Signature Review: क्या बुजुर्ग सामान होते हैं, क्या एक उम्र बीत जाने के बाद वो किसी लायक नहीं रह जाते? जिन्होंने हमारी जिंदगी बनाने में उम्र बिता दी उनकी जिंदगी क्या महज कागज पर एक सिग्नेचर की मोहताज रह गई है. कुछ फिल्में सिर्फ फिल्में नहीं होती, एक जबरदात अहसास होती हैं. वो आपको बदलने का माद्दा रखती हैं, जी5 पर आई सिग्नेचर वैसी ही फिल्म है और ये फिल्म बताती है कि हम किस्मत वाले हैं जो अनुपम खेर जैसे शानदार एक्टर के दौर में जी रहे हैं. उनका काम देख रहे हैं, ये अपने आप में खुशकिस्मती ही है.


कहानी
पूरी जिंदगी काम करने और बच्चों को जिंदगी सेटल करने के बाद एक बुजुर्ग पति पत्नी सोचते हैं कि अब खुद के लिए कुछ किया जाए. यूरोप घूमने का प्लान बनता है, और एयरपोर्ट पर पत्नी की तबीयत खराब हो जाती है. मामला जिंदगी और मौत का हो जाता है. अस्पताल वाले उन्हें DNR पर सिग्नेचर करने को कहते हैं. यानि ये लिखकर दो की अगर तुम्हारी पत्नी को कुछ हो गया तो मशीनों के जरिए उसमें सांसें भरने की कोशिश तक नहीं की जाएगी. ऐसा इसलिए क्योंकि उन मशीनों के लिए को पैसा चाहिए वो उसके पास नहीं है. फिर शुरु होता है इस शख्स की जिंदगी का वो दौर जो आपको रुला डालता है, हिला डालता है. झकझोर देता है और क्लाइमैक्स आपका दिल चीर देता है.


कैसी है फिल्म
ये फिल्म कमाल की है, 2 घंटे से भी कम टाइम में ये फिल्म आपको बहुत कुछ समझा जाती है, सिखा जाती है, महसूस करा जाती है. आज के दौर मैं ऐसी फिल्म बनाना की बड़ी बात है और केसी बोकाडिया ने ओटीटी पर अपनी शुरुआत ही इस शानदार फिल्म से की है. आज वॉयलेंटा और वल्गर कंटेंट के दौर में ऐसी इमोशनल फिल्म एक अलग अहसास कराती है. आपको जिंदगी के कुछ कड़वे सच महसूस करवाती है, हम जिंदगी को बेहतर बनाने के चक्कर में उन्हीं की जिंदगी की अहमियत भूल गए हैं जिन्होंने हमें जिंदगी दी. इस फिल्म को देखने के बाद आप अपने मम्मी पापा की ज्यादा केयर करने लगेंगे, आप मेडिकल पॉलिसी करवा लेंगे और बहुत कुछ ऐसा करेंगे जो अपने नहीं किया. इस फिल्म को हर हाल में देखिए और महसूस कीजिए.


एक्टिंग
अनुपम खेर ने एक बार फिर बता दिया कि वो इस दुनिया के बेहतरीन एक्टर्स में से एक हैं. उनके चेहरे की बेचारगी, लाचारी, दर्द आप महसूस करते हैं. इस परफॉर्मेंस के आगे हर अवॉर्ड छोटा है, वो इस किरदार को ऐसे जी गए हैं जैसे वो ये खुद हों. हर फ्रेम में वो शानदार लगते हैं, जब वो अपना गुस्सा जाहिर करते हैं तो आपका मन करता है कि अपने पास से कुछ मदद कर दें. उनकी मदद न करने वालों पर आपको गुस्सा आता है और ये सब उनकी कमाल की एक्टिंग का जादू है. अन्नू कपूर ने भी एक बार फिर अच्छा काम किया है, अनुपम खेर के दोस्त के किरदार को उन्होंने सहेज तरीके से निभाया है. महिमा चौधरी दिल जीत लेती हैं, उनका काम जबरदस्त है. जब वो बिना विग के आती हैं तो आपको ये अहसास करा जाती हैं की अच्छा एक्टर 1 सीन में भी आपका असर छोड़ सकता है. उसे 3 घंटे की फिल्म की जरूरत नहीं, नीता कुलकर्णी का काम अच्छा है, रणवीर शौरी छोटे से रोल में कमाल कर गए हैं. करोड़ों लोगों के दिलों की बात वो 1 सीन में कह जाते हैं. मोहन जोशी ठीक हैं, उनके किरदार को और डेवलप किया जाना चाहिए था, केविन गांधी का काम अच्छा है.


डायरेक्शन
गजेंद्र अहिरे ने फिल्म को लिखा और डायरेक्ट किया है, और उन्होंने दिल छू लिया है. एक भी सीन, एक भी फ्रेम ऐसा नहीं है जो आपको अच्छा न लगे, उन्होंने एक दम कसी हुई फिल्म बनाई है जो आपको बहुत कुछ महसूस कराती है, दिग्गज एक्टर्स का शानदार तरीके से इस्तेमाल किया गया है. इसके बाद गजेंद्र से और बेहतर सिनेमा की उम्मीद जगती है.


कुल मिलाकर ये फिल्म हर हाल में देखिए.


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