Mumbai Diaries 26/11 Review: 26 नवंबर 2008 को मुंबई पर हुए भीषण आतंकी हमले की यह दहलाने वाली तस्वीर है. विश्व इतिहास की सबसे कायराना और शर्मनाक आतंकी घटनाओं में शुमार इस हमले को निर्माता-निर्देशक निखिल आडवाणी ने एक अलग सिरे से पकड़ा है. सिनेमा ऐसे हादसों को या तो सुरक्षा बलों के नजरिये से देखता है या कभी आतंकियों के नजरिये से. कभी घटना को जस-का-तस फिल्माने की कोशिश होती है. मगर डी-डे और बाटला हाउस जैसी फिल्मों के निर्देशक ने 26/11 की अपनी कहानी में, अक्सर नजरअंदाज कर दिए जाने वाले मेडिकल-जवानों के साहस, शौर्य और बलिदान को दिखाया है.


इस हमले में पाकिस्तान से आए आतंकियों ने दक्षिण मुंबई के कामा अस्पताल को भी निशाना बनाया था मगर जांबाज पुलिस वालों ने उसे नाकाम कर दिया. सीरीज में अस्पताल पर हमले की कहानी एक्शन-इमोशन-ड्रामे से भरपूर है. जिसमें जगहों तथा व्यक्तियों के नाम-पहचान बदल दिए गए हैं.


अमेजन प्राइम पर रिलीज हुई आठ कड़ियों की वेब सीरीज मुंबई डायरीज 26/11 का मुख्य घटनाक्रम बॉम्बे जनरल हॉस्पिटल के बंद दरवाजों में करवटें बदलता है. तमाम गरीब-असहाय-हालात के मारे लोग यहीं आते हैं लेकिन इस सरकारी अस्पताल में सुविधाएं नहीं. डॉक्टर क्या करें. कहानी के केंद्र में डॉ.कौशिक ओबेराय (मोहित रैना) और उनके मार्ग निर्देशन में ट्रेनिंग के लिए आए तीन जूनियर डॉक्टरों (नताशा भारद्वाज, मृणमयी देशपांडे, सत्यजित दुबे) का पहला दिन हैं.




डॉ ओबेराय की निजी जिंदगी में बवंडर उठा हुआ है क्योंकि उनकी पत्नी अनन्या (टीना देसाई) प्रेग्नेंट है लेकिन दोनों के बीच संबंध बहुत खराब हैं. बोलचाल तक बंद है. अनन्या दक्षिण मुंबई के ही पांच सितारा पैलेस होटल के वरिष्ठ स्टाफ में है. यहां भी दो आतंकी घुस कर तबाही मचा रहे हैं. इनके अलावा कहानी में कुछ अन्य प्रमुख किरदार भी हैं, जिनमें टीवी रिपोर्टर मानसी (श्रेया धन्वंतरि) सबसे उल्लेखनीय हैं. श्रेया ने पिछले साल की सबसे चर्चित वेब सीरीज स्कैम 1992 में पत्रकार सुचेता दलाल का रोल निभाया था. यहां भी वह भीड़ में सबसे प्रमुख मीडिया शख्सियत हैं.


डॉ ओबेराय के लिए जब जिंदगी के साथ-साथ अस्पताल में भी कुछ ठीक नहीं चल रहा होता और वह ट्रेनी जूनियरों से छुटकारा पाना चाहते हैं कि तभी गोलियों से घायल हुए लोगों की भीड़ बॉम्बे जनरल हॉस्पिटल में उमड़ने लगती है. टीवी खबर चलता है कि शायद साउथ बॉम्बे में गैंगवार हुआ है परंतु जल्दी ही हकीकत सामने आती है. यह आतंकी हमला है. गोलियों से छलनी मरणासन्न घायल एंटी-टेररिस्ट स्क्वाड चीफ और पकड़े गए दो आतंकियों को भी अस्पताल में लाया जाता है. जिनमें एक आतंकी बुरी तरह घायल है. डॉक्टर के सामने मुश्किल यह कि दोनों में से पहले किसे अटेंड करे, किसे बचाए. मगर इससे भी बड़ा सवाल कि अस्पताल में सही मेडिकल सुविधाएं न हों, किया क्या जा सकता है. मुश्किल तब और बढ़ती है जब अस्पताल के अंदर की खबरें मीडिया में आती हैं. पाकिस्तान में बैठ कर भारतीय टीवी न्यूज चैनल देख रहा हेंडलर दो आतंकियों से अस्पताल पर हमला करने को कहता है. आतंकी अंदर घुस जाते हैं और इसके बाद दिल दहला देने वाले दृश्य उभरते हैं. आप पाते हैं कि आतंकियों के पास खतरनाक राइफलें-हथगोले हैं और हमारी पुलिस के पास पुरानी बंदूकें-पिस्तौलें. यहां पल-पल खून-खराबा बढ़ता जाता है.




मुंबई डायरीज 26/11 में दिखाया गया कथानक पूर्ण सत्य नहीं है. बल्कि सच्ची घटनाओं पर आधारित है. इसके लेखकों और निर्देशक ने हमले की शक्ल दिखाने के लिए बेहिसाब छूट ली है और हमले की भयावता को सफलता से रचा है. वेब सीरीज हमलों की दर्दनाक तस्वीरें दिखाने के साथ सरकारी अस्पतालों का हाल भी पेश करती है. किसी आपात स्थिति के लिए वे कितने तैयार हैं यह बात तो दूर, आम दिनों में ही वहां न दवाएं होती हैं और न औजार या जरूरत का बाकी सामान. यह देखने योग्य वेब सीरीज है, जो हर बढ़ते एपिसोड के साथ अपनी जकड़ बढ़ाती है. हालांकि पूरे तनावपूर्ण घटनाक्रम में डॉ. ओबेराय की जिंदगी फिल्मी ड्रामे की तरह हल्की लगती और आउट-ऑफ-फोकस लगती है.


इसके अलावा लेखकों और निर्देशक ने खूब तड़के भी मारे हैं. एटीएस चीफ के शहीद होने पर आई पत्नी डॉक्टर को थप्पड़ लगाती है. आतंकी का इलाज करने पर एक इंस्पेक्टर डॉक्टर के माथे पिस्तौल तान देता है. अस्पताल में घुसे आतंकी पुलिस से अपने साथी को छुड़ाने में कामयाब हो जाते हैं. वगैरह-वगैरह. ये और अन्य ऐसी बातें हैं जो आपको बीच-बीच में याद दिलाती हैं कि आप हकीकत से नहीं ड्रामा से रू-ब-रू हैं.


पूरे हमले के घटनाक्रम में निर्देशक यह ध्यान रखा कि संतुलन बना रहे. वह बताते हैं कि एक तरफ आतंक और तबाही है तो दूसरी तरफ भाईचारा, परस्पर सहयोग और बलिदान है. हिंदू-मुस्लिम मुद्दे पर वह फोकस करते हैं क्योंकि इस घटना ने एक-दूसरे पर विश्वास का संकट भी पैदा किया था. मुंबई डायरीज 26/11 में किरदारों की नाटकीयता इसे कहीं-कहीं सच से दूर ले जाती है लेकिन इसमें संदेह नहीं हमल के दृश्यों को बढ़िया ढंग से शूट किया गया है. वे असर पैदा करते हैं. ऐक्शन दृश्य रोमांचकारी हैं. सीरीज किसी एक कलाकार पर केंद्रित नहीं है और सभी ने अपने-अपने रोल संजीदा ढंग से निभाए हैं. मुंबई हमले की यह सीरीज एक डार्क थ्रिलर है. अगर आपको ऐसे विषय पसंद आते हैं तो इसे जरूर देख सकते हैं.


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