Tarla Review In Hindi: क्या अच्छी कहानियां हैं नहीं...क्या अच्छी देसी और ओरिजनल कहानियां नहीं बनाई जा सकती. क्या एक्टिंग करने का एक ही सेट फॉर्मूला है. क्या अब ओटीटी पर वैसी फिल्में नहीं आती जो फैमिली के साथ बिना किसी हिचकिचाहट के देख सकें. इन सारे सवालों का जवाब है जी5 पर आई फिल्म तरला जो पद्मश्री से सम्मानित शेफ तरला दलाल की कहानी है और ऐसी कहानी है जो आपके दिल को छू जाएगी.


कहानी
ये तरला दलाल की जिंदगी की असली कहानी है. उन्हें जिंदगी में करना क्या है ये उन्हें पता नहीं है. आम मिडिल क्लास परिवार की तरह शादी करवा दी जाती है और फिर शादी के बाद पति नलिन का साथ जब मिलता है कैसे तरला एक ऐसी शेफ बन जाती हैं जो एक मिसाल है. मास्टरशेफ के दौर से पहले कैसे तरला दिल जीतने वाली मास्टरशेफ बनती हैं. यही कहानी है तरला की और ये कहानी इतनी कमाल की है कि इससे ज्यादा बताना ठीक नही है. आपको इस फिल्म को देखकर ही इस कहानी को महसूस करना होगा.


एक्टिंग
क्या एक्टिंग की रेंज एक दायरे तक ही सीमित होती है. हुमा कुरैशी इस सवाल का जवाब तरला में कायदे से देती हैं. पिछले कुछ वक्त से हुमा वैसे ही सरप्राइज कर रही हैं. चाहे वो महारानी हो या मोनिका ओह माय डार्लिंग या फिर डबल XL... इस फिल्म में जिस तरह से वो तरला को जीती हैं आपको ये महसूस ही नहीं होता कि ये हुमा हैं. उनकी जवानी से बुढ़ापे तक के सफर को हुमा ने शिद्दत से निभाया है और हर सीन में एक जायका डाला है. ऐसा लगा ही नहीं कि हुमा एक्टिंग कर रही है. लगा कि वो तरला ही हैं...ये फिल्म हुमा के खुद के लिए एक माइलस्टोन है और अब आगे इससे बेहतर कैसे करना है ये उनके खुद के लिए एक बड़ी चुनौती होगी.


हुमा के पापा सलीम कुरैशी सलीम नाम की रेस्टोरेंट चेन के मालिक हैं और कहीं ना कहीं बेटी को इस किरदार में देखकर उन्हें भी एक अलग तरह का सुकून जरूर मिला होगा.. शारिब हाशमी फिल्म में एक अलग तरह का जायका लाते हैं. वो कमाल के एक्टर हैं और यहां वो एक बार फिर ये बात साबित करते हैं. इस फिल्म के बाद शारिब की फैन फॉलोइंग में गजब का इजाफ होने वाला है. खासतौर पर महिलाएं शारिब का ये किरदार खूब पसंद करेंगी क्योंकि शारिब एक आइडियल पति बने हैं जो अपनी पत्नी को शिद्दत से सपोर्ट करता है और इस फिल्म को देखने के बाद रियल लाइफ में शारिब जैसा पति बनने का दबाव भी कुछ पतियों पर बढ़ सकता है क्योंकि आज के दौर में कुकिंग वीडियोज बनाना कोई मुश्किल काम तो है नहीं. बाकी के कलाकारों ने भी अच्छा काम किया है. 


डायरेक्शन
पीयूष गुप्ता ने फिल्म को डायरेक्ट किया है. उन्होंने छिछोर और दंगल जैसी फिल्में लिखी हैं इस फिल्म को भी पीयूष ने खुद ही लिखा और डायरेक्ट किया है. और कहना होगा कि पहली बॉल पर पीयूष ने सिक्सर मारा है. उन्होंने ये दिखाया है कि अच्छी और सिंपल कहानियां आज भी बन सकती हैं. बस उन्हें ढूंढने और बनाने वाला चाहिए और जिस तरह से उन्होंने इसे बनाया है उसके लिए पीयूष की तारीफ की जानी चाहिए. 


कमी
ये एक ऐसी फिल्म है जो मुझे काफी वक्त बाद लगा कि थोड़ी लंबी होती तो और मजा आता. थोड़ी और गहराई में तरला की कहानी दिखाई जाती तो और मजा आता. फिल्म करीब 2 घंटे की है और कहीं कहीं लगता है कि फिल्म को जानबूझकर छोटा कर दिया गया है.


म्यूजिक
फिल्म का म्यूजिक ठीकठाक है. इसमें बेहतरी की काफी गुंजाइश थी. 


कुल मिलाकर ये एक ऐसी फैमिली फिल्म है जो पूरे परिवार के साथ मजे से देखी जा सकती है. 


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