Abhay season 3 review: ओटीटी दुनिया की चर्चित अपराध-सीरीजों में शुमार 'अभय' का तीसरा सीजन आ गया है. स्पेशल टास्क फोर्स के जांबाज अधिकारी अभय प्रताप सिंह के रूप में कुणाल खेमू पुराने अंदाज में लौटे हैं. नई सीरीज में पिछले दो सीजन की तरह अपराध और थ्रिल बरकरार हैं. आठ कड़ियों में एक के बाद एक होने वाली हत्याएं और क्रूर हत्यारे अभय के लिए नई चुनौतियां पेश करते हैं.


अभय के लिए एक समस्या यह भी खड़ी होती है कि वह न्यूज एंकर-मॉडल सोनम खन्ना (आशा नेगी) की हत्या के शक के घेरे में आ जाता है. अभय की जूनियर खुशबू (निधि सिंह) उसे पूछताछ के लिए हिरासत में तक ले लेती है. एक एंगल यहां अभय के बेटे साहिल का है. मां को खोने के बाद वह भावनात्मक रूप से परेशान है. उसे सहारे की जरूरत है. कौन बनेगा उसका सहारा और इसका क्या परिणाम होगा, यह सीरीज का रोचक पक्ष है. इस तरह अभय के नए सीजन में पर्याप्त ड्रामा है.


अभय सीजन 3 इस मायने पिछले दो सीजन से अलग है कि इस बार छोटी-छोटी कहानियों के बजाय केवल दो ही हादसों को यहां समेटा गया है. दोनों में सीरियल किलर हैं. पहली घटना के केंद्र में कबीर (तनुज विरवानी) और हरलीन (दिव्या अग्रवाल) हैं. दोनों लोकप्रिय सोशल मीडिया इंफ्लूएंसर हैं और एनआरआई हैं. कनाडा के नागरिक हैं और दिल्ली में रहते हैं. दिल्ली के आस-पास के इलाकों में दो साल में पांच हत्याएं हो चुकी हैं. हर बार कोई किसी को कार से उतार कर जंगलों में ले जाता है और बेरहमी से मार देता है. हत्यारे का पता नहीं चल रहा. एक व्यक्ति को शक के घेरे में गिरफ्तार भी किया गया, मगर बात कुछ और है. इस केस को अभय सुलझाता है.


दूसरा केस सीरीज में करीब छह कड़ियों में फैला है. इसके थ्रिल को बारीकी से बुना गया है. यहां एक पागलखाने के हेड हैं, डॉ. अनंत सिन्हा (विजय राज). मनोरोगियों का यह अस्पताल एक रहस्यमयी जगह है और डॉ. अनंत भी. यह कहानी जीवन-मृत्यु के दर्शन की बात करती है. इसमें रहस्यमयी हत्या के शिकार हुए हर व्यक्ति के पास ‘अनंत’ यानी इनफिनिटी का चिह्न (∞) बना मिलता है. फिर धीरे-धीरे ऐसा पंथ सामने आता है, जो मृत्यु की पूजा करता है. वह मानता है कि जीवन कुछ नहीं, बस एक सपना है. जीवन से चिपके रहने का मोह छूट जाए तो व्यक्ति जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त हो सकता है.


अच्छे कर्म करने वाले लोगों को मुक्ति देने का यहीं विचार यहां हत्याओं की वजह है. इन हत्याओं के पीछे कौन है और किस-किस ढंग से हत्याएं होती हैं, कहानी यहीं बात सामने लाती है. इन हत्याओं की वजह और हत्यारे को ढूंढते हुए अभय की यात्रा आगे बढ़ती है. इस बीच उसकी निजी जिंदगी की काली छायाएं भी उसके साथ चलती हैं. इंस्पेक्टर खुशबू इस बार अभय के साथ नहीं है और वह एक अलग उलझन को सुलझाने में लगी है.


अभय की तीसरा सीजन उन दर्शकों के लिए है, जो पहले दो सीजन पसंद कर चुके हैं. साथ ही यह उनके लिए भी है, जिनकी दिलचस्पी अपराध कथाओं में होती है. इस बार नेगेटिव किरदार इस तरह गढ़े गए हैं कि वे मन में दहशत भी पैदा करते हैं. खास तौर पर विजय राज यहां असरदार हैं. उनकी एक्टिंग के साथ उनका गेट-अप भी रोचक है. लेकिन यहां क्रूर शार्पशूटर अवतार के रूप में राहुल देव और डॉ. अनंत की सबसे विश्वासपात्र निधि के रूप में विद्या मालवडे के नेगेटिव किरदारों से न्याय नहीं हो पाया है. उन्हें जगह भले ही पर्याप्त मिली मगर उनके ट्रैक में विविधता का अभाव खटकता है. यह कहानी पूरी तरह से विजय राज के आस-पास सिमट जाती है.


कुणाल खेमू नए सीजन को भी लीड करते हैं और प्रभाव छोड़ते हैं. वह अब एक मैच्योर ऐक्टर की तरह नजर आते हैं. विजय राज जैसे मंजे खिलाड़ी के सामने भी वह कमजोर नहीं पड़े. विजय राज की भूमिका इस सीजन में याद रहने जैसी है. निर्देशक केन घोष ने सीरीज और नए सीजन पर अपनी पकड़ बनाए रखी है. यही कारण है कि अभय आठ कड़ियों के तीसरे सीजन में भी एंटरटेन करती है. यह जरूर है कि सीरीज को ज्यादा प्रभावी बनाने के लिए यहां अंधेरा कुछ ज्यादा गाढ़ा कर दिया गया. कुछ दृश्य कमजोर दृश्य वालों को चौंका सकते हैं.


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