The Great Indian Family Review: क्या हिंदू के रोटी खाने का तरीका अलग होता है. क्या करने से आप मुस्लिम बन जाते हैं. क्या करके आप मुसलमान जैसा फील करने लगते हैं. क्या रिव्यू भी हिंदू या मुस्लिम स्टाइल में होता है. फर्क क्या होता है हिंदू और मुस्लिम में. विक्की कौशल (Vicky Kaushal) की ये फिल्म ऐसे सवाल उठाती है और उन सवालों का बड़े प्यारे अंदाज में जवाब देती है और एंड में ये मैसेज देती है कि हम सब एक फैमिली हैं.


कहानी 
ये कहानी है पंडितों की एक फैमिली की जिनका बेटा बेद व्यास त्रिपाठी की जो भजन कुमार के नाम से मशहूर है औऱ ऐसा इसलिए क्योंकि भजन कुमार शानदार भजन गाता है और शहर में पूजा पाठ और कीर्तन जागरण करवाने के लिए सबसे फेमस है. इन शॉर्ट कहें तो स्टार है लेकिन दिक्कत है ये कि भरी जवानी में लड़कियां पंडित जी नमस्ते कहकर पैर छू लेती हैं लेकिन ये तो छोटी सी दिक्कत है. उससे भी बड़ी दिक्कत तो तब खड़ी हो जाती है जब पता चलता है कि भजन कुमार मुसलमान है और फिर तो जैसे तूफान आ जाता है. लेकिन भजन कुमार को समझ नहीं आता कि हिंदू और मुसलमान में फर्क क्या है और यही फर्क जब वो सबको समझाता है तो क्या समझ आता है इसके लिए आपको ये फिल्म देखने थिएटर में जाना पड़ेगा.


कैसी है फिल्म
ये फिल्म एक शानदार मैसेज देती है और बड़े प्यारे तरीके से देती है. फिल्म में कोई ग्रैंड सेट नहीं है. बलरामपुर नाम की एक छोटी सी जगह है. उसी छोटे से मोहल्ले से फिल्म शुरू होती है और वहीं खत्म हो जाती है. देसी भाषा है और इस फिल्म की सादगी ही आपके दिल को छू जाती है. डायलॉग मजेदार हैं हालांकि और पंच डाले जा सकते थे. फिल्म अपनी पेस से आगे बढ़ती है. बोर नहीं करती और एंड तक आते आते काफी कुछ बता जाती है. फिल्म में जिस तरह से ये बताया जाता है कि हर धर्म का इंसान एक जैसा ही तो होता है. हिंदू भी तो बिरयानी खा सकती है. बिरयानी से मतलब नॉन वेज बिरयानी ही है क्योंकि वेज बिरयानी नाम की कोई चीज नहीं होती. ऐसा कहीं सुना था तो ये फिल्म आपको धर्म के फर्क को जिस तरह से समझाती है वो आपके दिल को छूता है और यही इस फिल्म की खूबसूरती है.


एक्टिंग
विक्की कौशल ने एक बार फिर शानदार काम किया है. जिस तरह से उन्होंने देसी लहजे को पकड़ा है और डायलॉग बोले हैं. वो आपका दिल जीत लेते हैं. क्लाइमैक्स में जब वो 70 MM के पर्दे पर हिंदू और मुस्लिम के बीच का फर्क बताते हैं तो आपका ताली बजाने का मन करता है. विक्की ने एक बार फिर दिखा दिया है कि वो हर किरदार में फिट हो सकते हैं और उनकी रेंज काफी बड़ी है. मानुषी छिल्लर ने ठीक ठाक काम किया है. उनका एंट्री सीन अच्छा है लेकिन उसके बाद उन्हें ज्यादा स्पेस नहीं मिला. कुमुद मिश्रा ने विक्की के पिता के किरदार में काफी अच्छा काम किया है. वो स्क्रीन पर कमाल का असर छोड़ते हैं. मनोज पाहवा शानदार हैं, यशपाल शर्मा ने भी अच्छा काम किया है.


डायरेक्शन
धूम 3 और टशन जैसी फिल्में डायरेक्ट कर चुके विजय कृष्ण आचार्य ने यहां कुछ अलग किया है. यहां ना वो स्टाइल है ना वो स्वैग. एक सादगी है जिसे उन्होंने अच्छे से दिखाया है. फिल्म पर पकड़ वो ढीली नहीं होने देते लेकिन फिल्म में अगर कुछ मसाले और डाले जाते तो ये और बेहतर हो सकती थी.


म्यूजिक
प्रीतम का म्यूजिक अच्छा है. फिल्म के बीच में भी जब गाने आते हैं तो आपको बोर नहीं करते. गाने भले उनते फेमस ना हुए हों लेकिन फिल्म में अच्छे लगते हैं.


कुल मिलाकर ये फिल्म देखनी चाहिए. अगर किसी और के लिए नहीं तो इस फिल्म के जरिए जो मैसेज दिया गया है उसके लिए.


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