The House of Secrets-The Burari Deaths Review: जब अंधविश्वास में हो जाता है विश्वास तो होते हैं ऐसे हादसे, सीरीज में है 11 मौतों का सच
The House of Secrets-The Burari Deaths Review: दिल्ली के बुराड़ी में 2018 में एक परिवार के 11 लोगों की मौत के रहस्य पर से यह डॉक्यूमेंट्री पुलिस और विशेषज्ञों की मदद से पर्दा उठाती है.
लीना यादव
पुलिस, जर्नलिस्ट, पड़ोसी, रिश्तेदार, विशेषज्ञ
परिवारों के राज होते हैं और उन्हें हर कीमत पर छुपा कर रखा जाता है. यही वजह है कि 2018 में उत्तरी दिल्ली के बुराड़ी स्थित संत नगर में एक ही परिवार के 11 लोग मृत पाए गए. 10 लाशें फांसी पर टंगी थी और एक बूढ़ी महिला जमीन पर मृत पाई गई थी. यह सामूहिक हत्या थी या आत्महत्या? तहकीकात में इसका स्पष्ट जवाब नहीं है परंतु पुलिस और तमाम विशेषज्ञ इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि यह ‘आकस्मिक हादसा’ था. जो परिवार की एक ‘संयुक्त मनोदशा’ का नतीजा था. आखिर क्या हुआ कि सभी ने खुद को फांसी पर टांग लिया? इन सबको विश्वास था कि ‘बड़-पूजा’ नामक अनुष्ठान में जब वह वटवृक्ष की पेड़ से लटकती जड़ों की तरह फांसी पर झूलेंगे, तब भी कुछ साल पहले गुजर चुके पारिवारिक मुखिया की आत्मा उन्हें आकर बचा लेगी. यह आध्यात्मिक विश्वास के अंधविश्वास में बदलने की पराकाष्ठा थी.
ओटीटी प्लेटफॉर्म नेटफ्लिक्स पर इसी बुराड़ी कांड पर डॉक्यु सीरीज रिलीज हुई है, द हाउस ऑफ सीक्रेट्स द बुराड़ी डेथ्स. करीब 45-45 मिनट की तीन कड़ियों वाली यह सीरीज घटनाक्रम को चौतरफा समझने का प्रयास है. यह उन तमाम परतों को उघाड़ने और सवालों के जवाब पाने की कोशिश है, जिसमें बुराड़ी के चूंडावत (भाटिया) परिवार के 11 लोग अकस्मात खत्म हो गए. 77 साल की बुजुर्ग से लेकर 14 साल के किशोर तक. चार पुरुष, सात महिलाएं. पड़ोस से लेकर प्रदेश-देश और विदेश तक लोग हतप्रभ रह गए कि क्या हुआ, जो सबने एक साथ जीवनलीला समाप्त कर ली?
वेब सीरीज इस घटना के बहाने समाज की सबसे छोटी इकाई, परिवार को भी समझने की कोशिश करती है. कैसे परिवारों में कुछ निजी और गोपन रहस्य होते हैं, जिन्हें सख्ती से दबा कर रखा जाता है. करीब से करीब तर लोगों को भी वह कभी मालूम नहीं चलते. बाहर से हंसते-खेलते, जगमग-सुखी-समृद्ध दिखते परिवार के अंदर डरावना अंधकार और सन्नाटा रहता है. जो कब उन्हें लील ले, कह नहीं सकते. यहां इस जटिल समय में लोगों के लिए मनोविज्ञान की जरूरत और नए जमाने की सनसनीखेज, नाटकीय और मिर्च-मसाले वाली पत्रकारिता पर भी नजर है.
2015 में राधिका आप्टे, आदिल हुसैन स्टारर फिल्म पार्च्ड से चर्चा में आईं निर्देशक लीला यादव ने डॉक्युमेंट्री की बागडोर संभाली है. पहली कड़ी पूरे घटनाक्रम को बताती है, वहीं दूसरी कड़ी में परिवार के सदस्यों के व्यक्तित्व के साथ घटना के कारणों की छानबीन है. तीसरा एपिसोड बुराड़ी कांड के सामाजिक, मनोवैज्ञानिक और पत्रकारीय पक्ष पर रोशनी डालता है. 30 जून 2018 को हुई इस घटना का न कोई गवाह है और गुनहगार. पूरा परिवार बीस साल से यहां दो मंजिला मकान में रह रहा था और उनकी किराने की दुकान थी. जहां लोग सुबह दूध लेने आते थे. मगर सुबह जब परिवार का कोई सदस्य नहीं दिखा, तो पड़ोसी अंदर गए. अंदर दृश्य हैरान करने वाला था. जब तक पुलिस को फोन जाता और पुलिस आती, खबर जंगल की आग जैसी फैल गई. लोगों का हुजूम अंदर की एक झलक पाने के लिए उमड़ पड़ा.
इस कांड को तमाम लोगों ने अपने-अपने अंदाज में देखा. कनकौए उड़ाने वाले मीडिया ने 11 मृत सदस्यों के साथ घर में 11 खिड़कियों, दीवारों से बाहर निकले 11 पाइपों और गैलरी में 11 रॉड की स्टोरी चलाई तो किसी ने एक कथित तांत्रिक महिला को खोज निकाला. यह भी आया कि कोई आत्मा इन लोगों को नियंत्रित कर रही थी. सबने जीते-जी मोक्ष पाने के चक्कर में यह कदम उठाया. डॉक्युमेंट्री में दो किरदार खास तौर पर सामने आते हैं. एक, परिवार के 2007 में गुजर चुके मुखिया भोपाल सिंह और दूसरा, उसका सबसे छोटा बेटा ललित. कहानी बनती है कि भोपाल सिंह की मृत्यु के बाद ललित के शरीर में उसकी आत्मा आती थी. फिर ललित परिवार के प्रत्येक सदस्य को भोपाल सिंह की आवाज में निर्देश देता था. यह भी हुआ कि भोपाल सिंह सपने में ललित को बताने लगा कि परिवार के किस सदस्य को कब-क्या करना चाहिए. यह बातें घर के मंदिर में रखे रजिस्टरों/डायरियों में दर्ज होने लगी. यह सिलसिला करीब 11 साल से चल रहा था! रोचक तथ्य यह कि ललित की इस अवस्था में कही बातों से परिवार के लोगों का भला हुआ और वे भौतिक जीवन में तरक्की करने लगे. तरक्की के साथ सबका ललित में आने वाली भोपाल सिंह की आत्मा पर विश्वास बढ़ता गया. इस पूरे प्रकरण में घर में मिली डायरियों और रजिस्टरों ने तमाम राज खोले हैं.
बुराड़ी के इस रहस्यमयी दिखते कांड को समझने में यह सीरीज सहायक है. अगर आपकी दिलचस्पी इसमें रही है और इसकी बारीकियां समझना चाहते हैं तो इसे अवश्य देखें. समस्या सिर्फ इतनी है कि यह डार्क सीरीज है और निरंतर मृत्यु/आत्महत्या से जुड़ी बातें, डायरी/रजिस्टर के संवाद मन पर असर कर सकते हैं. परिवार की आत्मघाती मनोदशा गहरी निराशा पैदा करती है. सीरीज के कुछ दृश्य विचलित कर सकते हैं. हालांकि निर्देशक और संपादकों ने ध्यान रखा है कि मृतकों के अंतिम दशा वाले चेहरे/अवस्था न दिखाएं. फिर भी सीरीज ऐसी संक्रामक कहानी की तरह सामने आती है, जो मन को थोड़ी देर के लिए ही सही, बीमार कर सकती है.