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Hungama 2 Review: पारिवारिक अंदाज की साफ-सुथरी कॉमेडी, प्रियदर्शन के फैन्स करेंगे पसंद

Hungama 2 Review: आठ साल बाद निर्देशक प्रियदर्शन फिल्म लाए हैं. उनका अंदाज पुराना है मगर फैन्स को पसंद आ सकता है.

Hungama 2 Review: साल 2003 (अक्षय खन्ना, रिमी सेन) में आई निर्देशक प्रियदर्शन की हंगामा आज भी दर्शक नहीं भूले हैं. हंगामा 2 उसी ब्रांड को आगे बढ़ाती है. दो प्रेमी अपने जीवन की उलझन को सुलझाने में लगे हैं और पति-पत्नी का एक जोड़ा आपसी तालमेल के अभाव में रात-दिन खट्टी-मीठी नोकझोंक दो-चार हो रहा है. हंगामा की तर्ज पर ही नई कहानी लिखी गई और शुरू से अंत तक लेखक-निर्देशक-ऐक्टर इस कोशिश में हैं कि दर्शक हंसें. मामला कॉमेडी ऑफ एरर्स का है. कॉमेडी ऑफ एरर्स में कथानक कुछ यूं होता है कि उसके किरदार घटनाओं और बातों को एक के बाद एक गलत नजरिये से देखते चलते हैं और फंसते जाते हैं. वे समझते कुछ और हैं और मामला कुछ और होता है. इस तरह दर्शक के लिए कॉमेडी पैदा होती जाती है.

हंगामा 2 में कहानी के दो ट्रेक हैं. पहला तो यह कि कपूर खानदान के युवा चिराग आकाश (मीजान जाफरी) के घर में एक युवती वाणी (प्रणीता सुभाष) नन्हीं बच्ची को लिए आ गई है. वाणी का दावा है कि आकाश इस बच्ची का पिता है. वह मां है. आकाश इंकार करता है. हां, यह जरूर मानता है कि कॉलेज में दोनों साथ पढ़ते थे और उनके बीच प्रेम था. दूसरा ट्रेक वकील राधे तिवारी (परेश रावल) और उसकी पत्नी अंजली (शिल्पा शेट्टी) का है. अंजली और आकाश की बातें सुनते हुए शक्की तिवारी को लगता है कि उनकी पत्नी प्रेग्नेंट हो गई है. वह भी आकाश से. कहानी के तमाम किरदार इन्हीं दो बिंदुओं के बीच कॉमेडी पैदा करते हैं कि क्या वाणी जिस बच्ची को लाई है, वह आकाश की संतान है और क्या तिवारी का शक सही है? ये बातें निकलती है तो दूर तलक जाती हैं मगर सीधी-सरल ढंग से नहीं. उलझते हुए. किरदारों को कनफ्यूज करते हुए.

निर्देशक प्रियदर्शन आठ साल बाद हिंदी फिल्म लाए हैं. इससे पहले 2013 में वह ‘रंगरेज’ के साथ आए थे. मलयालम और तमिल में फिल्में बना कर राष्ट्रीय पुरस्कार जीतने वाले, पद्मश्री प्राप्त प्रियदर्शन हिंदी में विरासत जैसी फिल्म के लिए याद किए जाते हैं और कॉमेडी में उन्होंने हेराफेरी, हंगामा, हलचल, गरम मसाला, चुप चुप के, भागमभाग, मालामाल वीकली और भूल भुलैया जैसी याद रखने लायक फिल्में दी हैं. दूसरी तरफ हंगामा 2 से शिल्पा शेट्टी 14 साल बाद स्क्रीन पर वापसी आई हैं. आखिरी बार वह देओल परिवार के साथ फिल्म अपने में दिखी थीं. यह अलग बात है कि इस वापसी का जश्न मनाने की जगह शिल्पा इधर अपने पति राज कुंद्रा के पोर्न फिल्म रैकेट मामले में फंसने से परेशान हैं.

ओटीटी डिज्नी हॉटस्टार पर रिलीज हुई हंगामा 2 का अंदाज-ए-बयां वही है जो हंगामा का था. इसमें प्रियदर्शन के निर्देशन की पुरानी झलक मिलती है और जिन दर्शकों को 1990 और 2000 के दौर में इस निर्देशक का काम पसंद आता था, उन्हें यह फिल्म भी मजा देगी. प्रियदर्शन की कॉमेडी में कई किरदार होते हैं और कहानी जैसे-जैसे बढ़ती है, हंमागा खड़ा होता जाता है. वह बात आपको यहां भी मिलेगी. हंगामा 2 की खूबी यही है कि इसमें मुख्य कहानियों के सभी किरदारों को लगभग बराबर मौका मिला है. संतुलन है. कहानी किसी एक किरदार की तरफ नहीं झुकती. आशुतोष राणा हीरो के पिता के रोल में हैं और पूरी फिल्म में उनकी जबर्दस्त मौजूदगी है. मीजान की यह दूसरी फिल्म है और उन्होंने कॉमिक टाइमिंग को बखूबी पकड़ा है. परेश रावल और शिल्पा शेट्टी बढ़िया हैं. प्रणीता सुभाष स्क्रीन पर जब-जब आती हैं तो राधिका आप्टे की याद दिलाती हैं. हालांकि उन्होंने अपने काम को सही ढंग से किया है. जॉनी लीवर और अक्षय खन्ना अपनी मेहमानों वाली भूमिकाओं में जमे हैं. लेकिन इन सबके बीच राजपाल यादव को एक बेहतरीन सीन मिला है और उन्होंने उसे शानदार ढंग से परफॉर्म किया है. कलाकारों की इस रोचक कास्टिंग में इतना जरूर है कि मीजान और प्रणीता के अतिरिक्त सभी खिलाड़ी पुराने हैं. सब पर उम्र का असर दिखने लगा है.

समय के साथ सिनेमा और कॉमेडी का अंदाज बदला है. इसलिए जिनका मनोरंजन नए ढंग की तेज-रफ्तार फिल्मों से होता है उन्हें हंगामा 2 की रफ्तार धीमी और मेकिंग गुजरे जमाने की लगेगी. फिल्म में शैतान बच्चों की टोली और उन्हें सुधारने के लिए बार-बार टीचर बदलने का प्रसंग बासी लगेगा. इन दर्शकों के लिए फिल्म की लंबाई भी अधिक है, दो घंटे 36 मिनट. यहां गीत-संगीत औसत है और 1994 में आई फिल्म मैं खिलाड़ी तू अनाड़ी (अक्षय कुमार-शिल्पा शेट्टी) के गाने ‘चुरा के दिल मेरा गोरिया चली...’ का 2.0 वर्जन बेनी दयाल और अनमोल मलिक की आवाज में कुमार शानू और अलका याज्ञनिक वाला जादू नहीं जगा पाता. फिल्म का कैमरावर्क जरूर अच्छा है. हंगामा 2 को थोड़ी कसावट के साथ संपादित किया जाता तो बेहतर होता.

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