Thank you for coming Review: ये फिल्म खत्म हुई तो लगा Thank you for ending. एक मीम काफी मशहूर है. कहना क्या चाहते हो भाई.इस फिल्म को देखते हुए यही लगा.इस फिल्म की प्रोड्यूसर एकता कपूर को एक कमेटी बनानी चाहिए जो ये पता लगाए कि ये फिल्म क्यों बनाई गई. किसलिए बनाई गई और क्या बनने के बाद किसी ने देखी.इन दिनों वुमन एम्पावरमेंट और वुमन इंडिपेंडेंस के नाम पर काफी कुछ होता है.काफी कंटेंट बनता है लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि आप कुछ भी बना दोगे
कहानी
ये कहानी एक ऐसी लड़की की है जिसे शुरू से लड़के ये कहते हैं कि उसे ठीक से सेक्स करना नहीं आता और उसे जिंदगी में कभी orgasm नहीं हुआ तो बस वो orgasm की तलाश में लग जाती है.सोचिए orgasm की तलाश में और किसी के भी साथ सोने को तैयार है और पूरे इमोशन्स के साथ, इस कहानी में कभी भी कुछ भी होता है.वो लड़की किसी के भी साथ कुछ भी करने को तैयार रहती है. बस चरम सुख की प्राप्ति के लिए. आगे कहानी में क्या है.ये देखने के लिए थिएटर मत जाइएगा. ओटीटी पर आ जाएगी और कुछ करने को ना हुआ तो देख लीजिएगा.
कैसी है फिल्म
ये कहानी देखकर लगता है कि या तो हम बहुत पीछे रह गए हैं या ये फिल्म ही बड़े आगे वाले जमाने की बनाई गई है.फिल्म शुरू से ही बस एक ही मुद्दे पर चलती है चरम सुख की तलाश पर और आप सोचने पर मजबूर हो जाते हैं कि क्या ऐसा भी होता है. क्या कोई लड़की ऐसा भी करती है. हमने तो नहीं देखा. आपको समझ नहीं आता कि क्या हो रहा है. क्यों हो रहा है, किसलिए हो रहा है. इंटीमेट सीन भी इरिटेट करते हैं.कहानी कहीं से कहीं कनेक्ट हो जाती है लेकिन दर्शकों से कनेक्ट नहीं हो पाती. सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर्स की भीड़ जुटाकर फिल्म को पब्लिसिटी तो दिलवाई जा सकती है लेकिन अच्छी फिल्म के लिए अच्छी कहानी चाहिए, अच्छा ट्रीटमेंट चाहिए.जो इस फिल्म में मिसिंग है और एंड में आप समझ नहीं पाते कि ये फिल्म क्या ये बात कर रही थी जो क्लाइमैक्स में की गई है और आपको लगता है कि आपके साथ धोखा हो गया है.
एक्टिंग
भूमि पेडनेकर लीड रोल में हैं. उनका काम ठीक है लेकिन फिल्म की कहानी और ट्रीटमेंट ही बकवास है तो वो क्या करतीं. शहनाज गिल को फिल्म के प्रमोशन में काफी आगे रखा गया.उनकी फॉलोइंग जबरदस्त है .उसे भुनाने की कोशिश की गई. शहनाज फिल्म में लगी भी अच्छी हैं लेकिन यहां आपको वो मासूम वाली शहनाज नहीं दिखेंगी, हॉट एंड सिजलिंग वाली दिखेंगी. लेकिन उन्हें भी काफी कम स्पेस मिला है और वो अचानक गायब भी हो जाती हैं.कुशा कपिला का काम ठीक है लेकिन उन्हें काफी कम स्पेस मिला है. शिबानी बेदी ने भी ठीक एक्टिंग की है.कुल मिलाकर एक्टर्स का कम ठीक है लेकिन जब डायरेक्टर क्लियर नहीं होगा तो एक्टर क्या करेंगे?
डायरेक्शन
करन बुलानी ने फिल्म को डायरेक्ट किया है. वो कहानी को या तो ठीक से समझ नहीं पाए या समझा नहीं पाए. मॉर्डन होने का मतलब, आजादी का मतलब अगर ये सब होता है तो हम पिछड़े ही सही हैं. कोई लड़की किसी भी टाइम किसी के भी साथ सेक्स करने को ऐसे ही तो तैयार नहीं हो जाती तो डायरेक्टर साहब को समझना पड़ेगा कि वो कहना क्या चाहते हैं. हम तो नहीं समझ पाए.
कुल मिलाकर मुझे तो ये फिल्म लड़कियों की अपमान ज्यादा लगी.फिल्म में चमक धमक है अच्छे चेहरे हैं, अच्छे कपड़े हैं लेकिन इन सबसे अच्छी फिल्म नहीं बनती.उसके लिए अच्छी कहानी और ट्रीटमेंट चाहिए