POTLUCK Review: हर परिवार अपने आप में एक कहानी होता है. जिसमें जिंदगी के तमाम रस-रंग झमाझम होते हैं. बात इतनी है कि कहानी को कैसे देखा जाए, ट्रेजडी की तरह या कॉमेडी की तरह. निर्देशक राजश्री ओझा ने इस वेब सीरीज में शास्त्री परिवार की कहानी कही है और संतुलित कॉमेडी की तरह पेश किया है. जिसमें सब कुछ वैसा होता है, जैसा किसी भी परिवार में हो सकता है. इसलिए इन किरदारों की बातें पल-पल गुदगुदाती हैं. ऐसे दौर में जबकि फिल्मी कॉमेडी से अलग स्टैंड-अप कॉमेडी ने अपना एक कोना पकड़ लिया है, जिसमें बेबाकी के नाम पर अच्छा खासा फूहड़पन है, पॉटलक परिवार के साथ देखे वाली साफ-सुथरी-सहज वेबसीरीज है. जिसमें हल्के-फुल्के पल हैं.


पॉटलक अंग्रेजी का शब्द है, जिसका मतलब है कुछ परिवारों द्वारा अपनी-अपनी रसोई में खाना पकाना और फिर सबका एक जगह पर इकट्ठा होकर मिल-जुल कर भोजन का आनंद उठाना. अंग्रेजी में ही कहावात हैः द फैमेली हू ईट्स टुगेदर, स्टेज टुगेदर. मतलब यह कि जो परिवार साथ में बैठ कर भोजन करता है, वह (हमेशा) इकट्ठा रहता है. मगर मजे की बात यह है कि शास्त्री परिवार इकट्ठा नहीं रहता. सीनियर शास्त्री (जतिन सयाल) रिटायर हो चुके हैं. पत्नी प्रमिला (किटू गिडवानी) के साथ बड़े-से घर में रहते हैं. दो बेटों की शादी हो चुकी है. बड़े बेटे-बहू, विक्रांत-आकांक्षा (साइरस साहुकार-इरा दुबे) के जुड़वां समेत तीन बच्चे हैं. छोटे बेटे ध्रुव (हरमन सिंघा) की पत्नी निधि (सलोनी खन्ना पटेल) को बच्चे पसंद नहीं और वह नौकरीपेशा है.




ध्रुव की नौकरी अमेरिका में लग गई थी मगर वह पिता जी को हार्ट अटैक की आशंका के मद्देनजर वहां नहीं गया. शास्त्री जी की बेटी प्रेरणा (शिखा तलसानिया) कोलकाता में नौकरी करती थी मगर अब घर आ गई है. वह लगातार लड़कों को डेट करती रहती है. कोई पसंद नहीं आता. माता-पिता चाहते हैं कि वह सैटल हो जाए. चूंकि सीनियर शास्त्री को लगता है कि दूसरे के बाद तीसरा अटैक कभी भी आ सकता है, वह बच्चों को पॉटलक के लिए तैयार कर लेते हैं. इस तरह वीकेंड में पूरा परिवार इन्हीं में से किसी के घर पर इकट्ठा होता है. परिवार की नई-नई बातें-मुसीबतें, झगड़े-झूठ और झंझट क्रमशः सामने आते रहते हैं. मगर फिर भी सब साथ बने रहते हैं. ऐसा कुछ नहीं होता कि मन का धागा टूटे और जुड़ने पर उसमें गांठ पड़े.


पॉटलक टीवी सिटकॉम शो की तरह है, जिसमें अमूमन समान किरदार और समान जगह आपको हर एपिसोड में दिखती है. लेकिन घटनाएं हर बार भिन्न होती हैं. सोनी लिव पर आई यह साफ-सुथरी-मजाकिया पारिवारिक सीरीज है. इसमें रिश्ते हैं, उनकी प्यार भरी झुंझलाहट है और रूठना-मनाना भी है. अक्सर जैसा कि परिवारों में होता है, कभी घर छोटा लगता है और बड़ा टीवी लाने की इच्छा पैदा होती है. कभी बड़ा टीवी आ जाता है तो घर छोटा लगने लगता है. पैर खींचो तो चादर बड़ी हो जाती है और पैर लंबे करो तो चादर छोटी पड़ जाती है. जैसे पांचों अंगुलियां बराबर नहीं होती, वैसे ही घर में एक माहौल में रहने के बावजूद सबका मिजाज समान नहीं होता. पॉटलक में यह बात आप बखूबी महसूस कर सकते हैं. हालांकि यह साधारण मिडिल क्लास की नहीं बल्कि हाई-इनकम मिडिल क्लास की कहानी है क्योंकि घर खूबसूरत हैं. बड़े हैं. कारें हैं. तमाम सुविधाएं हैं. घर के रिनोवेशन के लिए यहां लाखों खर्च किए जा सकते हैं और नया घर करोड़ में भी खरीदा जा सकता है. भले ही ईएमआई पर. बावजूद इसके मनुष्य मन की भावनाएं, प्यार-ईर्ष्या-संदेह-क्रोध-दया किसी क्लास को नहीं मानती हैं. अतः पूरा शास्त्री परिवार आपको हमेशा अपनों के बीच ही एडजस्ट करते नजर आता है. यहां हर किसी की अपनी कोई खूबी है और कोई कमी भी.




पॉटलक लगभग हर विभाग में कसावट लिए है. लेखक जोड़ी अश्विन लक्ष्मी नारायण और गौरव लुल्ला ने इसे साध-जमा कर लिखा है तो एडिटर प्रणव मिश्रा भी कहानी में ढील नहीं छूटने देते. धीरेंद्र शुक्ला का कैमरा वर्क बढ़िया है. राजश्री ओझा को दर्शकों ने सोनम कपूर की फिल्म आयशा के लिए जाना था. वह समाज के ऊंचे तबके की कहानियां कहती हैं. पॉटलक में वह अपने मैदान पर ही खेली हैं. इससे पहले के कामों में भले ही वह खास असर नहीं छोड़ पाई थीं परंतु यहां वह जमी हैं. इसका श्रेय ऐक्टरों की पूरी टीम को भी जाता है क्योंकि सभी अपने-अपने किरदारों में सहज हैं. बिना किसी हल्ले, शोर शराबे और भावनात्मक हाय-तौबा के वे अपना काम करते हैं. इसलिए अपनी भूमिकाओं में फिट भी हैं. अगर आप साधारण आय वाले मिडिल क्लास परिवार से हैं, तब भी इस सीरीज का उतना ही मजा ले सकेंगे, जितना हाई-इनकम मिडिल क्लास वाले क्योंकि जीवन में सुख-दुख क्लास देखे बिना दस्तक देते हैं.


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