Razakar Review: ये बेहतरीन फिल्म देखकर रजाकारों से हो जाएगी दहशत, शुक्र मनाएंगे हम उस जमाने में नहीं जी रहे
Razakar Review: तेज सप्रू, राज अर्जुन की फिल्म देखने का प्लान बना रहे हैं तो पहले पढ़ लीजिए इसका रिव्यू. इतिहास के कई राज आएंगे आपके सामने.
यथा सत्यनारायण
तेज सप्रू, राज अर्जुन, मकरंद देशपांडे, अनुश्रिया त्रिपाठी
थिएटर-ओटीटी
Razakar: The Silent Genocide of Hyderabad Review: जनेऊ तोड़ने वालों का घमंड तोड़ेंगे, रजाकार एक ऐसी फिल्म है जो न सिर्फ आपको इतिहास में पीछे ले जाकर रजाकारों के द्वारा किए गए अत्याचारों के बारे में बताएगी बल्कि कई ऐसे गुमनाम सेनानियों के बारे में भी जानकारी देगी जिनको इतिहास के पन्नों पर ज्यादा जगह नहीं मिली या यूं कहें कि जिनके बारे में न ज्यादा पढ़ाया गया, न बताया गया.
कहानी
कहानी है एक सनकी सेनापति कासिम रिजवी और कान के कच्चे, दुनिया के सबसे अमीर और सबसे कंजूस कहे जाने वाले निजाम ओसमान अली खान की...ब्रिटिश राज के दौरान हैदराबाद में नवाब बहादुर यार जंग ने मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन यानी एमआईएम नाम की एक पार्टी बनाई. बहादुर यार जंग ने ही रजाकारों की फौज बनाई. ये मुस्लिमों की एक मिलिशिया यानी आम लोगों की सेना थी. कहा जा सकता है कि ये फौज भी नवाब की सेना की ही तरह थी. बस इस पर पकड़ सीधे तौर पर नवाब की न होकर बहादुर यार जंग की थी, निजाम बहादुर यार जंग के बाद रजाकारों की इस फौज की जिम्मेदारी कासिम रिजवी ने संभाल ली. रजाकारों का मूल उद्देश्य हैदराबाद को भारत से अलग पाकिस्तान की तरह ही एक इस्लामिक राज्य बनाना था. फिल्म में छोटी छोटी कई कहानियां हैं, फिर भी फिल्म एक ट्रैक पर चलती है, हर कहानी के जरिए रजाकारों की दरिंदगी और ज्यादती दिखाई गई है.
कैसी है फिल्म
फिल्म में कई कहानियां होने के बावजूद फिल्म आपको बांधे रखती है, कहा जा रहा है कि फिल्म एक धर्म विशेष को टारगेट करती है जोकि बिल्कुल नहीं है, जब आप फिल्म देख लेंगे तो इतिहास, तथ्य और जानकारी लेकर वापस आएंगे न कि किसी धर्म के प्रति रोष, द्वेष या गुस्सा लेकर, फिल्म में दिखाया गया है कि रजाकारों का ध्येय ही हैदराबाद को तुर्किस्तान बनाना था और जो उनकी बात नहीं मानता था उस पर वो बिना उसका धर्म, जाति और नाम देखे जुल्म करते थे. फिल्म के आखिरी में एक सीन है जब कासिम रिजवी पकड़ा जाने वाला होता है, तब उसकी ही धर्म के लोग उसकी खिलाफत करते हैं और उसको गलत बताते हैं, फिल्म थोड़ी छोटी हो सकती थी.
एक्टिंग
फिल्म में तेज सप्रू, राज अर्जुन, मकरंद देशपांडे जैसे मंझे हुए कलाकार हैं. एक्ट्रेस अनुश्रिया त्रिपाठी की ये डेब्यू फिल्म है. कह सकते हैं कि इस फिल्म में कई एक्टर और एक्ट्रेस हैं जिन्होंने कमाल का काम किया है और असल एक्टर्स विलेन हैं जिनको देखकर आपका खून खौलेगा. ये फिल्म कासिम रिजवी के किरदार में ढले राज अर्जुन के लिए देखी जानी चाहिए,जो इस पूरी फिल्म की जान हैं. पर्दे पर सबसे ज्यादा वही दिखते हैं और क्या दिखते हैं, निजाम के रोल में मकरंद देशपांडे अच्छे लगे हैं, कहते हैं निजाम ओसमान अली इतना कंजूस था कि अगर एक सिक्का नीचे गिर जाए तो खुद ढूंढने लग जाता था, मकरंद के सीन की शुरूआत ही इसी किस्से से होती है,सरदार पटेल के किरदार में तेज सप्रू काफी जंचे हैं, मेकअप से लेकर, उनकी चाल ढाल, तौर तरीके सब पटेल जी की तरह ही लगे हैं. अनुश्रिया की पहली फिल्म है और फिल्म में अपने किरदार के साथ पूरी तरह न्याय करती नजर आईं हैं, निजाम की बेगम के किरदार को जिस तरह बोलना था, दिखना था, वो अनुश्रिया ने बखूबी पकड़ा है.
डायरेक्शन
यथा सत्यनारायण इस फिल्म के डायरेक्टर, राइटर और स्क्रीनप्ले राइटर हैं, डायरेक्शन पूरी सावधानी से किया गया है. खेत, खलिहान, परिधान, सड़कें, गांव, हर सीन में ख्याल रखा गया है कि उस दौर को कायदे से दिखाया जा सके. फिल्म के प्रोड्यूसर गुडूर नारायण रेड्डी हैं, डायरेक्टर और प्रोड्यूसर की जोड़ी ने पूरी कहानी को बेहद रोचक तरीके से पर्दे पर उतारा है.
ये इतिहास के पन्ने पलटती एक अच्छी फिल्म है जिसे देखा जाना चाहिए और धर्म के चश्मे के बिना देखा जाना चाहिए.