The Vaccine War Review: विवेक अग्निहोत्री की ये फिल्म बताती है की कोरोना के बाद आज हम सांस कैसे ले पा रहे हैं, जरूर देखिएगा
The Vaccine War Review: नाना पाटेकर लंब समय के बाद बड़े पर्दे पर वापसी करने जा रहे हैं. उनकी फिल्म द वैक्सीन वॉर आज रिलीज हो गई है.
विवेक अग्निहोत्री
नाना पाटेकर, पल्लवी जोशी, राइमा सेन, अनुपम खेर
The Vaccine War Review: कोरोना का वो भयानक दौर हम शायद कभी नहीं भूल पाएंगे. शायद शब्द यहां इस्तेमाल नहीं होना चाहिए. हम नहीं भूल पाएंगे वो दौर जब हम सबने मौत को ना सिर्फ बहुत पास से देखा बल्कि मौत के सबसे भयानक रूप को देखा. लेकिन फिर जिंदगी वापस लौटी लेकिन कैसे लौटी कैसे बनी वैक्सीन. विवेक अग्निहोत्री ने इस फिल्म में ये सब दिखाया है जो हमें नहीं पता.
कहानी
ये कहानी कोई आम कहानी नहीं है. न लव स्टोरी, न थ्रिलर, न किसी के डॉन बनने की कहानी लेकिन ये कहानी बहुत जरूरी है. हमें जिंदगी के वापस मिलने की कहानी. ये कहानी है कोरोना वैक्सीन के बनने की कहानी. ये कैसे बना, क्या चुनौतियां आई. हमने विदेशों से वैक्सीन क्यों नहीं ली. कौन इसके विरोध में था. मीडिया का क्या रोल था, सोशल मीडिया ने क्या किया. ये इस फिल्म में आप बहुत अच्छे से देख पाते हैं.
कैसी है फिल्म
ये शोर शराबे वाली फिल्म नहीं है. यहां दर्शक थिएटर में नाचता नहीं है. हीरो 10 गुंडों को मारता नहीं है लेकिन तब भी ये फिल्म आपको छूती है क्योंकि उस दौर को हम सबने जिया है. ये फिल्म हर पहलू की बात करती है और कायदे से करती है लेकिन ऐसा भी लगता है कि एक पत्रकार की कहानी को ज्यादा फुटेज दिया गया है. इसके बावजूद आप फिल्म को महसूस करते हैं. उससे कनेक्ट करते हैं. आपको कुछ ऐसे सवालों के जवाब मिलते हैं जो सवाल ही आपने नहीं सोचे होंगे.
एक्टिंग
नाना पाटेकर उस लेवल के एक्टर हैं जिन्हे रिव्यू नहीं किया जा सकता. वो किरदार को जीते हैं. यहां भी वो अपने किरदार में इस हद तक परफेक्शन लाते हैं कि उन्हें देखकर समझ आता है कि ये होती है एक्टिंग जो इस परफेक्शन के साथ बहुत कम एक्टर कर पाते हैं. पल्लवी जोशी कमाल हैं....साइंटिस्ट का उनका किरदार आपको उनके साथ जोड़ता है. जब वो वैक्सीन बनने के बाद मास्क उतारकर सांस लेती हैं तो आपको भी वो दौर याद आ जाता है जब आप सांस लेने के लिए तड़पते थे. पत्रकार के किरदार में राइमा सेन जमी हैं. अनुपम खेर छोटे रोल में भी जान डाल गए हैं और यही उनकी खूबी है कि एक सीन में भी कमाल कर जाते हैं.
डायरेक्शन
द कश्मीर फाइल्स के बाद विवेक अग्निहोत्री की लीग ही बदल गई है और यह लीग उनकी अपनी है. यहां भी वो साबित करते हैं कि वो ऐसी कहानियां अच्छे से बना सकते हैं जिनके बारे में लोग सोचते भी नहीं. उनकी रिसर्च दिखती है, फिल्म पर उनकी पकड़ नजर आती है. बिना किसी शोर शराबे के जब कोई डायरेक्टर एक मजबूत कहानी कह दे तो उसकी तारीफ होनी चाहिए.
कुल मिलाकर ये फिल्म देखी जानी चाहिए. जरूर देखी जानी चाहिए क्योंकि कुछ कहानियां जानना जरूरी है ताकि हम आने वाली पीढ़ी को बता पाएंगे कि कोरोना के दौर में क्या क्या हुआ था.
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