Kalki 2898 AD Review: फिल्में क्यों बनाई जाती हैं, पैनी नजर से फिल्म को समझने रिव्यूअर्स के लिए, इतिहासकारों के लिए, मायथौलॉजी को समझने वालों के लिए, या ऑडियंस के लिए. जवाब आपको पता है और इस फिल्म को देखते हुए मुझे लगा कि ऑडियंस के लिए ये फिल्म समझना मुश्किल है, काफी मुश्किल है. मेरे आगे बैठे पत्रकार ने फिल्म की एनिमेशन और वीएफएक्स देखकर कहा कि बच्चों को लाना चाहिए था और पीछे वाले ने कहा कि अगर बेटी को ले आता तो वो पूछती -पापा यहां डांट खाओगे या घर जाकर. फिल्म देखते हुए कई लोगों से पूछा कि समझ आ रही है तो मुंबई की एक बड़ी पत्रकार ने कहा कि जैसा कि फिल्म में कहा है कि दुनिया में एक ही साइड होती है, खुद की, सेल्फिश बनो और ये फिल्म मत देखो. माना कि फिल्म पर काफी पैसा खर्च हुआ है, स्केल ग्रैंड है, बड़े स्टार्स हैं, वीएफएक्स अच्छा है, काफी कुछ दांव पर है लेकिन भाई समझ भी तो आए.
कहानी
इस फिल्म की कहानी आसानी से समझ नहीं आती. ये कहानी हिंदू पौराणिक कथाओं का मिक्स है. महाभारत में कौरव और पांडवों के युद्ध के बाद अश्वत्थामा को श्रीकृष्ण श्राप देते हैं, जिसमें वो कहते हैं कि वो जिंदा रहेगा और कलयुग में जब पाप बढ़ जाएगा तो उसको खत्म करने के लिए फिर भगवान को जन्म होगा और तुम्हें उसकी रक्षा करनी होगी. फिर कहानी कई हजार साल आगे जाती है. सबसे पहले और पुराने शहर काशी में ,वहां सुप्रीम यास्किन यानि वहां का डॉन फर्टाइल लड़कियों को अलग से बंदी बनाकर रखता है. वो एक ऐसी प्रेग्नेंट लड़की ढूंढ रहा है जिसका DNA उसे फिर से ताकतवर बना दे. वो बच्चा सुमति यानि दीपिका पादुकोण के गर्भ में पल रहा है. अश्वत्थामा यानि अमिताभ बच्चन उसे बचाना चाहता है, भैरवा यानि प्रभास सुमति को यास्किन को देना चाहता है क्योंकि वो उसकी बाउंटी यानि ईनाम है. इसके बदले उसे पैसे मिलेंगे जिससे वो यास्किन को कॉम्पलैक्स में ले जा सके. कहानी में एक कॉम्पलैक्स का जिक्र और ये कहानी अपने आप में काफी कॉम्पलैक्स है. दिमाग पर काफी जोर लगाना पड़ता है तब भी समझ नहीं आती और ऐसा लगता है जैसे दिमाग में हार्ट अटैक आ जाएगा.
कैसी है फिल्म
शुरू में फिल्म समझ ही नहीं आती कि हो क्या रहा है और क्यों हो रहा है और हम ये फिल्म देखने क्यों आए. बस सब चल रहा होता है और आप आसपास के लोगों से पूछ रहे होते हैं कि कुछ समझ आया. काफी देर बाद इंटरवल हो जाता है, इस बीच शायद आप थोड़ी नींद भी ले लें. इंटरवल के बाद फिल्म थोड़ी बेहतर होती है, अच्छे वीएफएक्स दिखते हैं, ग्रैड स्कैल दिखता है, और आखिरी के 35 मिनट में आपको लगता है कि फिल्म में कुछ है. वर्ना पूरी फिल्म जेल लगती है, समझ से परे लगती है. अगर आपको माइथोलॉजी की जानकारी है तो शायद फिल्म आपकी समझ में आसानी से आए लेकिन फिल्म हम दिमाग पर इतना ज्यादा जोर डालने के लिए नहीं देखने जाते, एंटरटेनमेंट के लिए जाते हैं. जो यहां बहुत कम मिलता है, कुछ ही सीन ऐसे हैं जो देखने में थोड़े अच्छे लगते हैं. वो भी अमिताभ बच्चन के, बाकी ये फिल्म देखकर ऐसा ही लगता है जैसे आपके साथ कोई हादसा हो गया है. पार्ट 2 में शायद कहानी ठीक से समझ में आए और ये फिल्म लोगों को भाए लेकिन ये पार्ट तो काफी एवरेज है.
एक्टिंग
अमिताभ बच्चन की एक्टिंग शानदार है, उन्हीं के लिए ये फिल्म देखी जा सकती है. वो हर सीन में दमदार लगते हैं, और इस फिल्म की सबसे अच्छी चीज उन्हीं की एक्टिंग है. प्रभास ने निराश किया है, वो क्या कर रहे हैं समझ नहीं आता, कभी वो किसी कार्टून कैरेक्टर की तरह नाचना शुरू कर देते हैं तो कभी चिल्लाना, ना वो एक्सप्रेशन दे पाए हैं. दीपिका ने ये फिल्म क्यों की ये भी समझ नहीं आया क्योंकि उनके करने के लिए इसमें कुछ था नहीं. इस फिल्म में उन्हें वेस्ट कर दिया गया है. कमल हासन का काम अच्छा है लेकिन उनके पास करने को ज्यादा कुछ नहीं था. फिल्म में कई कैमियो हैं, विजय देवराकोंडा से लेकर, एस एस राजमौली, मृणाल ठाकुर से लेकर ब्रह्मानंदम, राम गोपाल वर्मा से लेकर दिशा पाटनी, और सोचिए फिल्म में पहली बार दिलचस्पी रामू और दिशा के कैमियो से आती है लेकिन ये सारे कैमियो कोई खास असर नहीं छोड़ पाते.
डायेरक्शन
नाग अश्विन का विजन बड़ा है, स्केल बड़ा है, स्टारकास्ट बड़ी है, बजट बड़ा है लेकिन कहानी को पेश करने का तरीका एंटरटेनिंग नहीं है. कहानी ऐसी नहीं होनी चाहिए कि दर्शक को समझ ही नहीं आए. यहां ऐसा ही होता है, शुरुआत इतनी खराब है कि आप फिल्म छोड़कर जाने का सोचते हैं. नाग अश्विन का डायरेक्शन एवरेज है, उन्हें फिल्म में और मसाले डालने चाहिए थे, इसे सिंपल बनाना चाहिए था.
कुल मिलाकर इस फिल्म को देखकर एंटरटेन होंगे लेकिन आखिर में, वो भी थोड़ा सा, और अगर इसके लिए और अमिताभ बच्चन के लिए आप ये फिल्म देखना चाहें तो देख सकते हैं.
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