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Sharmaji Namkeen Review: सरल-सहज कहानी में ऋषि कपूर दिखाते हैं अभिनय की चमक, परेश रावल भी छोड़ते हैं असर

ऋषि कपूर की अंतिम फिल्म उनके लिए है, जो सिनेमा से प्यार करते हैं. दो ऐक्टरों द्वारा एक ही किरदार निभाने और बीच में बदल-बदल पर्दे पर आने का ऐसा प्रयोग आपने पहले कभी नहीं देखा होगा.

हिंदी सिनेमा के शानदार सितारों में शुमार ऋषि कपूर (1952-2020) की यह आखिरी फिल्म है. इसकी शूटिंग के दौरान वह गुजर गए और फिल्म अधूरी रह गई. तब शूट होने से बचे रह गए दृश्यों में परेश रावल ने उनकी जगह ली. विश्व सिनेमा में शायद ही ऐसा कोई दुर्लभ उदाहरण हो, जब एक ऐक्टर का अधूरा किरदार किसी दूसरे ने जीते हुए, फिल्म पूरी की हो. इस लिहाज से यह फिल्म एक अनोखा और नया अनुभव है लेकिन इससे भी पहले ऋषि कपूर को श्रद्धांजलि के रूप में शर्माजी नमकीन देखनी चाहिए क्योंकि जिंदगी की तरह सिने-उद्योग का फलसफा है, शो मस्ट गो ऑन.

अमेजन प्राइम पर रिलीज हुई यह फिल्म अपने टाइटल के अनुरूप खट्टी-मीठी, नमकीन और चटपटी है. निश्चित ही ऋषि कपूर की कंटीन्यूटी टूटने से बीच में झटके लगते हैं, परंतु परेश रावल ने जो जिम्मेदारी उठाई, उसे बहुत ही अच्छे ढंग से अंजाम तक पहुंचाया है. करीब दो घंटे की यह फिल्म दिल्ली के बृज गोपाल शर्मा (ऋषि कपूर और परेश रावल) की कहानी है, जिसे उसकी कंपनी ने वीआरएस दे दिया है. दशकों तक नौकरी करते रहे शर्माजी के लिए रिटायर होना आसान नहीं है क्योंकि उनके परिवार में दो जवान बेटे हैं, रिंकू (सुहेल नैयर) और विंसी (तारुक रैना). रिंकू नौकरी में है और विंसी कॉलेज में. भले ही शर्माजी के मध्यमवर्गीय परिवार में पैसों का संकट नहीं है, मगर मुश्किल यह है कि बेटे अपनी-अपनी जिंदगियों में व्यस्त हैं. ऐसे में विधुर शर्माजी घर में खाना बनाने और तमाम बिल भरने से लेकर तमाम जिम्मेदारियां निभाने के बाद कॉलोनी में कितनी वॉक करें और घर बैठे कितना टीवी देखें. बच्चों को वह बात-बात पर कुछ न कुछ समझाते हैं और नतीजा यह कि बच्चों को शिकायत है, वह हमेशा सेंटी होते रहते हैं. जबकि शर्माजी का कहना है, ‘आदमी रिटायर क्या हुआ, वो घर के कोने का फर्नीचर बन जाएगा?’


Sharmaji Namkeen Review: सरल-सहज कहानी में ऋषि कपूर दिखाते हैं अभिनय की चमक, परेश रावल भी छोड़ते हैं असर

धीमी और लंबी रिटायर्ड लाइफ से नफरत करने वाले शर्माजी चाहते हैं कि उन्हें कोई काम मिल जाए, लेकिन मिले कैसे. दफ्तरों में जवानों ने जगह घेर ली है और बाकी जो काम मिलते हैं, वह उनके बेटों को स्टैंडर्ड के नहीं लगते. शर्माजी हार नहीं मानते. वह अमिताभ बच्चन और टाटा-बिरला से प्रेरणा लेते रहते हैं. आखिरकार फिर एक दिन आठ-दस महिलाओं की एक किटी पार्टी में खाना बनाने का काम शर्माजी ले लेते हैं और वहां से उनकी जिंदगी बदल जाती है. कहानी में नए मोड़ आते हैं और फिल्म की रफ्तार भी बदल जाती है.

शर्माजी नमकीन धीमी शुरुआत के करीब आधे घंटे बाद रफ्तार पकड़ती है,और दर्शक को बांधती है, इसमें रिटायरमेंट के बाद की जिंदगी को केंद्र में रखते हुए कुछ बातें कहने की कोशिश है. नौकरी आदमी को रिटायर कर देती है लेकिन अपना काम-धंधा हो तो आदमी तब तक काम कर सकता है, जब तक उसकी मर्जी है. इक्का-दुक्का जगह पर यह मध्यमवर्गीय महिलाओं के जीवन के मुद्दे भी उठाती है और बिल्डरों तथा पुलिस की सांठगांठ का मामला भी यहां आता है. आप देखते हैं कि आम आदमी को कैसे पुलिस दबाती है और नेता के हुजूर में तत्काल हुक्म बजाती खड़ी हो जाती है. इस तरह जिंदगी की कई छोटी-छोटी कभी खुशी कभी गम टाइप की बातें इस फिल्म में नजर आती हैं. कहानी में धूम-धड़ाका नहीं है और परिवार के साथ इसे देखा जा सकता है. हल्के-फुल्के मूड वाली फिल्म एंटरटेन करती है. सरल-सहज कहानी में ऋषि कपूर और परेश रावल के साथ जूही चावला भी निखर कर आती हैं.


Sharmaji Namkeen Review: सरल-सहज कहानी में ऋषि कपूर दिखाते हैं अभिनय की चमक, परेश रावल भी छोड़ते हैं असर

रितेश सिधवानी और फरहान अख्तर के एक्सेल एंटरटेनमेंट जैसे बैनर से आने वाली इस फिल्म में सबसे ज्यादा यह अखरता है कि शुरुआत में अंग्रेजी के साथ आने वाले हिंदी क्रेडिट्स में वर्तनी की तमाम गलतियां हैं. ऐसा लगता है कि हिंदी यहां सिर्फ खानापूर्ति के लिए लिखी गई है. क्या निर्माता अंग्रेजी के अशुद्ध स्पेलिंग लिखकर फिल्म दर्शकों के बीच उतार सकते हैं? निर्देशक हितेश भाटिया की यह पहली फिल्म है और उन्हें ऋषि कपूर-परेश रावल जैसे मंजे हुए एक्टर्स के होने से काफी फायदा हुआ है. लीड एक्टर के बीच में न रहने से उनके सामने खड़ी हुई समस्या को समझा जा सकता है और यह भी माना जा सकता है कि बाद में हितेश को फिल्म का संतुलन बनाने में मुश्किलें आई होंगी. इसके बावजूद वह अपना काम अच्छे से कर गए हैं. कुछ दृश्यों को छोड़ दें तो फिल्म पर उनकी पकड़ दिखती है.


Sharmaji Namkeen Review: सरल-सहज कहानी में ऋषि कपूर दिखाते हैं अभिनय की चमक, परेश रावल भी छोड़ते हैं असर

परेश रावल के अच्छे अभिनय के बावजूद यह साफ दिखता है कि अगर ऋषि कपूर इस फिल्म को पूरा कर पाते तो शर्माजी नमकीन की बात कुछ और होती. फिल्म के अंत में क्रेडिट्स के साथ निर्देशक ने शूटिंग के कुछ दृश्य पिरोए हैं, वे भी ध्यान आकर्षित करते हैं. इनमें अभिनय के प्रति ऋषि कपूर का ‘जीना यहां मरना यहां’ जैसा समर्पण और उनका बहुचर्चित मूड स्विंग, दोनों झलकते हैं. क्रेडिट्स के साथ अंतिम दृश्य में ऋषि कपूर कहते नजर आते हैं, ‘भाई, इससे बैटर शॉट नहीं हो सकता.’ तब आप उनकी इस बात पर विश्वास किए बगैर नहीं रह पाते.

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