Annabelle Rathore Review: पुनर्जन्म, भूतों और बदले की है कहानी, थोड़ा रोमांस और शुरू से अंत तक मिलेंगी तापसी
Annabelle Rathore Review: इस हॉरर में कॉमेडी ज्यादा है. तापसी पन्नू के फैन्स उन्हें यहां शुरू से अंत तक देख सकते हैं. शुरुआत में लड़खड़ाती हुई फिल्म दूसरे हिस्से में बांधती है.
![Tapsee Pannu Vijay Sethupathi Annabelle Sethupathi Movie Review Annabelle Rathore Review: पुनर्जन्म, भूतों और बदले की है कहानी, थोड़ा रोमांस और शुरू से अंत तक मिलेंगी तापसी](https://feeds.abplive.com/onecms/images/uploaded-images/2021/09/17/0fc6e8be72c83112c232aa8ddf1cef27_original.jpg?impolicy=abp_cdn&imwidth=720)
दीपक सुंदर राजन
तापसी पन्नू, विजय सेतुपति, जगपति बाबू, योगी बाबू
Annabelle Rathore Review: तापसी पन्नू स्टारर ऐनाबेल राठौर में एक किरदार का संवाद हैः नई कहानी कौन बनाता है आजकल, पुरानी कहानियों को री-साइकल करके परोसते हैं. व्हाट कैन आई डू. फिल्मों में आजकल यही चलन है. ओटीटी के सहारे जेब-जेब में पहुंच चुके एंटरटेनमेंट के दौर में इधर ओरीजनल कंटेंट की तलाश चरम पर है, तो उधर सुस्त निर्माता-निर्देशक बासी को ही नया बना कर पेश करने में लगे हैं. कंगना रनौत से टक्कर लेने वाली तापसी पन्नू द्वारा इस कहानी का चयन हैरत में डाल देता है. हाल के दौर में कामयाब हीरोइनों की एक समस्या यह है कि वह स्क्रिप्ट कम और पर्दे पर अपना स्क्रीन टाइम ज्यादा देखती हैं. वह भूल जाती हैं कि किरदारों का संतुलन फिल्म को मजबूत बनाने में अहम रोल अदा करता है.
करीब सवा दो घंटे की ऐनाबेल राठौर में तापसी दो घंटे तक मुख्य कहानी में बनी रहती हैं परंतु किसी भी तरह शोले नहीं भड़का पातीं. दक्षिण के निर्माता-निर्देशक द्वारा बनाई यह फिल्म डिज्नी हॉटस्टार पर तमिल, तेलुगु और हिंदी में रिलीज हुई है. तमिल-तेलुगु में फिल्म का नाम ऐनाबेल सेतुपति है. फिल्म पूरी तरह मसाला एंटरटेनर है और किरदार बीच-बीच में आपको याद दिलाते रहते हैं कि यहां लॉजिक न ढूंढें. अतः बेहतर है कि आप भुतहा, पुनर्जन्म और बदले की इस कॉमिक कहानी में दिमाग न लगाएं.
फिल्म हमारे समय में शुरू होती है, जब यहां-वहां चोरी करने वाला एक परिवार पुलिस के हत्थे चढ़ता है. जिसकी लीडर रुद्रा (तापसी पन्नू) है. माता-पिता-भाई के साथ चोरियां करती रुद्रा इंस्पेक्टर को इंप्रेस करने के लिए पूरा जोर लगाती हैं और वह उन्हें अंदर करने की बजाय अपनी एक पुश्तैनी जायदाद/महल की साफ-सफाई करने का आदेश देता है. महल भुतहा है और दर्जन भूत इसमें रहते हैं. अतः कोई खरीददार नहीं मिल रहा. रुद्रा का परिवार योजना बनाता है कि महल की बेशकीमती चीजें लेकर चंपत हो जाएं, मगर भूतों का प्लान दूसरा है. कहानी देश की आजादी के दौर में पहुंचती है जब देसी रियासतें होती थीं. राजे-रजवाड़े होते थे. राजा देवेंद्र सिंह राठौड़ (विजय सेतुपति) की मुलाकात अंग्रेज-बाला ऐनाबेल (तापसी पन्नू) से होती है और वह दिल दे बैठते हैं. ऐनाबेल से शादी करके प्यार की निशानी के तौर पर देवेंद्र भव्य महल बनाते हैं मगर जमींदार चंद्रभान (जगपति बाबू) की नजर उस पर है. राजा यह महल बेचने से इंकार कर देते हैं और कहानी में ट्विस्ट-टर्न पैदा होते हैं.
आज की रुद्रा कल की ऐनाबेल का पुनर्जन्म है. पुनर्जन्म क्यों है, ऐनाबेल की क्या कहानी थी, महल से रुद्रा का कनेक्शन क्या गुल खिलाएगा, राजा देवेंद्र और जमींदार चंद्रभान का क्या हुआ, महल में रहने वाले भूत कौन हैं, क्यों वे भूत बने, भूतों का अंतिम लक्ष्य इस पीड़ादायक योनि से मुक्ति पाना है, तो क्या मुक्ति मिलेगी, मिलेगी तो कैसे मिलेगी. वगैरह-वगैरह.
ऐनाबेल राठौर का मूल तत्व भले हॉरर है लेकिन इसे कॉमिक अंदाज में बनाया गया है. सच तो यह है कि फिल्म में हॉरर शून्य बराबर है. एक भी दृश्य या किरदार नहीं डराता. फिल्म शुरू से दर्शक को बांधने की कोशिश करती है और कहीं-कहीं सफल होती है. लेकिन कहानी को स्थापित करने में लेखक-निर्देशक दीपक सुंदर राजन लंबा समय लेते हैं और कॉमेडी के लिए कुछ नया नहीं करते. इसलिए पहला हिस्से में कई दोहराव और पुरानापन मालूम पड़ता है. मध्य-बिंदु के बाद जरूर ऐसी घटनाएं हैं जो नए सिरे से दर्शक में दिलचस्पी पैदा करती है और फ्लैशबैक में कुछ रोचक रहस्य खुलते हैं.
दीपक सुंदर राजन ने बहुत सारा ड्रामा रचने की कोशिश की है लेकिन उनकी कल्पना पंख नहीं फैला पाती. इसलिए तमाम किरदार गोल घेरे में घूमते हैं और एक के बाद दूसरे सीन में कोई नई बात नहीं निकलती. हर सीन में भूत लगभग अपनी बातें दोहराते और पिछले वाले ही हाव-भाव दिखाते हैं. उनकी बैक-स्टोरी पर सुंदर राजन ने काम नहीं किया. इससे फिल्म सुस्त पड़ जाती है.
तापसी पन्नू और विजय सेतुपति की लीड भूमिकाएं हैं परंतु आपके मन में सरज ही सवाल आता है कि आखिर क्या सोच कर उन्होंने फिल्म को हां कहा. हालांकि हिंदी के दर्शकों को याद रखना होगा कि तापसी ने एक दशक से अधिक के करियर में आधी फिल्में तमिल-तेलुगु-मलयालम में की हैं. यहां सेतुपति और उनके बीच रोमांस के दृश्य हैं और इसमें दोनों ने ठीक काम किया है. सेतुपति की एंट्री दूसरे हिस्से में होती है. पहले में वह गायब हैं. रुद्रा और ऐनाबेल के रूप में तापसी सहज हैं. जगपति बाबू और योगी बाबू का अभिनय बढ़िया है. उनके किरदार भी अच्छे से लिखे हैं गए हैं. योगी बाबू काफी हद तक फिल्म को बांधते हैं. महल को मेहनत से गढ़ा गया है जबकि किरदारों के कॉस्ट्यूम पीरियड ड्रामा के हिसाब से हैं. हिंदी में साउथ की फिल्मों के बड़ी संख्या में दर्शक हैं. उन्हें ये फिल्में खूब पसंद आती हैं. अगर आप भी साउथ के फैन हैं और बिना तर्क वाली हॉरर कॉमेडी फिल्मों के शौकीन भी, तो ऐनाबेल राठौर आपके लिए है. अगर फिल्म के द एंड की मानें तो जल्द ही इसका पार्ट-2 भी आएगा.
ट्रेंडिंग न्यूज
टॉप हेडलाइंस
![ABP Premium](https://cdn.abplive.com/imagebank/metaverse-mid.png)