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Kota Factory 2 Review: स्क्रिप्ट और ऐक्टर्स के परफॉर्मेंस से बांधती है वेब सीरीज, जितेंद्र कुमार जीतते हैं दिल

Kota Factory 2 Review: कोटा फैक्ट्री का पहला सीजन लोकप्रिय हुआ था. वहीं इस बार छात्रों पर प्रतियोगी परीक्षाओं के दबाव के साथ नजर आएगा कि नतीजों से कैसे कोचिंग संस्थानों का कारोबार जुड़ा रहता है.

समय बदल गया है और अब आपको अपने सपनों को लक्ष्य में परिवर्तित कर लेना चाहिए. सपनों के साथ सुविधा है कि उन्हें देखते रहने भर से काम चल सकता है. पूरे न हों तब भी उनकी चमक बनी रहती है. जबकि लक्ष्य सिर्फ हासिल करने के लिए है. पाए बिना लक्ष्य का कोई अर्थ ही नहीं. इंजीनियर बनने की ख्वाहिश लिए किशोरों-युवाओं की राजस्थान के शहर कोटा में बसी हुई दुनिया की यह कहानी अपने दूसरे सीजन के साथ हाजिर है. इस बार नेटफ्लिक्स पर. इसका पहला सीजन टीवीएफ प्ले और यू-ट्यूब पर आया था. नए सीजन में भी कहानी पहले सीजन की तरह ठीक सधे अंदाज में बढ़ती है, जैसे तीर निशाने पर. दाएं-बाएं भटकाव नहीं. आईआईटी क्रैक करने की जंग में उतरे वैभव पांडे, बालमुकुंद मीणा, उदय गुप्ता, शिवांगी राणावत, वर्तिका रतावल और मीनल पारेख के संग पूरे रंग मगर नई मंजिल पर निकले टीचर जीतू भैया भी यहां प्रॉडिजी क्लासेस और माहेश्वरी क्लासेस के साथ मौजूद हैं.

कोटा फैक्ट्री का रंग दूसरे सीजन में भी ब्लैक एंड व्हाइट है क्योंकि यहां सपने अभी पूरे नहीं हुए हैं. भविष्य किसी को नहीं पता. नए सीजन में वैभव पांडे (मयूर मोरे) को माहेश्वरी क्लासेस में कुछ मुश्किलें आ रही हैं. उधर प्रॉडिजी क्लासेस को जीतू भैया (जितेंद्र कुमार) ने अलविदा कह दिया है और अपना सेंटर, एमर्स (लक्ष्य साधने वाले) शुरू करने की उनकी तैयारी है. वैभव और वर्तिका (रेवती पिल्लई) की देखा-देखी वाली लव स्टोरी यहां एक-दूसरे को डेट करने तक आगे बढ़ती है. जबकि मीना उर्फ बालमुकुंद पांडे (रंजन) परेशान है कि मीनल पारेख (उर्वी सिंह) के लिए उसके दिल में उठे तूफान से पढ़ाई प्रभावित हो रही है. साथ ही उसे एक गंदी आदत भी लग गई है. उदय गुप्ता (आलम खान) और शिवांगी राणावत (एहसास चानना) का प्रेम पहले सीजन के सिग्नल पर ही खड़ा है. पांच कड़ियों वाले सीजन टू में पहले के मुकाबले किरदारों के जीवन में अधिक विस्तार नहीं है, लेकिन लगातार नई परिस्थितियां सामने आती हैं.


Kota Factory 2 Review: स्क्रिप्ट और ऐक्टर्स के परफॉर्मेंस से बांधती है वेब सीरीज, जितेंद्र कुमार जीतते हैं दिल

कोटा फैक्ट्री के नए एपिसोड में कहीं भी इतने जटिल हालात नहीं उभरते कि उथल-पुथल मच जाए. न ही किरदारों की पढ़ाई में और न निजी जिंदगी में. थोड़ी हलचल अगर किसी के जीवन में दिखती है तो वह है वैभव. फिजिक्स की क्लास में कुछ समझ न आना, उसका अस्वस्थ होना, थोड़ी उदासी, थोड़ा प्रेम उसके कहानी के केंद्र में बनाए रखते हैं. यहां दूसरा फोकस जीतू सर पर है. वह अपना इंस्टीट्यूट शुरू कर रहे हैं. इसमें उन्हें क्या-क्या मुश्किलें आ रही हैं और कैसे हंसते-हंसते बहादुरी से वह हालात का सामना कर रहे हैं, यह दिखता है. पहले सीजन की तरह जीतू सर सेकेंड में भी अपने शिष्यों के निजी जीवन की जटिलताओं को आसान बना रहे हैं. जीतू सर के ‘मार्गदर्शक’ रूप को देखते हुए एक एपिसोड में अचानक आप महसूस करते हैं कि कहानी नेटफ्लिक्स की ही वेब सीरीज ‘सेक्स एजुकेशन’ के किसी देसी संस्करण में पहुंच गई है.

अंतिम एपिसोड में यह सीरीज प्रतियोगी परीक्षाओं के परिणामों के दौरान कोटा के वातावरण को सामने लाती हैं. आप पाते हैं कि ये नतीजे छात्रों के जीवन से ज्यादा संस्थानों और मीडिया के लिए अहम हो जाते हैं क्योंकि इससे उनका करोड़ों का कारोबार ऊपर-नीचे होता है. नए सीजन में कहानी का पहले सीजन के ट्रेक पर ही चलना और कुछ खास नयापन न होना फैन्स को थोड़ा निराश करेगा. कुछ दृश्य भी यहां लंबे-लंबे हैं. जिन्हें संपादित करने की जरूरत महसूस होती है. सीरीज की गति कई जगह बहुत धीमी है. मगर स्क्रिप्ट और परफॉर्मेंस के स्तर पर कोटा फैक्ट्री दर्शक को बांधे रहती है. पुनीत बत्रा, सौरभ खन्ना, अरुणाभ कुमार ने अपनी राइटिंग में ढील नहीं आने दी. इसी तरह राघव सुब्बू का निर्देशन भी माहौल और किरदारों के हिसाब से है.


Kota Factory 2 Review: स्क्रिप्ट और ऐक्टर्स के परफॉर्मेंस से बांधती है वेब सीरीज, जितेंद्र कुमार जीतते हैं दिल

दूसरे सीजन में घटनाओं की जगह भावनाएं उभारने पर जोर दिया गया है. सभी कलाकार बढ़िया हैं और अपने-अपने किरदारों में जमते हैं. मगर जितेंद्र कुमार दिल जीत लेते हैं. जीतू सर के पास हर सवाल का जवाब और हर मुश्किल परिस्थिति से निकलने का रास्ता है. उनकी बातें हारे हुए मन को प्रेरित करती हैं. यह सीरीज महत्वाकांक्षी युवाओं के लिए है. जो आईआईटी जैसी परीक्षाएं क्रेक करना चाहते हैं. ऐसे युवाओं को यह वेब सीरीज अपने से जोड़ेगी मगर जो ऐसी परीक्षाओं के दौर से गुजर चुके हैं, उन्हें भी पुराने दिनों की याद दिलाएगी. अगर आप कोटा फैक्ट्री के पहले सीजन में इसके मुरीद थे, तो निश्चित ही दूसरा भी आपको देखना चाहिए. निराश नहीं होंगे. दूसरे सीजन की कहानी वहीं से आगे बढ़ती है, जहां खत्म हुई थी. दूसरा सीजन तीसरे के दरवाजे-खिड़कियां खोलते हुए खत्म होता है. यानी बात अभी और आगे बढ़ेगी.

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