आरआरआर मूलतः तेलुगु फिल्म है. वहां इसका अर्थ है, रौद्रम रणम रुधिरम. तमिल, कन्नड़ और मलयालम में भी आरआरआर का अर्थ उन्हीं भाषाओं में बताया गया है. मगर हिंदी में निर्माता-निर्देशकों को शब्द नहीं मिले और यहां आरआरआर की व्याख्या अंग्रेजी में की गई है, राइज रोर रिवोल्ट. बाहुबली से बॉक्स ऑफिस और दर्शकों-समीक्षकों का दिल लूटने वाले एस.एस. राजमौली की डब होकर हिंदी में आई इस फिल्म को लेकर सबका पहला सवाल यही है कि क्या इसमें बाहुबली जैसी बात है. तो सीधा जवाब है, कथा-पटकथा और किरदारों का वह जादू यहां नहीं है.


बाहुबली के प्राचीन काल की माहिष्मती से राजामौली यहां 1920 के दशक में अंग्रेजी राज में आ गए हैं. दक्षिण भारत के जंगलों से शुरू होती कहानी, दिल्ली और आस-पास आ जाती है. मामला यह है कि वायसराय की पत्नी और अफसर जंगल के आदिवासियों की एक बच्ची को इसलिए उठा लाए कि उसके पास रंगों से हाथों को सुंदर सजाने की कला है. जंगल में आदिवासी भीलों का नायक है भीम (एन.टी. रामाराव जूनियर), वह इस बच्ची को वापस ले जाने के लिए दिल्ली आया है, मगर उसे पता नहीं कि बच्ची कहां मिलेगी. इधर, अंग्रेजों की पुलिस में है राम (रामचरण). सबसे ताकतवर. सबसे बहादुर. महत्वाकांक्षी भी. जब अंग्रेजों को पता चलता है कि भीलों का नायक दिल्ली आया है और वह वायसराय तथा उसके परिवार के लिए खतरा बन सकता है, तो राम जिम्मेदारी उठाता है कि वह भील को जिंदा या मुर्दा पकड़ कर सामने पेश करेगा.




इस तरह फिल्म के दोनों नायक आमने-सामने आ जाते हैं. अब दोनों अपने-अपने मिशन पर हैं लेकिन हालात उन्हें दोस्त बना देते हैं. दोस्त बनने के बावजूद दोनों अपनी सच्चाई एक-दूसरे से छुपाते हैं. किसे मिलेगी कामयाबी और किसे मिलेगी नाकामी. कहानी आगे और क्या-क्या मोड़ लेगी, यही सब इस फिल्म की रणभूमि में नजर आता है. जिसमें कहानी आगे बढ़ने के साथ-साथ नायकों का रूप रौद्र होता जाता है और फिर रुधिर यानी रक्त तो बेहिसाब बहता ही है.




तीन घंटे से ज्यादा लंबी आरआरआर में कुछ देखने योग्य है तो इसके स्पेशल इफेक्ट्स, सैट और ऐक्शन. लेकिन इनकी अपनी सीमाएं भी हैं. मगर मुद्दे की बात यानी के.वी. विजेंद्र प्रसाद की कथा और राजामौली की पटकथा, उनमें पेच हैं. कहानी में राम के अंग्रेज पुलिस बल का हिस्सा बनने और उसके गुप्त लक्ष्य को बहुत लंबा खींचा गया है. राम के साथ सीता (आलिया भट्ट) के प्रेम और अन्य प्रसंग एक तो हाशिये पर हैं और जब भी दोनों से जुड़ी कोई बात आती है तो ड्रामा रंगमंच की तरह लगने लगता है. राजमौली इस मोह से छुटकारा नहीं पा सके कि जब सारे किरदार जंगल-जंगल भटक रहे हैं, मुश्किल में हैं, उनके पास खाने-पहनने को ढंग का नहीं है तो उन सबके बीच आलिया को सिल्क के चमकदार-रंग-बिरंगे कपड़े पहनाएं और उसे खूब सजा कर दिखाएं.



पटकथा लिखते हुए राजमौली अपनी कलम पर नियंत्रण भूल गए. अनेक दृश्यों को उन्होंने जरूरत से लंबा खींचा है. खास तौर पर एक्शन दृश्यों को. यूं ही नहीं कहा गया है कि अति हर जगह वर्जित है. पटकथा पर राजामौली का नियंत्रण छूटने का नतीजा यह निकला कि पुलिस अफसर राम के किरदार में रामचरण आखिरी दृश्यों में भगवान राम के गेट-अप में पहुंच जाते हैं और फिल्म एजेंडा साधती नजर आने लगती है. बंदूक-पिस्तौल-गोलों के बीच रामचरण अचानक धनुष-बाण से लैस होकर अंग्रेजी पुलिस तथा अफसरों को धराशायी करने लगते हैं. ऐक्शन दृश्य यहां किसी मदारी की कलाबाजियों जैसे बन गए हैं. यद्यपि ऐसा फिल्म में कमोबेश और भी जगहों पर ऐसा हुआ है.




राजामौली रामचरण को भगवान राम बनाते हुए यहीं नहीं रुके, बल्कि अंतिम दृश्य में उन्हें आदिवासियों के उद्धारक जैसा भी दिखाया, जब भीम राम से सामने हाथ जोड़ कर कहता है, ‘हमें शिक्षा दो.’ अंतिम दृश्य में ही आदिवासी किरदारों के साथ पर्दे पर जल, जंगल, जमीन का स्लोगन लिख कर राजामौली नई जमाने की लड़ाई की तरफ भी इशारा करते देते हैं. सब जानते हैं कि जंगल के निवासियों की एक लड़ाई पूंजीपतियों-सरकार के खिलाफ जारी है. इस फिल्म में न पूंजीपति हैं और न सरकार. इस तरह से राजामौली एक तीर से दो निशाने साधने की कोशिश करते है. जबकि मूल फिल्म पूरी तरह अंग्रेजों के विरुद्ध दो नायकों की लड़ाई है.




फिल्म में अगर कोई सबसे ज्यादा असर छोड़ता है, तो वह हैं जूनियर एनटीआर. चाहे अख्तर का रूप हो या भीम का, उन्होंने अपना काम बढ़िया अंदाज में किया है. वह अपने किरदार में उतरते हैं और पूरी फिल्म में छाए रहते हैं. रामचरण कंधे से कंधा मिलकर उनका सहयोग करते हैं. अजय देवगन और आलिया भट्ट गैर-बॉलीवुड ग्लैमरहीन भूमिकाओं में हैं. अजय ने अपना रोल अच्छे से निभाया है, जबकि आलिया दक्षिण भारत के तमाम चेहरों के बीच बाहरी दिखतीं हैं. राजामौली बतौर निर्देशक कुछ दृश्यों में अपनी कल्पनाशीलता से चौंकाते हैं. लेकिन स्क्रिप्ट की कमजोरियां उनके निर्देशन पर भारी पड़ जाती हैं. हिंदी में डब फिल्म में सहजता नहीं है और गीत-संगीत असर नहीं छोड़ता. आरआरआर को केवल इस उत्सुकता के साथ देखा जा सकता है कि आखिर बाहुबली वाले राजमौली ने नया क्या बनाया है.