने वाली किसी सो कॉल्ड खतरनाक एक्शन फिल्म के कथित डरावने और खतरनाक सीन देखकर भी सिहर जाते हैं. तो कोशिश कीजिए कि ये फिल्म बिल्कुल भी न देखने जाएं. इसे आप चेतावनी भी मान सकते हैं क्योंकि फिल्म हर अगले सीन में दिल की धड़कनें बढ़ाती है.

  • ये फिल्म भले ही भविष्य की दुनिया में सेट की गई है. लेकिन ये आज की दुनिया के काफी करीब नजर आती है. पर्यावरण को नुकसान, पानी में मर रही मछलियां. बीमार होते लोग और जहर भरी हवा सब कुछ तो वैसा ही हो रहा है, जैसा फिल्म में दिखाया गया है. 

  • इजरायल-फिलिस्तीन से लेकर रूस-यूक्रेन के बीच की तनातनी में मर रहे लोगों की बात हो या म्यांमार में विद्रोहियों और सेना के बीच जंग की बात, सब कुछ डरावना है. और इन 'सब कुछ' को आप फिल्म में निकट भविष्य में होने वाली घटनाओं से जोड़कर देखेंगे तो डर सकते हैं.


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