Ramsetu review: हमारे देश में श्रीराम को लेकर जो इमोशन हैं, उसके बाद अगर श्रीराम के नाम पर कोई फिल्म आती है और उनसे जुड़े रामसेतु की बात करती है, तो इस फिल्म की चर्चा हो जाना कोई बड़ी बात नहीं है. लेकिन क्या सिर्फ राम का नाम ही फिल्म की नैया पार लगा सकता है. ये आपको इस रिव्यू में पता चलेगा.
कहानी
ये कहानी है रामसेतु की जिसे सरकार गिराना चाहती है, क्योंकि वो एक बड़े बिजनेसमैन के एक बड़े प्रोजेक्ट के आड़े आ रहा है. अब Archaeologist और नास्तिक अक्षय कुमार से ये बिजनेसमैन चाहता है कि वो साबित कर दे कि रामसेतु को श्रीराम ने नहीं बनवाया. वो तो अपने आप बना है यानि प्राकृतिक है. अब अक्षय कुमार क्या ये करेंगे और करेंगे तो कैसे करेंगे. क्या श्रीराम के सेतु का अस्तित्व साबित हो पाएगा और होगा तो कैसे होगा. यही इस फिल्म की बेसिक कहानी है.
इस फिल्म की सबसे बड़ी मजबूती है कि इस फिल्म से श्रीराम का नाम जुड़ा है और यही इस फिल्म की इकलौती मजबूती है. इस फिल्म की सबसे बड़ी कमी है कहानी और स्क्रीनप्ले जो और बेहतर हो सकता है. काफी बेहतर हो सकता था. कहीं-कहीं फिल्म डॉक्यूमेंट्री लगती है. फिल्म में एंटरटेनमेंट की कमी लगती है. कहानी को थोड़ा और अच्छे से कहा जाता तो आप इस फिल्म से और जुड़ते. यहां तक कि क्लाइमैक्स वाला सीन भी आपको उस तरह से बांध नहीं पाता. वैसे इमोशन नहीं जगा पाता जैसी आप उम्मीद करते हैं. फिल्म की एक अच्छाई ये है कि फिल्म क्लीन है. आप आराम से फैमिली के साथ देख सकते हैं. और बच्चों को ये फिल्म दिखानी भी चाहिए. ताकि उन्हें श्रीराम और रामसेतु के बारे में पता चले. फिल्म की लोकेशन अच्छी हैं. ग्राफिक्स ठीक ठाक है.
एक्टिंग
अक्षय कुमार इस रोल में अच्छे लगते हैं. बढ़ी दाढ़ी और बड़े बाल... इसमें अक्षय जम रहे हैं. हालांकि, उसकी एक वजह ये भी है कि अक्षय साल में 4 से 5 बार आते हैं और हम उन्हीं अक्षय कुमार को देखकर बोर भी हो जाते हैं. तो यहां अक्षय का लुक जरा हटकर है. अक्षय ने इस रोल में निभाया भी अच्छे से हैं. जैकलीन फर्नांडिस ठीक हैं और फिल्म में वो ना भी होतीं तो कोई फर्क नहीं पड़ता. नुसरत भरुचा के साथ भी यही है. उनका रोल ही कम है. साउथ के एक्टर सत्य देव फिल्म में अहम रोल में हैं और वो इम्प्रेस करते हैं.
डायरेक्शन
फिल्म के डायरेक्टर अभिषेक शर्मा से उम्मीद ज्यादा थी, जिसे वो पूरी तो करते हैं लेकिन उम्मीदों के मुताबिक नहीं. अभिषेक तेरे बिन लादेन जैसी फिल्में बना चुके हैं. लेकिन यहां उन्होंने स्क्रिप्ट पर लगता है अच्छे से काम नहीं किया. फिल्म आपको जानकारी तो देती है लेकिन कहीं ना कहीं लॉजिक और आस्था के बीच में वो बैलेंस नहीं बैठा पाती जिसकी उम्मीद थी. फिल्म आप पर पीके या ओह माय गॉड जैसा असर नहीं छोड़ती.
फिल्म में श्रीराम का एक एंथम है, जो लास्ट में आता है. इसे पहले भी इस्तेमाल किया जाना चाहिए था. कुल मिलाकर ये एक ठीक ठाक फिल्म है. वन टाउम वॉच कह सकते हैं इसे. ना तो ये एक महान फिल्म है और ना बहुत खराब. तो अगर एक साफ-सुथरी फिल्म बच्चों के साथ देखनी है तो ये फिल्म देख सकते हैं.
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