Little Things Season 4 Review: नए जमाने में लंबे लिव-इन का हुआ अंत, ध्रुव और काव्या के रोमांस को आखिर मिली मंजिल
Little Things Season 4 Review: प्यार की नोक-झोंक और रूठने-मनाने वाली वेब सीरीज लिटिल थिंग्स का चौथा सीजन जरा अलग है. ध्रुव-काव्या बातों को उलझाने के बजाय यहां सुलझाने में लगे हैं.
निर्देशकः रुचिर अरुण, प्रांजल दुआ
कलाकारः ध्रुव सहगल, मिथिला पालकर, नवनी परिहार, ऋषि देशपांडे, लवलीन मिश्रा, पवन चोपड़ा
Little Things Season 4 Review: यूट्यूब से शुरू होकर नेटफ्लिक्स पर पहुंची भारत की सबसे सफल वेब सीरीजों में शामिल लिटिल थिंग्स चौथे सीजन में अपने मुकाम पर पहुंच गई है. ध्रुव वत्स (ध्रुव सहगल) और काव्या कुलकर्णी (मिथिला पालकर) की बाबू-शोना टाइप लव स्टोरी कभी हां कभी ना होते-होते अंतत ‘हैप्पी एंड’ में तब्दील हो गई. खास तौर पर विकसित शहरी और महानगरीय जीवन शैली वाले नए जमाने के प्रेमी जोड़ों को आकर्षित करने वाली लिटिल थिंग्स में करीब छह साल की लव/लिव-इन रिलेशनशिप का क्या नतीजा होगा, इसका इंतजार फैन्स को था.
इस बार शुरुआत ध्रुव-काव्या के करीब साल भर तक दूर रहने के बाद बेंगलुरु में मिलने के साथ होती है. सवाल यह कि दूरियां दोनों को फिर से कैसे और कितना नजदीक लाईं? पिछले तीन सीजन में जहां रिश्तों की उलझनें थीं, इस बार वह समझदारी के साथ सुलझती नजर आती हैं. साफ है कि लोग जीवन में ही बड़े नहीं होते, कहानियों में भी बड़े होते हैं.
प्रेम कहानियों की खूबी यह होती है कि वह कभी सीधे रास्ते पर नहीं चलतीं. उसमें समय-समय पर झटके लगते हैं. लिटिल थिंग्स के चौथे सीजन की शुरुआत में जब लगता है कि गाड़ी पटरी पर आने को है और काव्या-ध्रुव का मिलना रंग लाएगा कि तभी फिर हालात करवट बदलते हैं. नायिका को अपना 30वां जन्मदिन अकेले मनाना पड़ता है! नायक दफ्तर के काम की वजह से नहीं आ पाता. इस बात को तूल नहीं दिया जाता और नागपुर से लौटी काव्या तथा बेंगलुरु से निकला ध्रुव नए सिरे से मुंबई में जमने और जीवन शुरू करने का मन बनाते हैं.
लिटिल थिंग्स प्रेमियों के जीवन की छोटी-छोटी बातों पर आधारित है. ध्रुव सहगल ने पहले तीन सीजन लिखे थे लेकिन इस बार राइटरों की एक टीम है. चौथा सीजन भी खूबसूरती से लिखा गया है. इस बार दोनों युवा अपने जीवन के उतार-चढ़ावों का समझदारी के साथ सामना करते दिखते हैं. पुरानी नोकझोंक, रूठना-मनाना यहां गायब है. करीब आधे-आधे घंटे के आठ एपिसोड वाले इस सीजन में क्लाइमेक्स रोचक है. दोनों के माता-पिता उनके फ्लैट में आते और साथ रहते हैं. पार्टी भी होती है और बिना किसी शोर-शराबे-हंगामे के ध्रुव और काव्या के फैसले को सभी स्वीकार करते हैं. हालांकि आपको यह भी महसूस हो सकता है कि क्या इतनी आसानी और सरलता से सब कुछ निपट जाता है. शायद हां, बरसों के लिव-इन में रह रही काव्या ध्रुव से कहता है कि अब तो मुझे ऐसा लगता है, मानो मैं शादीशुदा हूं.
भले ही यह प्रेम कहानी चार सीजन लंबी है लेकिन इसमें कहीं भी टीवी सीरियलों जैसा शोर, हल्ला और ड्रामा नहीं है. यहां जीवन जैसा होता है, वैसा है. ध्रुव और मिथिला की जोड़ी सहज लगती है. युवा प्रेमियों की केमिस्ट्री को स्क्रीन पर जीते हुए दोनों को देख कर नहीं लगता कि वे अभिनय कर रहे हैं. कहानी बताती है कि रिश्ते में एक-दूसरे के लिए प्यार के साथ समझ भी जरूरी है. ध्रुव और काव्या का रिश्ता प्रेम से शुरू होता हुआ अंतिम सीजन में पूरी गंभीरता से शादी, बच्चे, कामकाज, इनके बीच संतुलन और एक उम्र के बाद जीवन में आने वाले बदलावों पर विचार करता है. ऐसे में उन दर्शकों को थोड़ी निराशा हो सकती है जो पिछले तीन सीजन की तरह सिर्फ प्यार, नोक-झोंक, पार्टी, दोनों के जीवन में नए किरदारों की एंट्री की उम्मीद लगाए हैं. इस मामले में नया सीजन पहले से अलग है. संभवतः इसकी वजह यह है कि ध्रुव और काव्या समय के साथ न केवल बड़े हो रहे हैं बल्कि उम्र के साथ उनकी समझ भी पक रही है. वे जिंदगी को तेज-रफ्तार भागदौड़ और महत्वाकांक्षाओं से हट कर देखने लगे हैं. यही अधिकांश के जीवन में होता भी है.
अंतिम दो एपिसोड में लिटिल थिंग्स की कहानी को जिस तरह से खत्म किया गया है, वह सुंदर है. ध्रुव और काव्या के माता-पिता उनके साथ हैं. अचानक सब कुछ बदलता है. लेखकों की टीम और रुचिर अरुण-प्रांजल दुआ के निर्देशन में कसावट है. ध्रुव सहगल और मिथिला पालकर ने अपने किरदारों को जीया है. ध्रुव अपने छोटे और चुटीले संवादों से प्रभावित करते हैं जबकि मिथिला की चुलबुली अदाएं और मुस्कान छाप छोड़ती है. फैन्स दोनों को इस सीरीज के लिए लंबे समय तक याद रखेंगे. साथ ही उनकी नजर इस बात पर भी रहेगी कि यह टीम अब क्या नया कंटेंट लाएगी.
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