The Diplomat Review: जॉन अब्राहम अपनी पिछली फिल्म वेदा की प्रेस कॉन्फ्रेंस में एक पत्रकार के सवाल पर भड़क गए थे. पत्रकार का सवाल था कि आप एक जैसी ही फिल्में कर रहे हैं. हालांकि बाद में जॉन ने एक इंटरव्यू में इस पर खेद भी जताया और अब द डिप्लोमेट के जरिए कुछ नया करने की कोशिश भी की है. हालांकि इस फिल्म की असली हीरो सादिया खतीब हैं जिन्होंने उज्मा अहमद का किरदार निभाया है और अभिनय की नई ऊष्मा बिखेरी है. वो कई सीन्स में जॉन पर भारी लगती है और इस फिल्म को अपने कंधों पर लेकर चलती हैं.
कहानी- ये फिल्म असली कहानी पर आधारित है. जेपी सिंह पाकिस्तान में भारतीय डिप्लोमेट हैं. इंडयिन एंबेसी में एक दिन उज्मा अहमद नाम की महिला आती है जो कहती है कि पाकिस्तान के एक शख्स ने उससे धोखे से शादी की और अपनी कैद में रखा और अब वो अपने घर हिंदुस्तान जाना चाहती है. जेपी सिंह इसमें उसकी मदद करते हैं और कैसे करते हैं. यही इस फिल्म की कहानी है. इसमें तब की केंद्रीय मंत्री सुषमा स्वराज ने भी उनकी मदद की थी.
कैसी है फिल्म - ये फिल्म ठीक ठाक है. इस फिल्म में जिस कहानी को पेश किया गया है वो अच्छी है. उस कहानी का सामने आना चाहिए था. जिन लोगों को इस बारे में नहीं पता उन्हें पता चलना चाहिए. हालांकि ये फिल्म राजी और उरी जैसा एंटरटेनमेंट नहीं करती. फिल्म में मसालों की कमी लगती है और शायद इसकी वजह है कि फिल्म डिप्लोमेसी पर है. लेकिन सिनेमैटिक लिबर्टी के नाम पर जहां क्या क्या कर दिया जाता है वहीं इसमें कुछ और एंटरटेनमेंट तो डाला ही जा सकता था. ये फिल्म अच्छी परफॉर्मेंसेस की वजह से देखी जा सकती है. फिल्म को काफी सिंपल रखा गया है और इस वजह से ये फिल्म कहीं कहीं बोरिंग लगती है लेकिन तब भी ये वन टाइम वॉच तो पक्का है.
एक्टिंग- सादिया खतीब इस फिल्म की जान हैं. उनका काम काफी अच्छा है. रक्षाबंधन के बाद उन्हें इस फिल्म में एक्टिंग का हुनकर दिखाने का पूरा मौका मिला है और उन्होंने इसका फायदा भी उठाया है. वो लगती तो बहुत खूबसूरत हैं ही. यहां उनके एक्स्पेशन से लेकर डायलॉग डिलीवरी तक जबरदस्त हैं. उन्हें देखकर लगता है कि फिल्ममेकर्स की नजर ऐसे टैलेंट पर क्यों नहीं पडती है. बिना टैलेंट वाले नेपो किड्स को प्रमोट करने वाले फिल्ममेकर्स अगर ऐसी हुनरमंद एक्ट्रेस को मौका दें तो सिनेमा का भी भला होगा.
जॉन अब्राहम कुछ नया करने की कोशिश करते हैं. हालांकि बालों को तेल से चिपका लेने और मूंछें रख लेने से कोई डिप्लोमेट बन जाता है ये बात समझ नहीं आती. जिस तरह विकी कौशल छत्रपति संभाजी महाराज बने या फिर रणदीप हुड्डा सरबजीत बने. वैसा करिश्मा जॉन के लुक में नहीं दिखता. उनके डोले शोले वैसी ही दिखते हैं, बस यहां उन्होंने सूट पहन लिया है. यहां जॉन एक्शन नहीं करते, डिप्लोमेसी करते हैं और उनकी इस कोशिश की तारीफ की जानी चाहिए. कुमुद मिश्रा का काम अच्छा है लेकिन उनका रोल थोड़ा और बड़ा होना चाहिए था. शारिब हाशमी हमेशा की तरह कमाल का काम कर गए हैं, रेवती का काम भी अच्छा है.
डायरेक्शन- शिवम नायर ने फिल्म को डायरेक्ट किया है और रितेश शाह ने फिल्म को लिखा है. इन्होंने फिल्म को सिंपल रखा है और कुछ ज्यादा सिंपल रखा है. थोड़े से मसाले और डाले जाते तो फिल्म कमर्शियल लेवल पर और अच्छा करती लेकिन यहां सीधे सीधे कहानी को बता दिया गया है .
कुल मिलाकर ये फिल्म सादिया खतीब और जॉन के लिए देखी जा सकती है
रेटिंग- 3 स्टार्स