Joram Review: Manoj Bajpayee ने फिर बताया कि वो सिर्फ एक्टर नहीं एक्टिंग की मास्टरक्लास हैं, हिला डालती है ये फिल्म
Joram Review: मनोज बाजपेयी स्टारर फिल्म जोरम रिलीज हो गई है. ये फिल्म इतनी शानदार है कि ये अंदर कर हिला डालती है. फिल्म से एक बार फिर मनोज बाजपेयी ने साबित किया है कि वे एक्टिंग के मास्टर क्लास हैं.
देवाशीष मखीजा
मनोज बाजपेयी, जीशान अयूब, तनिष्टा चटर्जी, स्मिता तांबे
Joram Review: हजरात..हजरात..हजरात...पूरे इलाके में इतना बम मारेंगे कि इलाका धुआं धुआं हो जाएगा. एक मनोज वाजयेपी हैं जो बम मारते हैं, और एक मनोज वाजपेयी हैं जो फिल्म जोरम में दसरू बने हैं और डर से कांपकर कहते हैं सरकार गोली मत चलाइएगा, छोटी बच्ची है. ये शख्स क्या है, सिर्फ एक्टर तो नहीं है, एक्टिंग की पूरी मास्टरक्लास है और क्या कोई है जिसकी रेंज इतनी बड़ी हो. जोरम देखते हुए मुझे बार बार यही महसूस हुआ लेकिन कोई दूसरा नाम जहन में नहीं आया.
कहानी
ये कहानी है आदिवासी दसरू की जो नक्सली गैंग छोड़कर मुंबई में अपनी पत्नी वानो और बेटी जोरम के साथ रह रहा है. दोनों पति पत्नी मजदूरी करते हैं और जिंदगी में खुश रहने की कोशिश करते हैं लेकिन फिर तभी उनपर हमला होता है.वानो की जान चली जाती है और दसरू नन्ही सी जोरम को लेकर भागता है. गोलियों से बचने के लिए, झारखंड की फूलो कर्मा से बचने के लिए जिसके बेटे की मौत के लिए दसरू जिम्मेदार था. कभी गोलियां चलाने वाला दसरू आज गोली से ही भाग रहा है. कहानी शायद छोटी सी लग रही है लेकिन इसे जिस तरह से दिखाया गया है वो आपको दहला डालता है और इसके लिए सिनेमाघर जरूर जाइएगा.
कैसी है फिल्म
ये फिल्म कमाल की है.ये फिल्म काफी कुछ कहती है. इंसान ने पर्यावरण का जो नुकसान किया है ये उसकी की बात करती है. ये नक्सलवाद की भी बात करती है. झारखंड़ की राजनीति की भी बात है. वहां की लोकल सिचुएशन को भी अच्छे से समझाती है.ये फिल्म आपको झकझोर देती है.जब दसरू ट्रेन के डिब्बे में जोरम को लेकर छिपा होता है और बाहर से लोग दरवाजा तोड़ रहे होते हैं तो दसरू के चेहरे पर जो दर्द दिखता है उसके आंसू आप भी महसूस करते हैं. जब बेटी को पीठ पर बांधकर दसरू भागता है और उसके पीछे कैमरा बिना किसी सिनैमैटिक एंगल का ध्यान किए हुआ चलता है तो आप भी साथ चलते हैं और चाहते हैं कि दसरू बच जाए. फिल्म का एक एक फ्रेम आपसे कुछ कहता है. ना कोई बड़े सेट ना कोई महंगे कॉस्ट्यूम लेकिन फिल्म दिल में उतरती है. ऐसी फिल्में फिल्म फेस्टिवलों में तो वाहवाही लूट लेती हैं अवॉर्ड तो जीत लेती हैं लेकिन इनका असली अवॉर्ड है इन्हें थिएटर में जाकर देखना और अगर सिनेमा से प्यार है तो जरूर देखिएगा.
एक्टिंग
मनोज वाजपेयी को देखकर फिर से लगता है कि ये बंदा क्या है. ये कैसे हर किरदार में इतना घुस जाता है कि वो किरदार ही बन जाता है. दसरू के दर्द को जिस तरह से मनोज ने दिखाया है. उनकी आंखों में जो दिखता है उनके चेहरे पर जो दिखता है उसे ही जानकारों ने शायद एक्टिंग का नाम दिया है. मनोज हर फिल्म में अपनी ही खींची लाइन को और बड़ा कर देते हैं.यहां भी किया है. कितने किरदारों में मनोज गोली चला चुके हैं दहला चुके हैं लेकिन यहां वो गोली से डरते हैं. खुद दहले हुए दिखते हैं. ये वाकई में उनके सबसे कमाल के किरदारों में से एक है और इसे देखना बनता है. मनोज की पत्नी के किरदार में तनिष्टा चटर्जी जमी हैं. किरदार छोटा है लेकिन असरदार है.जीशान अयूब पुलिसवाले बने हैं और वो भी अपना काम शानदार तरीके से करते हैं. ये ना सिंघम है ना दबंग लेकिन इन दोनों से कम भी नहीं. ये दिलवाला है. जज्बातों को समझता है बंदूक के साथ दिमाग और दिल दोनों से काम लेता है.ये किरदार भी दिखाया है कि फिल्मी पुलिसवाले बस वही नहीं होते जो धूम धड़ाम वाले म्यूजिक पर एंट्री मारते हैं और धांय धांय गोलियां चलाते हैं. जीशान ने फिर दिखाया है कि वो फिल्म इंडस्ट्री के सबसे कमाल के एक्टर्स में से एक हैं. फूलो कर्मा के किरदार मे स्मिता तांबे जबरदस्त हैं वो खलनायकी में एक अलग ही अंदाज लाती हैं और खूब जमी हैं.
डायरेक्शन
देवाशीष मखीजा ने फिल्म को लिखा भी है और डायरेक्ट भी किया है. इस फिल्म के लिए जितनी तारीफ मनोज वाजपेयी की होनी चाहिए उतनी देवाशीष की भी होनी चाहिए. एक कमाल के एक्टर से कितना कमाल का काम करवाया जा सकता है ये देवाशीष ने दिखा दिया है. फिल्म पर उनकी पकड़ जबरदस्त है. साफ दिखता है कि उन्होंने हवा में कहानी नहीं लिखी पूरी रिसर्च की और उसके बाद ही फिल्म बनाई. उम्मीद है उनके काम और सराहा भी जाएगा और उन्हें आगे और अच्छा काम भी मिलेगा क्योंकि देवाशीष दिखाते हैं कि अच्छी कहानी और डायरेक्टर्स की कमी नहीं है हमारे पास बस मौका चाहिए.
कुल मिलाकर सिनेमा से इश्क है तो फिल्म जरूर देखिएगा. शायद बहुत लोगों को पता नहीं होगा ऐसी कोई फिल्म आ रही है. आप ये रिव्यू पढ़ें तो उन्हें जरूर बताइएगा क्योंकि ऐसी अच्छी फिल्में सिर्फ लाइब्रेरी तक नहीं रहनी चाहिए दर्शकों तक पहुंचनी चाहिए.