Thalaivi Review: जया की बायोपिक में कंगना साबित हुईं सबकी ‘अम्मा’, शानदार अभिनय से जीते दिल
Thalaivi Review: तमिलनाडु की छह बार मुख्यमंत्री रहीं जे.जयललिता की इस बायोपिक में कंगना रनौत कमाल करती हैं. तमिल-तेलुगु के साथ हिंदी में बनी फिल्म के लिए कंगना ही आकर्षण का केंद्र हैं.
ए.एल. विजय
कंगना रनौत, अरविंद स्वामी, नासिर, भाग्यश्री, राज अर्जुन, जिशु सेनगुप्ता
Thalaivi Review: स्वतंत्र भारत की राजनीति में जिन महिलाओं ने लौह-छवि के साथ खुद को पुरुष प्रतिद्वंद्वियों से बीस साबित किया, उनमें 14 बरस से भी ज्यादा तमिलनाडु की मुख्यमंत्री रहीं जयराम जयललिता का नाम शीर्ष पर है. जया लोकप्रिय अभिनेत्री थीं और अपने सीनियर एम.जी. रामचंद्रन के साथ उनकी नजदीकियां सदा सुर्खियों में रही. एमजीआर ही उन्हें राजनीति में लाए. जहां जयललिता ने लंबी पारी खेली और ‘अम्मा’ कहलाईं. हालांकि वह कई विवादों में भी घिरीं. एक तरफ उन्हें देवी मान कर मंदिर बनाने वाले थे तो दूसरी तरफ उन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे और अदालत ने जेल की सजा भी सुनाई. निर्देशक ए.एल. विजय की जे.जयललिता पर बनी बायोपिक थलाइवी गैर-विवादित सुविधाजनक फिल्म के रूप में सामने आती है.
फिल्म तमिल-तेलुगु-हिंदी में बनी है. देसी बायोपिक फिल्में अक्सर व्यक्ति-पूजा की तरह सामने आती हैं और थलाइवी भी वैसी ही है. बायोपिक फिल्मों से आप शख्सियत का पूरा सच नहीं जान सकते. थलाइवी जया (कंगना रनौत) के जीवन की अहम घटनाओं को समेटती है, जिसमें वह मां (भाग्यश्री) की इच्छा के आगे समर्पण करते हुए तमिल फिल्मों में अभिनेत्री बनती है, ताकि घर में नियमित आय आती रहे. जया को जल्द ही बड़े सितारे एम.जी. रामचंद्रन (अरविंद स्वामी) के साथ फिल्म मिल जाती है. दोनों साथ में कई फिल्में करते हैं. एमजीआर पर जया आसक्त होती है और एमजीआर को भी उसका खरा-निडर स्वभाव पसंद आता है. दोनों के बीच ऐसे रिश्ते की शुरुआत होती है, जिसे कोई एक नाम नहीं दिया जा सकता. जिसके कई आयाम होते हैं.
पर्दे पर यह जोड़ी बेहद पसंद की जाती है, लेकिन कुछ लोगों को यह रास नहीं आता. खास तौर पर एमजी के पीए वीरप्पन (राज अर्जुन) को. उसे लगता है कि जया से नजदीकी इस सुपरस्टार के लिए नुकसानदायक होगी. उधर, एमजीआर कुछ वर्षों बाद करुणानिधि (नासिर) की पार्टी डीएमके में शामिल होकर राजनीति में उतरते हैं. इस बीच जया से उनकी दूरी बढ़ती है. एमजीआर बाद में करुणानिधि से अलग होकर अपनी पार्टी बनाते हैं.
करीब एक दशक बीतता है. बढ़ती उम्र की वजह से जया को फिल्में मिलनी लगभग बंद हो गई हैं. तभी फिर एमजीआर से जया की मुलाकात होती है. वह उसे अपनी पार्टी में शामिल होने को कहते हैं. जया इंकार करती है मगर एक घटना उसे इरादा बदलने को प्रेरित करता है. कहानी नई करवट लेती है. नई जया सामने आती है. एमजीआर की जिंदगी में जया की वापसी आसान नहीं होती. मगर बचपन से जीवन-संघर्षों से दो-चार होने वाली जया किसी और मिट्टी की बनी है. वह उसे गिराने में लगे लोगों के विरुद्ध महाभारत छेड़ देती है और अंततः विजेता के रूप में उभरती है.
जया की जिंदगी खुली किताब थी और सिनेमा-राजनीति में दिलचस्पी रखने वालों से कुछ छुपा नहीं है. आम आदमी भी कमोबेश उनके नाम-काम से परिचित है. मगर निर्देशक विजय की थलाइवी ऐसी सशक्त महिला की कहानी के रूप में सामने आती है, जो आत्मसम्मान की लड़ाई पूरी मजबूती से लड़ती है और मर्दों की राजनीतिक दुनिया में ‘अम्मा’ का दर्जा पाती है. परंतु इस लड़ाई के समानांतर यह एक ऐसी स्त्री को भी हमारे सामने लाती है, जिसके अंदर सच्चे और पवित्र प्रेम की कामना के लिए कोमल दिल धड़कता है. वह एक विवाहित पुरुष से बिना शर्त प्रेम करती है. निश्छल होकर खुद को उसे समर्पित कर देती है.
यह सही है कि किसी के पूरे जीवन को दो से तीन घंटे की फिल्म में नहीं उतारा जा सकता मगर जरूरी घटनाओं को न चुनना, लेखक की अपनी राजनीति होती है. थलाइवी ऐसी कोई बात सामने नहीं लाती, जो जया के बारे में लोगों को मालूम न हो. बाहुबली फिल्मों के लेखक के.वी. विजेंद्र प्रसाद और रजत अरोरा ने थलाइवी लिखी है. उन्होंने 1960-70 के दौर की फिल्मी और दक्षिण भारतीय संस्कृति की बारीकियों को बखूबी दर्ज किया है. निर्देशक विजय ने कलम से निकले शब्दों को हू-ब-हू पर्दे पर सफलतापूर्वक उतारा है. फिल्म का पहला हिस्सा जया की निजी-फिल्मी जिंदगी पर है और उतना आकर्षित नहीं करता, जितना दूसरा. जिसमें जया लौह-महिला और राजनेता की तरह उभरती हैं. हिंदी संस्करण के संवाद रजत अरोरा ने लिखे हैं.
थलाइवी पूरी तरह से कंगना रनौत की फिल्म है. उन्होंने 16 वर्षीय किशोरी से लेकर मध्यम आयु तक की जया का किरदार बहुत परिश्रम और खूबसूरती से निभाया है. उनकी काया भी समय के साथ पर्दे पर बदलती है और ऐसा हिंदी फिल्मों में कम दिखता है. यह प्रशंसनीय है. निश्चित ही कंगना अपने दौर की सशक्त अभिनेत्री हैं मगर राजनीतिक विवादों से उन्होंने अपना नुकसान किया है. अरविंद स्वामी एमजीआर के रूप में बेहतरीन हैं और उनके पीए वीरप्पन बने राज अर्जुन जगह-जगह छाप छोड़ते हैं. नासिर ने हमेशा की तरह यहां भी अपनी भूमिका से न्याय किया है. अगर आप बड़े पर्दे पर गुजरे जमाने का फील लेना चाहें, जे.जयललिता के जीवन को बड़े स्क्रीन पर देखना चाहें और आपके यहां सिनेमाघर खुले हों तो जा सकते हैं. मगर छोटे स्क्रीन पर इसे टक्कर देने के लिए एमएक्स प्लेयर पर वेबसीरीज क्वीन (2019) मौजूद है. यह प्रत्यक्ष तौर पर तो जया की बायोपिक नहीं है लेकिन उन्हीं के जीवन से प्रेरित और घटनाओं पर आधारित है.