State OF Siege-Temple Attack Review: सच्ची घटनाओं पर आधारित वेबसीरीज और फिल्में इधर तेजी से आ रही हैं. गांधीनगर (गुजरात) के अक्षरधाम मंदिर पर हुए आतंकी हमले (2002) पर आधारित फिल्म ‘स्टेट ऑफ सीजः टेंपल अटैक’ आज ओटीटी प्लेटफॉर्म जी5 पर रिलीज हुई है. निर्देशक केन घोष की फिल्म यूं तो शुरू में कहती है कि यह सच्ची घटनाओं से प्रेरित है, मगर अक्षरधाम को कृष्णधाम बताती हुई आगे बढ़ती है. अक्षरधाम पर हमले की बारीकियां यहां आपको नहीं मिलेंगी लेकिन आप हादसे की भयावहता और पड़ोसी पाकिस्तान की शह पर पल रहे दहशतगर्दों की निंदनीय हरकत को यहां देख सकते हैं. कैसे चार हमलावर मंदिर में घुसते हैं और खुलेआम लोगों पर फायरिंग करते हुए दर्जनों को बंदी बना लेते हैं. इसके बाद शुरू होता है ब्लैकमेलिंग का खेल. वास्तव में एक घंटे 50 मिनट लंबी ‘स्टेट ऑफ सीजः टेंपल अटैक’ करीब आधे घंटे बाद बंधक ड्रामे में बदल जाती है और यह देखना रोचक होता है कि कैसे एनएसजी के जवान अपने साहस से बाजी पलट देते हैं. जी5 इससे पहले ‘स्टेट ऑफ सीज’ सीरीज के तहत मुंबई हमले (2008) की कहानी आठ कड़ियों में बना चुका है.


‘स्टेट ऑफ सीजः टेंपल अटैक’ उन दर्शकों के लिए है जो सच्ची घटनाओं का रूपांतरण देखने को उत्सुक रहते हैं. 26/11 के मुंबई हमले से लेकर उरी अटैक (2016) की घटनाओं पर कई फिल्में और वेबसीरीज अब बन चुकी हैं. इन्हें दर्शक भी खूब मिले हैं. केन घोष की यह फिल्म वास्तव में आतंकी हमले से अधिक फौजी पराक्रम को केंद्र में रखती है. फिल्म मेजर हनूत सिंह (अक्षय खन्ना) को ऐसे अफसर के रूप में पेश करती है जो देश के लिए हमेशा अपनी जान जोखिम में डालने को तत्पर रहता है. पहले वह आतंकियों के गढ़ में घुस कर एक भारतीय को छुड़ते हैं. फिर मंदिर पर हमले के वक्त आगे बढ़ कर बंधकों को आजाद कराने की जिम्मेदारी लेते हैं. घायल होने पर जब उसे दल से अलग कर दिया जाता है, तब भी वह हार नहीं मानता और अंततः आतंकियों को ठिकाने लगता है.


यह फिल्म ओटीटी प्लेटफॉर्म पर अक्षय खन्ना का डेब्यू है. हमेशा की तरह उनका अभिनय सधा हुआ है. उनके फैन्स को हल्की मुस्कान के साथ जौहर दिखाने वाली अदा यहां भी पसंद आएगी. अक्षय इससे पहले ही ‘बॉर्डर’ और ‘एलओसी’ जैसी फिल्मों में फौजी वर्दी में आ चुके हैं. यह जरूर है कि टीम के अन्य सदस्यों के मुकाबले इस फिल्म में उनकी उम्र थोड़ी अधिक लगती है. यहां उन्हें गौतम रोडे, विवेक दहिया और प्रवीण डबास का अच्छा साथ मिला है. ‘स्टेट ऑफ सीजः टेंपल अटैक’ में अक्षय के हाथों में कमाने होने के बावजूद वह बॉलीवुड हीरो की तरह नहीं उभरते. इसकी वजह फिल्म की पटकथा है, जिसे विदेशी लेखकों (विलियम बोर्थविक और सिमोन फंताउजू) ने लिखा है. पश्चिम की युद्ध या आतंक आधारित फिल्मों में अकसर घटनाएं केंद्र में रहती है. ‘स्टेट ऑफ सीजः टेंपल अटैक’ पर भी यही बात लागू होती है. यहां लेखकों ने उतना ही ड्रामा रखा, जितना आवश्यक था. यह जरूर है कि केन घोष पड़ोसी द्वारा प्रायोजित आतंकवाद का चेहरा दिखाते हुए भी मानवता का संदेश देने के मोह से नहीं बचे. आतंकियों के मंदिर पर हमले के बीच वह सच्चे मुस्लिम की पहचान बताना और हमलावरों के लिए प्रार्थना करते महंत को दिखाना वह नहीं भूले. इसके अतिरिक्त भी घोष अक्षरधाम, गांधीनगर की घटनाओं को आधार बना कर काफी रचनात्मक छूट लेते नजर आते हैं. इससे साफ है कि ‘स्टेट ऑफ सीजः टेंपल अटैक’ उस घटना का हू-ब-हू रूपांतरण नहीं है. अतः इसे तथ्यात्मक रूप से प्रामाणिक मान कर न देखें.


पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद पर तमाम फिल्में बन चुकी हैं. ऐसे में कुछ दर्शकों को कई बातें यहां पुरानी या दोहराई जा रही मालूम पड़ सकती हैं. खास तौर पर आतंकियों द्वारा किसी का अपहरण या लोगों को बंधक बनाना और बदले में अपने साथी की रिहाई कराना. बावजूद इसके फिल्म की घटनाएं बांधे रहती हैं क्योंकि पटकथा कसी है. फिल्म में कैमरे ने अपना काम खूबसूरती से किया है और कई दृश्य आकर्षक हैं. इसी तरह एक्शन भी बढ़िया है. फिल्म में खलनायकी की बागडोर अबू हमजा (अभिमन्यु सिंह) के हाथों में है, जो मंदिर पर हमले की योजना बना कर उसे चार गुमराह नौजवानों से अंजाम दिलाता है. बदले में भारत सरकार से अपने साथी बिलाल नाइकू (मीर सरवर) की रिहाई चाहता है. हमलावर आतंकियों की भूमिका में अभिलाष चौधरी (इकबाल), धनवीर सिंह (हनीफ), मृदुल दास (फारूक) और मिहिर आहूजा (उमर) अपना काम करने में सफल रहे. 2002 में अक्षरधाम मंदिर पर हुआ यह हमला भारत के इतिहास का तकलीफदेह अध्याय है, जिसमें 30 लोगों की जान गई थी. ‘स्टेट ऑफ सीजः टेंपल अटैक’ भले ही उन दर्दनाक यादों को जगाती है, मगर कुछ कड़वी बातें ऐसी होती हैं, जिन्हें भविष्य में सावधान रहने के लिए याद रखा जाना चाहिए.