Naam Review: ये फिल्म साल 2008 में बनी थी लेकिन फिर रिलीज नहीं हुई. डिब्बा बंद हो गई और अब जब हुई तो ना तो फिल्म के हीरो अजय देवगन और ना ही डायरेक्टर अनीस बज्मी ने इसका कोई प्रमोशन किया.  शायद अजय देवगन की सिंघम अगेन और अनीस बज्मी की भूल भूलैया 3 की हवा में ये फिल्म रिलीज कर दी गई और इन दिनों ने इस फिल्म का नाम क्यों नहीं लिया ये भी फिल्म देखकर समझ आता है क्योंकि ये नाम लेने लायक है ही नहीं.


कहानी
फिल्म शुरू होती है और अजय देवगन पर ताबड़तोड़ गोलियां चल रही होती हैं. अजय गिर जाते हैं लेकिन हाथ में एक चाबी है उसे नहीं छोड़ते. मतलब एक दम सिंघम टाइप मामला है, होश आता हे तो याद्दाश्त चली जाती है. फिर उसी अस्पताल की डॉक्टर भूमिका चावला से शादी कर लेते हैं. एक बेटी हो जाती है लेकिन पुराना अतीत फिर सामने आता है, कौन हैं अजय देवगन. बस ये फिल्म ये पता करने की कोशिश करती है और हम ये पता करने की कोशिश करते हैं कि ये फिल्म डिब्बे से निकाली क्यों गई.


कैसी है फिल्म
माना कि ये फिल्म पुरानी है लेकिन पुरानी फिल्म इतनी भी खराब नहीं होती थी. अगर इसे 2008 के हिसाब से भी देखा जाए तो भी ये काफी खराब है. अजय देवगन अस्पताल में बेड से उठते हैं और डरकर भूमिका चावला के गले लग जाते हैं, और अगले सीन में दोनों का बच्चा भी हो जाता है. मतलब ढाई सेकेंड में हम दो हमारा एक, अरे भाई ये तो हद हो गई. जब समीरा रेड्डी से मिलते हैं तो वो कहती है मैं तुम्हें नहीं जानती और ढाई सेकेंड बाद कहती हैं मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकती है. मतलब भाई, मोहब्बत का ऐसा मजाक, फिल्म में कुछ भी चलता है, और आपको समझ नहीं आता कि भाई करें तो क्या करें और कोई ऐसा भी सस्पेंस नहीं खुलता जो आपको हैरान कर दे. 70 के दशक की फिल्मों में इससे बहुत ज्यादा अच्छा सस्पेंस दिखाया जा चुका है. फिल्म देखकर समझ आता है कि ये रिलीज क्यों नहीं हुई या क्यों नहीं होने दी गई अगर ऐसा है तो.


एक्टिंग
अब इसपर क्या ही बात की जाए. अजय देवगन का काम ठीक है, भूमिका चावला ठीक लगी हैं. समीरा रेड्डी ने गजब की ओवर एक्टिंग की है. अजय की बेटी बनी श्रिया शर्मा सबसे प्यारी लगी हैं. बाकी राहुल देव, शरत सक्सेना, मुकेश तिवारी, यशपाल शर्मा सब यही चाहेंगे कि इस फिल्म को फिर से डिब्बे में ही बंद कर दिया जाए.


डायरेक्शन
अनीस बज्मी ने ऐसी भी फिल्म डायरेक्ट की थी ये यकीन करना मुश्किल हो जाता है. खैर वो जमाना और था लेकिन तब भी,उनके डायरेक्शन पर क्या ही कह जाए समझ से परे है.


कुल मिलाकर अगर बहुत सारे मीम्स देखने है और देखना है कि एक खराब फिल्म कैसी हो सकती है तो टाइमपास करने जा सकते हैं. जितनी देर बैठ पाएं बैठ जाइएगा थिएटर में .