Sanak Movie Review: यह फिल्म शुरू होती है तीन साल से शादीशुदा हीरो-हीरोइन के बच्चा चाहने के इरादे से लेकिन अस्पताल में पहुंचती है, एक्शन वाली कहानी कहने के लिए. सनक ज्यादा देर नहीं लगाती और सीधे मुद्दे पर आ जाती है कि यहां बात कम होगी और धांय-धांय, धूम-धड़ाम, लात-घूंसों का प्रयोग ज्यादा होगा. यही विद्युत जामवाल की फिल्मों की पहचान है. विद्युत ने बॉलीवुड में हॉलीवुड एक्शन स्टार के अंदाज वाली पहचान बनाई है, जिसमें वह खुद मैदान में उतरते हैं. अपने सीन खुद डिजाइन करते हैं. बॉडी डबल नहीं रखते.


अतः मामला अधिक विश्वसनीय और रोचक बन जाता है. लेकिन समस्या यह है कि उनकी फिल्मों की कहानी में कुछ नयापन नहीं होता. यही बात उन्हें लंबे समय से आगे बढ़ने से रोक रही है. सनक में भी यही हुआ है. दुखद यह भी है कि विद्युत यहां अपनी पिछली एक्शन फिल्मों से ऐसा कुछ अलग नहीं करते, जिसे आप सनक कहें. न काम में और न किरदार में. ऐसे में यह फिल्म केवल उन दर्शकों के लिए है, जो या तो विद्युत के फैन हैं या जिन्हें फिल्म में सिवा ऐक्शन के और कुछ नहीं चाहिए.




सनक की नायिका अंशिका (रुक्मिणी मैत्रा) की अस्पताल में एक बड़ी, महंगी मगर सफल सर्जरी हुई है. सब ठीक है और अब विवान (विद्युत जामवाल) उसे घर लाने की तैयारी में है. इधर, अंशिका को बाहर आने में कुछ घंटे बाकी हैं कि तभी अस्पताल में आतंकी घुस जाते हैं. जिनका लीडर है साजू (चंदन रॉय सान्याल). आतंकी अस्पताल में मरीजों, नर्सों, डॉक्टरों को बंधक बना लेते हैं. क्या है इन आतंकियों का मिशन और क्या चाहते हैं. यह सरकार/पुलिस से, यही कहानी में आगे खुलता है. यहां पुलिस (नेहा धूपिया) बंधकों के कारण आतंकियों के आगे मजबूर है. मगर विवान नौ मंजिला अस्पताल के ग्राउंड फ्लोर पर है और उसे अंशिका की चिंता है. वह कैसे बचाएगा अंशिका और बाकी लोगों को. सनक यही बताती है.




डिज्नी हॉटस्टार पर रिलीज हुई यह फिल्म अपने कथानक में निराश करती है. पिछले दिनों ही ओटीटी पर ‘मुंबई डायरीजः 26/11’ जैसी सीरीज अस्पताल में आतंकियों के घुसने और बंधक ड्रामे पर रिलीज हुई, जो नाटकीयता और हकीकत दोनों में सचाई के अधिक करीब है. थ्रिल पैदा करती है. इसी तरह डिज्नी हॉटस्टार पर ही वेब सीरीज ‘हॉस्टेजेस’ के दो सीजन हैं, जिनका रोमांच बांधे रहता है. ऐसी की कई अन्य सीरीज मोबाइल पर दर्शकों के पास उपलब्ध हैं. अब अगर बंधक ड्रामे के कथानक पर किसी निर्देशक-ऐक्टर को कुछ कहना है तो उसे नया कंटेंट, नए आइडिया और नए ड्रामा को लाना पड़ेगा. सनक इस मामले में बहुत पिछड़ी है.




सनक की कहानी तेज रफ्तार से चलती है और 117 मिनट में सब कुछ खत्म हो जाता है. फिल्म की समस्या यह है कि लेखक-निर्देशक ने बंधक ड्रामे के रोमांच पर कम और विद्युत के एक्शन दृश्यों पर ज्यादा फोकस किया है. अतः फिल्म में ऐसा कोई मौका नहीं आता जब दर्शक की सांसें अटक जाए. वहीं, विद्युत के इससे बेहतर ऐक्शन कमांडो सीरीज की फिल्मों में हैं. उनकी फिल्मों में नायिकाओं के लिए आम तौर पर कोई मौका नहीं रहता और यहां भी वही बात है. इंस्पेक्टर जयंती भार्गव के रूप में नेहा धूपिया निराश करती हैं. उनके किरदार का कोई ग्राफ नहीं है. अपने पहले से आखिरी दृश्य में वह जो थी, वही रहती हैं. आतंकियों के आगे असहाय पुलिस अधिकारी के रूप में भी उनके अभिनय में कोई बात नजर नहीं आती. रुक्मिणी मैत्रा को अधिक मौका नहीं मिला. पूरी कहानी में अगर कोई किरदार थोड़ी चमक छोड़ता है तो आतंकी लीडर बने चंदन सान्याल. क्रूरता उनके चेहरे से टपकती है और उनकी संवाद अदायगी भी बढ़िया है. परंतु लेखक-निर्देशक ने उन्हें विद्युत के मुकाबले खड़े करने में मेहनत नहीं की. हीरो और विलेन यहां एक-दूसरे के सामने आए बगैर बातचीत में मुकाबला कर रहे हैं लेकिन उनके बीच ऐसी कोई डायलॉगबाजी नहीं है, जो सनक में चटखारे लगाने के काम आए. विडंबना यह है कि विद्युत के मुकाबले सनक यहां चंदन में ज्यादा दिखती है. फिल्म देखते हुए आप जानते हैं कि आगे क्या होने वाला है. कैमरा वर्क जरूर अच्छा है और अस्पताल की चारदीवारी में एक्शन दृश्यों को बढ़िया रचा गया है. फिल्म का संगीत छाप नहीं छोड़ता. अगर आपके पास पर्याप्त खाली समय है और विद्युत का एक्शन आपको एंटरटेन करता है तो यह फिल्म देखें. वर्ना इस दशहरे ओटीटी पर आपके पास काफी विकल्प हैं.


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