Maharaj Review: सवाल न पूछे वो भक्त अधूरा और जवाब न दे सके वो धर्म अधूरा...ये फिल्म धर्म के ठेकेदारों से सवाल जवाब करती है. ये डायलॉग इसी फिल्म का है लेकिन इस फिल्म में खुद ही कुछ अधूरा है, अच्छा स्क्रीनप्ले, अच्छा डायरेक्शन और अच्छी एक्टिंग, कुछ दिन पहले Court ने इस फिल्म पर रोक लगा दी थी. इसके बाद लगा कि शायद बड़ी बवाल फिल्म होगी लेकिन रोक हटने के बाद भी ये कुछ बवाल नहीं कर पाएगी, ऐसी ही कहानी पर 'सिर्फ एक बंदा काफी है' आई थी और कमाल की फिल्म थी, यहां 2 बंदे जुनैद और जयदीप अहलावत भी काफी नहीं हैं.


कहानी


ये फिल्म सौरभ शाह की किताब 'महाराज' पर आधारित है. ये 1862 के महाराज लाइबल केस पर बनी है, जो बॉम्बे हाई कोर्ट में लड़ा गया था, ये उस समय के मशहूर पत्रकार और सोशल वर्कर करसन दस मुलजी की कहानी है, जो समाज में फैली कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठाते थे. जब उन्होंने देखा कि एक धर्म गुरु Jadunath महाराज उर्फ औरतों का शारीरिक शोषण कर रहा है तो उन्होंने उसके खिलाफ आवाज उठाई. चरण सेवा के नाम पर औरतों का शोषण करता था और जब करसन की मंगेतर के साथ ऐसा हुआ तो करसन चुप नहीं रहा, उसने आवाज और कलम दोनों उठाए, jj ने करसन पर मानहानि का केस कर दिया और ये केस करसन जीत गया.


कैसी है फिल्म


ऐसे मुद्दों पर पहले भी फिल्में बनी हैं, एक बंदा काफी है काफी चली भी, लेकिन यहां फिल्म कमजोर लगती है, लगता नहीं ये आमिर खान के बेटे की Debut फिल्म है. स्क्रीनप्ले कमजोर है, डायरेक्शन में दम नहीं, कोई ऐसा सीन नहीं जो आपको हिला डाले, ऐसा लगता है जैसे फिल्म काफी कम बजट में बनाई गई है, प्रोडक्शन वैल्यू काफी कम लगती है, फिल्म को झेलना मुश्किल हो जाता है, और ये फिल्म आपको ऐसा कुछ नहीं देती जिसके लिए आप अपना 2 घंटे से ज्यादा का वक्त खर्च करें.


एक्टिंग


सबकी नजरें जुनैद खान पर थी, आमिर खान के बेटे, लेकिन ये फिल्म देखकर लगा कि वो बेहतर डेब्यू डिजर्व करते थे, यहां वो कोई खास असर नहीं छोड़ पाते. उनसे और बेहतर की उम्मीद है, जयदीप अहलावत से अब उम्मीदें हद से ज्यादा बढ़ चुकी हैं, वो हैं ही इतने कमाल के एक्टर लेकिन यहां जयदीप के पहली बार निराश किया, इस किरदार में उनसे और ज्यादा बेहतर एक्टिंग की उम्मीद थी, लेकिन वो कहीं कोई खास असर नहीं छोड़ पाए, शालिनी पांडेय का काम अच्छा है, शरवरी ने सबसे अच्छा काम किया है लेकिन जब फिल्म का स्क्रीनप्ले और मेन कैरेक्टर कमजोर होंगे तो हीरोइन क्या कर लेगी.


डायरेक्शन


Siddharth P Malhotra का डायरेक्शन एवरेज है, वो फिल्म में कोई ऐसा सीन नहीं डाल पाए जो रौंगटे खड़े कर दे. फिल्म को बस डायरेक्ट कर दिया गया है, यशराज बैनर ने ये फिल्म इस तरह से क्यों बनने दी ये समझ से परे है


कुल मिलाकर इससे अच्छा 'सिर्फ एक बंदा काफी है' दोबारा देख लीजिए.


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