Kakuda Review: 'भूल भुलैया' से लेकर 'गो गोआ गॉन' तक हॉरर के साथ जब कॉमेडी का तड़का दिया गया, दर्शकों को पसंद आया. कई साल बीते और ऐसी फिल्में बननी बंद हो गईं. साल 2018 में आई 'स्त्री' से ऐसी फिल्मों के लिए फिर से दरवाजे खुल गए.


ये फिल्म पसंद की गई तो रूही, भूत पुलिस, फोन भूत, भेड़िया और मुंज्या जैसी और कई फिल्में आ गईं. इसी जॉनर की फिल्म 'काकूदा' भी है. सोनाक्षी सिन्हा, रितेश देशमुख और साकिब सलीम की ये फिल्म जी5 पर स्ट्रीम हो रही है. तो चलिए जान लेते हैं कि फिल्म कैसी है.


कहानी
रतौड़ी नाम के एक गांव के लोग काकूदा नाम के भूत की वजह से परेशान हैं. वैसे तो ये भूत उन्हें हमेशा परेशान नहीं करता, लेकिन हफ्ते के एक खास दिन और खास टाइम पर उसे अपने लिए लोगों से इज्जत चाहिए होती है. जो लोग उस खास दिन खास टाइम पर उसे इज्जत नहीं दे पाते उनकी मौत निश्चित है.


काकूदा को इज्जत देने के लिए सिर्फ करना ये है कि एक खास टाइम पर उसके लिए अपने-अपने घरों में मौजूद छोटे दरवाजे को खोल देना है. अगर कोई ऐसा नहीं कर पाता तो उसे अजीब सी बीमारी हो जाती है और वो अगले 13 दिनों में चल बसता है.


सनी (साकिब सलीम) एक दिन काकूदा की इज्जत में चार चांद लगाना भूल जाता है और वो काकूदा के गुस्से का शिकार हो जाता है. उसकी बीवी इंदिरा (सोनाक्षी सिन्हा) उसे बचाने के लिए एक घोस्ट हंटर (रितेश देशमुख) को ढूंढ कर लाती है. जो गांव वालों को इस भूत से बचाने की कोशिश करता है. अब वो ऐसा करने में सफल हो पाता है या नहीं, ये जानने के लिए आपको फिल्म देखनी चाहिए.


एक्टिंग
फिल्म हॉरर कॉमेडी है तो भूत वाले डर के साथ हंसाने वाली एक्टिविटीज की जरूरत थी. इस जरूरत को पूरा करने के लिए 'पंचायत' फेम आसिफ खान को रखा गया है. वो अच्छा कर गए हैं. रितेश देशमुख अपने अंदाज में हैं जैसा उन्हें पहले भी देखा गया है.


स्क्रिप्ट में ऐसा कुछ भी नहीं था जिसकी मदद से सोनाक्षी सिन्हा कुछ कर पातीं. इसलिए, वो बस अपना काम कर गई हैं. साकिब सलीम की मेहनत दिखती है, लेकिन वो सिर्फ कोशिश करते हुए नजर आए. एक्टिंग के लिहाज से सबने अपने-अपने हिस्से का उतना काम कर दिया है, जितना स्क्रिप्ट ने उन्हें इजाजत दी.


डायरेक्शन
फिल्म का डायरेक्शन 'मुंज्या' जैसी हिट हॉरर कॉमेडी बनाने वाले आदित्य सरपोतदर ने किया है. इस फिल्म में वो 'मुंज्या' जैसा कसाव लाने में वो असफल साबित हुए हैं. पूरी फिल्म में वो 'स्त्री' और 'भेड़िया' को कॉपी करने की कोशिश करते दिखे हैं. स्क्रिप्ट में इंप्रोवाइजेशन की जरूरत थी. कहानी भी 'स्त्री' का स्पूफ लगती है. कुल मिलाकर वो 'मुंज्या' जैसा जादू दिखाने में कामयाब नहीं रहे. उनकी बेबसी झलकती है.


फिल्म क्यों देखें और क्यों नहीं
एक टाइम बाद लगभग दो घंटे की फिल्म इतनी बोरिंग हो जाती है कि लगता है कि इतनी लंबी क्यों बना दी. फिल्म का आधा घंटा कम कर दिया जाता तो शायद फिल्म थोड़ी देखने लायक बन सकती थी. 



  • फिल्म में और भी बहुत सी कमियां हैं जैसे 'स्त्री' जैसी सिचुएशनल कॉमेडी कहीं नहीं दिखी. आप हंसने के इंतजार में ही बैठे रह जाएंगे.

  • न तो वीएफएक्स और स्पेशल इफेक्ट्स की मदद से बनाया गया भूत डरा पाता है और न ही अंधेरी रात में बैकग्राउंड में बज रहा डरावना म्यूजिक.

  • फिल्म देखते-देखते आपको लगने लगेगा कि शायद आप कोई ऐसा सुपरनैचुरल डेलीसोप देख रहे हैं, जिसका न तो अंत हो रहा है और न ही मजा आ रहा है.

  • 127 चुड़ैल 72 पिशाच 37 भूत और 3 जिन्न को मुक्त करने वाले रितेश देशमुख भी 'काकूदा' का कुछ नहीं कर पाए.

  • बच्चों को ये फिल्म पसंद आ सकती है, क्योंकि उनको हंसाने भर की चीजें हैं. और फिल्म में कोई आपत्तिजनक सीन भी नहीं हैं.


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