Leo Review In Hindi: थलापति विजय एक ऐसे स्टार हैं जो जब स्क्रीन पर आते हैं तो उनके फैंस सीटियां तालियां खूब बजाते हैं. लियो में ही ऐसा ही हुआ. विजय के स्क्रीन पर आते ही थिएटर में बवाल मच गया. सुबह 9.30 बजे का हिंदी वाला शो 80 पर्सेंट फुल था और तमिल वाला शो 100 पर्सेंट. यही स्टारडम होता है लेकिन क्या स्टारडम ही अच्छी फिल्म का पैमाना है. तो जवाब है नहीं लियो एक वन टाइम वॉच है. जिसका फर्स्ट हाफ अच्छा है तो सेकेंड हाफ आपके सब्र का इम्तिहान बहुत अच्छे से लेता है.
कहानी
ये कहानी एक पार्थीबन नाम के ऐसे शख्स की है जो हिमाचल में अपने परिवार के साथ रहता है. बीवी दो बच्चे एक कैफे, आराम की जिंदगी लेकिन अब कहानी में हीरो विजय हैं तो एंट्री दमदार होनी चाहिए. तो शुरुआत में ही वो गांववालों को एक खूंखार जानवर से बचाते हैं और पता चलता है कि इस सीधे सादे आदमी की हकीकत कुछ और ही है. फिर कहानी में संजय दत्त आते हैं जो पार्थीबन से कहते हैं कि वो लियो है. जिसका एक खूंखार इतिहास है. अब कौन है ये लियो क्या पार्थबन ही लियो है. क्या है लियो की कहानी क्यों होता है इस कहानी में इतना खून खराबा. ये देखने के लिए आप चाहें तो थिएटर जा सकते हैं लेकिन हां विजय के फैन हैं तो ही जाइएगा.
कैसी है फिल्म
शुरुआत अच्छी है लेकिन वही साउथ इंडियन मसाला फिल्मों जैसी है. हीरो है तो कुछ भी करेगा लेकिन फिर भी फर्स्ट हाफ विजय के स्टाइल, स्वैग और एक्शन की वजह से ठीक लगता है. मजा आता है लेकिन सेकेंड हाफ खत्म होने का नाम ही नहीं लेता. संजय दत्त की एंट्री तो जबरदस्त तरीके से होती है लेकिन उनके आते ही फिल्म ढीली पड़ जाती है. फिल्म में कई एक्शन सीन हैं जो शानदार हैं लेकिन ये सब देखकर ऐसा लगता है कि सब देखा देखा है. कुछ नया नहीं हैं. फिल्म का सस्पेंस कोशिश करता है कि आप थिएटर में दिलचस्पी बनाए रखें लेकिन सेकेंड हाफ इतना खिंच जाता है कि आप बोर होते हैं और फिल्म खत्म होने का इंतजार करते हैं. सिर्फ एक विजय हैं जिनके सहारे आप ये फिल्म देख जाते हैं तो विजय के लिए ही जाइएगा वर्ना पैसे खराब होंगे.
एक्टिंग
विजय की एक्टिंग जबरदस्त है. उनका स्टाइल, उनका स्वैग, स्क्रीन पर आग लगा देता है. उनके यंग और ओल्ड दो वर्जन दिखते हैं और दोनों में वो कमाल लगते हैं. उनके फैंस खूब तालियां सीटियां बजाते हैं. त्रिशा फिल्म में अच्छी लगती हैं. उनकी एक्टिंग भी अच्छी है. संजय दत्त ने ठीक ठाक काम किया है. ऐसे रोल अब वो बहुत कर चुके हैं तो उन्हें अब ऐसे रोल मना कर देने चाहिए. बाकी के किरदार ठीक हैं लेकिन एक दमदार विलेन की कमी काफी महसूस होती हैं.
डायरेक्शन
लोकेश कनागराज का अपना एक स्टाइल है. जो इस फिल्म में भी दिखता है लेकिन उनसे उम्मीदें ज्यादा थी. एक सुपरस्टार के साथ जब आप फिल्म बनाते हैं तो ओपनिंग तो मिल जाती है लेकिन आगे का सफर फिल्म का कंटेंट तय करता है और यहां कंटेंट वन टाइम वॉच है. सेकेंड हाफ में फिल्म पर पकड़ ढीली हो जाती है. फिल्म को आराम से छोटा किया जा सकता था लेकिन ऐसा नहीं किया गया और इसका खामियाजा दर्शक भुगतता है.
म्यूजिक
अनिरुद्ध रविचंदर का म्यूजिक अच्छा है. बैकग्राउंड म्यूजिक भी शानदार है फिल्म को एक पेस देता है.
कुल मिलाकर विजय के फैंस को ही ये फिल्म पसंद आएगी. फैन हैं तो ही देखें वर्ना ओटीटी पर आने का इंतजार कर लें.