Gulmohar Review: कुछ फिल्में सिर्फ फिल्में नहीं होती हैं बल्कि एक एक्सपीरियंस होती हैं. वो फिल्में आपको खुद से मिलवाती हैं.अपने परिवार से मिलवाती हैं.बहुत कुछ ऐसा महसूस करवाती हैं जो शायद आप भूल गए थे और आपके लिए वो महसूस करना बहुत जरूरी है क्योंकि ये आपकी फैमिली के लिए बहुत जरूरी है. 'गुलमोहर' ऐसी ही एक फिल्म है जो आपको आपके परिवार से मिलवाती है.

 

कहानी
ये कहानी है दिल्ली के पॉश इलाके में बने गुलमोहर नाम के घर की. जहां रहने वाली बत्रा फैमिली की तीन पीढ़ियों की अपनी अलग अलग सोच है. घर की मालकिन कुसुम बत्रा शर्मिला टैगोर अपना घर 'गुलमोहर' बेचने का फैसला करती हैं और चाहती हैं कि चार दिन बाद परिवार साथ में होली मनाकर अपने अलग अलग मकानों में जाए. उनका बेटा अरुण यानि मनोज वाजपेयी नहीं चाहता कि सब अलग हों.अरुण का बेटा आदित्य यानि सूरज शर्मा अलग रहना चाहता है .इसके अलावा घर में काम करने वाले भी किस कशमकश से गुजर रहे हैं. क्या ये परिवार अलग हो जाता है या फिर एक हो जाता है. यही कहानी है गुलमोहर की और ये कहानी जानने के लिए आपको ये फिल्म जरूर देखनी चाहिए.


एक्टिंग

शर्मिला टैगोर को सालों बाद स्क्रीन पर देखना एक बेहद सुखद अहसास है. ग्रेस क्या होती है ये जब आप शर्मिला टैगोर को स्क्रीन पर देखते हैं तो आपको समझ आता है. जिस आसानी से शर्मिला ने इस किरदार को निभाया है उसे देखकर लगता है कि बस वही ये किरदार निभा सकती थीं. उनका काम कमाल का है. मनोज वाजपेयी शानदार एक्टर हैं और यहां भी मनोज ने अरुण बत्रा के किरदार को बखूबी निभाया है. एक तरफ मनोज ने 'फैमिली मैन' जैसी वेब सीरीज में परिवार के लिए लड़ने वाले शख्स का किरदार निभाया था और एक तरफ ये किरदार. दोनों बिल्कुल अलग हैं और दोनों में किस तरह मनोज फिट बैठते हैं वो ये बताता है कि क्यों उन्हें हिंदुस्तान के बेहतरीन एक्टर्स में शुमार किया जाता है. सूरज शर्मा ने एक ऐसे लड़के के किरदार में शानदार काम किया है जो अपना स्टार्ट अप करना चाहता है और जिसके अपने पिता से मतभेद हैं. सूरज की एक्टिंग भी कमाल है.सिमरन ने मनोज की पत्नी के किरदार को इस तरह से निभाया है कि आपको ये जोड़ी कमाल की लगती है. एक बहू पत्नी और मां तीनों किरदारों में सिमरन शानदार लगी हैं. अमोल पालेकर का काम शानदार है. इसके अलावा भी फिल्म के बाकी कलाकारों ने कमाल का काम किया है. 

 

डायरेक्शन
Rahul V Chittella आज की पीढ़ी के डायरेक्टर हैं लेकिन तीनों पीढ़ियों की सोच को उन्होंने जिस तरह से दिखाया है उसके लिए उनकी जितनी तारीफ की जाए कम है.फिल्म के हर सीन से आप खुद को अपने परिवार को जोड़कर देखते हैं. आपको अपने परिवार के झगड़े परिवार में होने वाली बहस याद आती है. फिल्म पर राहुल ने पकड़ कहीं ढीली नहीं छोड़ी है. हालांकि कुछ सीक्वेंस थोड़े छोटे वो जरूर कर सकते थे. 

कुल मिलाकर ये फिल्म आपको ये महसूस करवाती हैं कि फैमिली है तो सब है और फैमिली है तो आप हैं. ये फिल्म देखकर शायद आप अपने परिवार के लिए ज्यादा फिक्रमंद हो जाएंगे. ये फिल्म देखकर शायद आप अपने परिवार में किसी से नाराजगी है तो उसे भुला देंगे. ये फिल्म आपको कुछ देकर जाती है जो आपके साथ लंबे वक्त तक रहेगा. 

 

कुछ फिल्में जरूर देखनी चाहिए अपने लिए नहीं  लेकिन अपने परिवार के लिए. ये वैसी ही फिल्म है. ये फिल्म स्टार्स और रिव्यूज से परे है .लेकिन फिर भी रस्म है तो हम इसे देंगे 5 में से 4.5 स्टार. आधा स्टार इसलिए कम क्योंकि जिंदगी औऱ फिल्मों दोनों में बेहतरी की गुंजाइश हमेशा रहनी चाहिए .