Goodbye Movie Review: रश्मिका मंदाना-अमिताभ बच्चन की ये फिल्म एंटरटेनमेंट के साथ मन में खड़े करती है कई सवाल
Goodbye Review: रश्मिका मंदाना ने बॉलीवुड में फिल्म गुडबाय से कदम रख लिया है. फैंस उनके बॉलीवुड डेब्यू का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे.
विकास बहल
रश्मिका मंदाना, अमिताभ बच्चन, नीना गुप्ता, पवेल गुलाटी
Goodbye Review In Hindi: क्या आप अपने परिवार से प्यार करते हैं और करते हैं तो कितना करते हैं. क्या आप अपने परिवार की फिक्र करते हैं और करते हैं तो कितनी करते हैं. ये फिल्म देखने के बाद आपके मन में ऐसे सवाल जरूर आएंगे लेकिन कुछ और सवाल भी आएंगे. उन तमाम सवालों की बात इस रिव्यू में करेंगे.
कहानी
अमिताभ और नीना गुप्ता के चार बच्चे हैं जो अलग अलग सेटल हैं. नीना की हार्ट अटैक से मौत हो जाती है और फिर अमिताभ किस तरह से अपने बच्चों को पत्नी के अंतिम संस्कार पर बुलाते हैं और वो बच्चे क्या वाकई में अपने परिवार से प्यार करते हैं. यही फिल्म की कहानी है. जहां वकील बनी तारा यानि रश्मिका मंदाना को रीति रिवाजों से परहेज है जैसे मौत के बाद नाक में रुई क्यों डाली जाती है और पैरों को बांधा क्यों जाता है. तो वहीं पवेल गुलाटी अपने काम और जिंदगी में ही मस्त है. मां के अंतिम यात्रा में भी airpod कान से उतरते नहीं हैं और फोन पर काम चलता रहता है. एक बेटा दुबई में फंस गया है और अमिताभ ये सुन लेते हैं कि मां की मौत की खबर सुनने के बाद ये बटर चिकन खा रहा है. वहीं एक बेटा पहाड़ों पर घूमने गया है और वो तब आता है जब मां का अंतिम संस्कार हो चुका होता है. कहानी साइंस और आस्था से जुड़े कई सवाल उठाती है.
एक्टिंग
अमिताभ बच्चन ने शानदार काम किया है. अमिताभ की एक्टिंग वो वैसे भी रिव्यू नहीं किया जा सकता. वो अपने किरदार में पूरी तरह से फिट हैं. रश्मिका मंदाना को पुष्पा की श्रीवल्ली के बाद मॉर्डन कैरेक्टर में देखकर अच्छा लगता है. रश्मिका रीति रिवाजों को सवाल उठाती हैं. उनका लॉजिक मांगती हैं. रश्मिका ने हिंदी डबिंग अच्छी की है. हालांकि कहीं कहीं साउथ एक्सेंट आ जाता है लेकिन तब भी वो दिल जीतने में कामयाब रहती हैं. मेरे लिए इस फिल्म को देखने की एक बड़ी वजह रश्मिका रहीं क्योंकि वो फ्रेश लगती है. उनमें नयापन नजर आता है. पवेल गुलाटी ने अच्छा काम किया है. काम के चक्कर में परिवार के बीच बैलेंस बैठाने वाला ये किरदार उनपर सूट भी किया है. बाकी के किरदार भी ठीक हैं.
फिल्म एक फैमिली ड्रामा है. कहीं कहीं अच्छी भी लगती है लेकिन फिर भी आप पूरी तरह से फिल्म से कनेक्ट नहीं करते. अमिताभ और रश्मिका अच्छे लगते हैं लेकिन फिल्म कुल मिलाकर थोड़ी कमजोर लगती है. आप वो इमोशन फील नहीं कर पाते जिसकी उम्मीद इस फिल्म से थी. फिल्म आपको हंसाती भी है, कहीं कहीं रुलाने की भी कोशिश करती है. आपको परिवार की भी याद दिलाती है लेकिन कहानी और स्क्रीनप्ले अगर थोड़ा और बेहतर होता तो ये और अच्छी बन सकती थी. एंड में आपको ये समझ नहीं आता कि ये फिल्म कहना क्या चाहती है. आपको फिल्म कुछ कुछ हिस्सों में अच्छी तो लगती है लेकिन पूरी फिल्म आपको बांध नहीं पाती. ऐसे ही मुद्दे पर रामप्रसाद की तेरहवीं भी बन चुकी है और वो इससे काफी बेहतर फिल्म थी लेकिन तब भी ये फिल्म आपको ये एहसास करा देती है कि क्या आप अपनी फैमिली से वाकई में प्यार करते हैं. क्या आप वाकई में उनकी फिक्र करते हैं.
अगर अमिताभ और रश्मिका के फैन हैं और अगर फैमिली ड्रामा पसंद है तो ये फिल्म जरूर देखें.
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