Bestseller Review: धीमी शुरुआत के बाद रफ्तार पकड़ती है सीरीज, श्रुति हासन और मिथुन चक्रवर्ती ने जीते दिल
Review: बेस्टसेलर (Bestseller) बताती है कि एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री को अच्छे लेखकों की जरूरत है. उपन्यास को बढ़िया वेब सीरीज में ढालने के लिए सिर्फ स्क्रीनप्ले लिखने वाले नहीं कहानी को समझने वाले चाहिए.
मुकुल अभ्यंकर
श्रुति हासन, अर्जन बाजवा, गौहर खान, मिथुन चक्रवर्ती, सत्यजित दुबे, सोनाली कुलकर्णी
Shruti Haasan And Mithun Chakraborty Starrer Bestseller Review: हर इंसान की जिंदगी एक कहानी है, जिस पर सिर्फ उसी का हक है. मगर सवाल यह कि क्या उसकी कहानी बेस्टसेलर (Bestseller) हो सकती है. अमेजन प्राइम (Amazone Prime) पर रिलीज हुई वेब सीरीज (Web Series) बेस्टसेलर (Bestseller) ऐसे लोगों की जिंदगी की कहानी कहती है, जो बेस्टसेलर (Bestseller) तो है मगर उसे किसी और ने लिखा है. दूसरे की कहानी चुरा कर लिखने का नतीजा क्या हो सकता है, यह इस थ्रिलर में निर्देशक मुकुल अभ्यंकर (Mukul Abhyankar) ने बताया है. बेस्टसेलर (Bestseller) अंग्रेजी के चर्चित उपन्यासकार रवींद्र सुब्रमणियन के नॉवेल ‘द बेस्टसेलर शी रोट’ पर आधारित है. एल्थिया कौशल और अन्विता दत्त ने इसे वेब सीरीज (Web Series) में ढाला है. यह आठ कड़ियों की ऐसी थ्रिलर है, जिसकी शुरुआत धीमे-धीमे होती है लेकिन आधा सफर तय करने के बाद रफ्तार पकड़ती है.
बेस्टसेलर (Bestseller) मुंबई में रहने वाले सेलेब्रिटी हिंदी उपन्यासकार ताहिर वजीर (अर्जन बाजवा) (Arjan Bajwa) के राइटर्स ब्लॉक से शुरू होती है. दस साल से वह दूसरा नॉवेल नहीं लिख सका. तभी उसकी मुलाकात अपनी एक युवा-खूबसूरत फैन मीतू माथुर (श्रुति हासन) (Shruti Haasan) से होती है. छोटे शहर से आई मीतू ताहिर की तरह कामयाब लेखक बनना चाहती है और अपनी लिखी एक कहानी ताहिर को बताती है. मगर ताहिर की दिलचस्पी मीतू की लिखी कहानी से ज्यादा उसकी निजी जिंदगी में है. ताहिर लगता है कि मीतू की जिंदगी में वह तमाम बातें हैं, जो उसके एक और हिट उपन्यास का मसाला साबित होगी. लेकिन देखते-देखते बाजी पलट जाती है और ताहिर खुद मीतू की कहानी की कठपुतली बन जाता है. यही बेस्टसेलर का थ्रिल है.
वेबसीरीज (Web Series) के लेखकों और निर्देशक ने मूल उपन्यास से काफी छूट लेकर बेस्टसेलर (Bestseller) को फिल्मी अंदाज में बनाया है. ऐसे में यह सिर्फ लेखकों की दास्तान न रह कर पति-पत्नी के रिश्तों में बेवफाई, एड-वर्ल्ड, हैकिंग, फ्लैशबैक और एक सीआईडी इंस्पेक्टर की कहानी के रूप में भी सामने आती है. बावजूद इसके ताहिर को शोहरत दिलाने वाला उपन्यास केंद्र में रहता है और उसके अतीत की परतें बेस्टसेलर (Bestseller) में नई खिड़कियां खोलती हैं. वेब सीरीज को लिखते हुए इसकी लेखक जोड़ी ने हिंदी के लेखन जगत पर थोड़ा शोध किया होता तो कुछ खामियों से बचा जा सकता था. बात यहां एक कामयाब लेखक की है लेकिन लेखक की दुनिया सीरीज में कहीं सामने नहीं आती. रचना-प्रक्रिया या लेखकीय-प्रक्रिया भी हास्यास्पद ढंग से सामने आती है, जबकि यह सीरीज कॉमिक नहीं है. कहानी में जब यह बात आती है कि ताहिर को उसके अगले हिंदी उपन्यास के लिए प्रकाशकों ने करोड़ रुपये की रॉयल्टी दी है तो पता चलता है कि इसे लिखने वाले हिंदी की कितनी हकीकत जानते हैं. हिंदी में मनोरंजन की दुनिया में अच्छे लेखकों का अभाव है, यह बात भी फिर सामने आती है.
बेस्टसेलर (Bestseller) मुख्य रूप से श्रुति हासन (Shruti Haasan) को हिंदी के दर्शकों के बीच स्थापित करती है. उन्होंने यहां एक तरह से दोहरा किरदार निभाया है. वह दो अलग-अलग अंदाज में हैं. दोनों रोल उन्होंने अच्छे ढंग से निभाए. अर्जन बाजवा (Arjan Bajwa) में भले अच्छे राइटर वाली बात नहीं दिखती लेकिन वह भीतर से खोखले लेखक जरूर नजर आते हैं. यही उनकी सफलता है. एक संदिग्ध व्यक्ति के रूप में सत्यजित दुबे (Satyajeet Dubey) ने अपना काम अच्छे ढंग से किया है और गौहर खान (Gauhar Khan) ग्लैमर की भरपाई करती हैं. वह अच्छी अभिनेत्री हैं लेकिन अभी तक उन्हें कोई बहुत अहम किरदार नहीं मिला है, जो लोगों को याद रह सके. इस कहानी में मिथुन चक्रवर्ती (Mithun Chakraborty) रिटायरमेंट के कगार पर खड़े सीआईडी इंस्पेक्टर के रूप में देर से आते हैं और फिर याद रह जाते हैं. पूरे गंभीर घटनाक्रम को वह अपने अंदाज और संवादों से कुछ हल्का-फुल्का बनाते हैं. फैंस को मिथुन यहां पसंद आएंगे.
ओटीटी प्लेटफॉर्मों (OTT Platform) की लोकप्रियता के बाद वेब सीरीज (Web Series) मनोरंजन का नया रूप हैं, लेकिन एक के बाद एक तेजी आ रही ज्यादातर ऐसी कहानियों में दिख रहा है कि इनमें लंबी रेस वाली बात नहीं होती. न ही उनकी रफ्तार शुरू से अंत तक समान होती है. संतुलन का भी अभाव होता है. बेस्टसेलर इसका उदाहरण है.
कहानी के रफ्तार पकड़ने के कुछ ही देर बाद साफ हो जाता है कि मीतू माथुर और पार्थ आचार्य (सत्यजित दुबे) (Satyajeet Dubey) क्या खेल खेल रहे हैं. ताहिर वजीर के गुनाह क्या हैं. यह बातें साफ होते ही वेब सीरीज रोमांच खो देती है. आम दर्शक समझ जाता है कि आगे क्या होगा. ऐसे में अगर वह आगे के एपिसोड न देखे, तब भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा. जबकि यह लेखक-निर्देशक की जिम्मेदारी है कि वह ऐसा कंटेंट बनाएं जो दर्शक को आखिरी सीन तक टिके रहने पर मजबूर कर दे. ऐसा होने पर ही तो कोई रचना बेस्टसेलर बन सकती है.