Main Hero Boll Raha Hu Review: यहां विलेन बना है हीरो, उसके मुंह से ही सुन लीजिए उसकी करतूतें
Main Hero Boll Raha Hu Review: बॉलीवुड के लिए अपराधियों का महिमा मंडन करना नई बात नहीं है. निर्माता एकता कपूर ने अपने नए शो में गैंगस्टर-आतंकी अबू सलेम की जिंदगी की घटनाओं पर आधारित कहानी कही है. वह जेल में बंद इस अपराधी को हीरो जैसा पेश करती हैं. यहां ‘हीरो’ अपने मुंह से कहानी सुनाता है और स्क्रीन पर आप उसकी जांबाजी देखते हैं.
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सिद्धार्थ लुथेर
पार्थ समथान, अर्सलान गोनी, अंकित गुप्ता, चंदन रॉय सान्याल, पत्रलेखा, दानिश हुसैन
Main Hero Boll Raha Hu Review: पुराने जमाने की एक फिल्म में ‘बरेली के बाजार में’ हीरोइन का झुमका गिरा था. हमारे जमाने में एकता कपूर बरेली से हीरो लाई हैं. ऐसा हीरो जो अपनी कहानी सुनाते हुए बताता है कि कैसे वह अक्खी मुंबई पर राज करने का सपना लेकर यहां आया. जमीन के साथ समुंदर के पानी पर जहां तक नजर जाए, वह अपना परचम लहराना चाहता था. भले ही वह गलत काम करता रहा, लेकिन खुद को हीरो कहता रहा. जी5 पर एकता कपूर की रिलीज हुई वेब सीरीज ‘मैं हीरो बोल रहा हूं’ में 1990 के दशक वाले अंडरवर्ल्ड और बॉलीवुड की वह कहानी है, जिसे आप पहले जाने कितनी फिल्मों और वेब सीरीज में देख चुके हैं. ऐसे में यहां नया क्या है? जवाब है, अबू सलेम.
हालांकि कहानी शुरू होने से पहले दावा करती है कि यहां सब काल्पनिक है. मगर साफ दिखता है कि यह मसाला अपराधी-आतंकी अबू सलेम की जिंदगी से लिया गया है. यहां तक कि टाइटल सोचने में भी ज्यादा दिमाग नहीं खर्च किया गया. पत्रकार-लेखक एस हुसैन जैदी ने कुछ साल पहले सलेम के जीवन और करतूतों पर किताब लिखी थीः अबू सलेम बोल रहा हूं. एकता और उनकी टीम ने उसी टाइटल को ट्विस्ट कर दिया. मैं हीरो बोल रहा हूं. एकता कमाल की क्रिएटीव टीम रखती हैं, जो दूसरों की मेहनत से गढ़ी चीजों को लिफ्ट कर अपने नाम से चेप देती है. हाल में एक विदेशी फिल्म का पोस्टर भी आल्ट बालाजी के क्रिएटिव लोगों ने अपनी सीरीज के लिए उड़ाकर ज्यों का त्यों छाप दिया था. खैर... कम-ज्यादा करके, यहां-वहां ठोक-बजा कर, तड़का मार के मैं हीरो बोल रहा हूं की कहानी अबू सलेम की जिंदगी के ढांचे पर खड़ी कर दी गई. जिसे सुपर्ण एस. वर्मा ने लिखा है. अगर आप बॉलीवुड हीरोइन मोनिका बेदी के प्यार में पड़े और उसे साथ भगा कर दुनिया घुमाने वाले इस अंडरवर्ल्ड डॉन की जिंदगी में थोड़ी-बहुत दिलचस्पी रखते हैं, तो उसके सिनेमाई संस्करण को यहां देख सकते हैं. मैं हीरो बोल रहा हूं की औसतन 24-25 मिनट की 13 कड़ियां हैं और यह इसका पहला सीजन है.
क्या है कहानी?
कहानी 1990 के दशक में बरेली (उत्तर प्रदेश) से बड़े-बड़े सपने लेकर मुंबई आए नवाब (पार्थ समथान) की है. उसकी जान के पीछे इंस्पेक्टर सचिन कदम (अंकित गुप्ता) लगा है. कदम पीछे-पीछे और नवाब आगे-आगे. इसी चूहा-बिल्ली वाली दौड़ के बीच नवाब मुंबई में अपने आने से लेकर डॉन बनने तक की कहानी सुनाता है और बार-बार खुद को हीरो बताता है. उसके कपड़े और हेयर स्टाइल संजय दत्त की याद दिलाते हैं. कहानी बताती है कि नवाब शातिर है और तेजी से अपराध की दुनिया में जगह बनाता है. वह महानगर में अपराध का साम्राज्य फैलाए लाला (अर्सलान गोनी) और उसके बड़े भाई मस्तान (चंदन सान्याल) का करीबी हो जाता है. एक और अंडरवर्ल्ड अपराधी, दादा (दानिश हुसैन) का भी वह दिल जीत लेता है. मगर वह इन तीनों को खत्म कर खुद मुंबई का किंग बनना चाहता है.
इस बीच दानिश शादी भी करता है. अंडरवर्ल्ड के रास्तों से उसे बॉलीवुड में एंट्री मिलती है. यहां वह हुस्न और पैसे सागर में डुबकियां रहा होता है कि तभी किस्मत उसे लैला (पत्रलेखा) के सामने ले जाकर खड़ा करती है. लैला बॉलीवुड में बतौर हीरोइन अपना करियर शुरू कर रही है. लैला के लिए नवाब की दीवानगी कहानी में नए-नए मोड़ लाती है.
कुछ नया नहीं मिलेगा
यह सीरीज शुरुआत में कट-पेस्ट अंदाज में चलती है. कहानी की तरह नहीं बढ़ती. यहां इसमें कुछ नया नहीं है. छुटभैयों के मुंबई पर राज करने के सपने देखने, मार-पीट करने, खून-खराबे से अपनी जगह बनाने की कोशिशों के असंख्य दृश्य स्क्रीन पर आ चुके हैं. चौथी कड़ी से सीरीज थोड़ा बांधती है और दो-तीन एपिसोड बाद फिर से ढीली पड़ जाती है. कहानी में तमाम बासी प्रसंग हैं ही, स्क्रिप्ट में भी कसावट गायब है. कहीं-कहीं तो यह तर्क की पटरियों से भी उतर जाती है. तमाम तरह की गालियां और सस्ते अश्लील मुहावरे आपको यहां सुनने मिलेंगे. सिर्फ चंदन रॉय सान्याल कुछ ठीक लगते हैं. बाकी अभिनेता औसत और उससे भी कम हैं. कुछ तो लगता है कि अभी अभी ऐक्टिंग की एबीसी सीख कर आए हैं.
एकता कपूर के प्रोडक्शन से आने वाली वेब सीरीज उनके सास-बहू मार्का सीरियलों जैसी एक-रंगी हो चली हैं. हर जगह आर्टिस्टों के कपड़ों के रंग-डिजाइन-पैटर्न लगभग एक जैसे होते हैं. ऐसा लगता है कि कुछ थान थोक के भाव खरीदकर उन्हें काट-छांट कर ड्रेस, पर्दे और चादर बनाए जा रहे हैं. इसी तरह लाइटों का हाल है. उनकी तमाम सीरीजों में गुलाबी, नीली, हरी, पीली झालरें और बल्ब बैकग्राउंड में जलते रहते हैं. हर कहानी का परिवेश एक जैसा होता है. समय आ चुका है कि एकता नए लोगों को अपने साथ जोड़ें और पुराने नकलचियों-आराम तलब लोगों को विदा करें.
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