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The Whistleblower Review: सरकारी भर्ती के खेल में पैसे और पावर का जलवा, ऋत्विक भौमिक और रवि किशन छोड़ते हैं असर

Review: सच्ची घटनाओं आधारित वेब-कथाएं ओटीटी प्लेटफॉर्मों पर लगातार जगह बना रही हैं. पिछले साल स्कैम 1992 लाने वाले सोनी लिव पर अब मध्य प्रदेश के व्यापम घोटाले पर आधारित द व्हिसल ब्लोअर आई है.

The Whistleblower Review: पैसे, ताकत और जान-पहचान की बदौलत नाकाबिल लोगों को ही सब मिलने लगेगा तो काबिल लोगों के हिस्से क्या आएगा. आज के दौर में यह बड़ा सवाल नहीं, बल्कि बड़ी लड़ाई है.बात शिक्षा की हो या नौकरियों की. संघर्ष तेज हो रहा है. इसका अंतिम नतीजा क्या होगा, कह नहीं सकते लेकिन कम से कम मनोरंजन जगत की कहानियों में न्याय जरूर दिखता है. सोनी लिव की ताजा वेब सीरीज द व्हिसल ब्लोअर शिक्षा और नौकरी में सरकारी भर्तियों के घोटाले का राजफाश करती नजर आती है. देश में अब तक के सबसे बड़े और बदनाम घोटालों में शामिल मध्य प्रदेश के व्यापम पर यह वेब सीरीज आधारित है.

इस घोटाले से जुड़े प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष 40 से ज्यादा लोगों की अप्राकृतिक मौतें के मामले सामने आए हैं. द व्हिसल ब्लोअर का फोकस इस पर है कि कैसे यह घोटाला हुआ और इसमें शामिल लोग किस तरह काम करते थे. सरकारी परीक्षाओं के माध्यम से मेडिकल, पुलिस, अध्यापक और अन्य भर्तियों में जहां लाखों आम युवा उम्मीदवार होते हैं, वहां कैसे हजारों नाकाबिल लोगों की जगह दूसरों ने परीक्षाएं दी और चुने गए, द व्हिसल ब्लोअर यही दिखाती है. सीरीज के पहले ही एपिसोड में आप एक नाकाबिल डॉक्टर के हाथों मरीज की जान खतरे में पाते हैं और फिर सिलसिला चल निकलता है.

द व्हिसल ब्लोअर की शुरुआत भोपाल में रिलायबल हॉस्पिटल एंड मेडिकल कॉलेज के मालिक और डीन डॉ.अश्विन भदौरिया (सचिन खेडेकर) की मौत से शुरू होती है. घर के आंगन में उनकी लाश जली मिली है. यह आत्महत्या है या हत्या. डॉ.अश्विन का बेटा संकेत (ऋत्विक भौमिक) सच जानना चाहता है और कहानी के साथ उसका अतीत भी धीरे-धीरे खुलता है. जिसमें पूरे राज्य में होने वाली सरकारी भर्ती परीक्षाओं में अयोग्य उम्मीदवारों की जगह पैसा लेकर परीक्षा लिखने वाले सामने आते हैं. उन्हें कठपुलती बना कर नचाने वाले कोचिंग सेंटरों से लेकर बिचौलियों, अफसरों और नेताओं की तस्वीर उभरती है. पता चलता है कि दो-चार-दस नहीं बल्कि सैकड़ों लोगों का गिरोह काम कर रहा है. अरबों रुपये कूटे जा रहे हैं. नाकाबिल लोग डॉक्टर, टीचर, पुलिस और दूसरे सरकारी महकमों में नौकरियां पा रहे हैं.


The Whistleblower Review: सरकारी भर्ती के खेल में पैसे और पावर का जलवा, ऋत्विक भौमिक और रवि किशन छोड़ते हैं असर

ओटीटी प्लेटफॉर्मों ने फिल्मकारों को असल जीवन के हादसों/घटनाओं/घोटालों को कहानी के रूप में पेश करने की सुविधा दी है. द व्हिसल ब्लोअर इसकी नई कड़ी है. इसका ताना-बाना रोचक है. अगर आप सरकारी परीक्षाओं में उम्मीदवार रहे हैं या ऐसी परीक्षा देना चाहते हैं तो यह सीरीज बहुत कुछ समझाएगी. आप व्यापम घोटाले को समझना चाहते हैं तब भी द व्हिसल ब्लोअर मदद करेगी. संकेत के किरदार में ऋत्विक भौमिक जमे हैं. संकेत को देख कर आप समझ सकते हैं कि आज की दुनिया में कुछ भी सिर्फ श्वेत या श्याम नहीं है. जिंदगी में सब कुछ सिर्फ सुख के लिए नहीं किया जाता. कुछ काम उत्तेजना का आनंद लेने के लिए भी किए जाते हैं, जिसके लिए नया शब्द किक है. ऋत्विक इससे पहले अमेजन प्राइम की सीरीज बंदिश बेंडिट्स में आए थे. उन्हें काफी पसंद किया गया था. यहां भी वह प्रभावी हैं. रवि किशन यहां कोचिंग क्लास के बहाने पैसे लेकर डॉक्टर बनाने का रैकेट चलाने वाले गिरोह के सरगना डॉ. जयराज जाटव बने हैं.

उन्होंने यह किरदार अपनी प्रतिष्ठा के अनुरूप निभाया है और अंत में याद रहते हैं. अंकिता शर्मा और रिद्धि खाखर यहां ऐसी बहनों के रोल में हैं, जिन्हें संकेत से प्यार है. संकेत को अंकिता से प्यार है और रिद्धि को संकेत से. यह रोचक ट्रेक है. हालांकि कहानी बढ़ने के साथ इसकी धार कम हो जाती है.


The Whistleblower Review: सरकारी भर्ती के खेल में पैसे और पावर का जलवा, ऋत्विक भौमिक और रवि किशन छोड़ते हैं असर

सचिन खेडेकर ने अपनी भूमिका बखूबी निभाई है. पिछले साल इसी व्यापम घोटाले को केंद्र में रख कर इरोज नाऊ पर आई फिल्म हलाहल (निर्देशकः रणदीप झा) में सचिन एक डॉक्टर की ही भूमिका में थे, जिसकी बेटी घोटालेबाजों की शिकार बन जाती है. सोनाली कुलकर्णी और जाकिर हुसैन समेत अन्य कलाकारों ने दिए गए किरदारों को ठीक ढंग से निभाया है. नौ कड़ियों की द व्हिसल ब्लोअर रफ्तार से शुरू होने के बाद बीच में कुछ सुस्त पड़ जाती है. यहां इसकी टीम का फोकस कहानी से ज्यादा पत्रकारीय अंदाज में घोटाले का पर्दाफाश करने पर अधिक है. लेखक-निर्देशक बताने लगते हैं कि आखिर किस तरह व्यापम को अंजाम दिया गया. लंबे अर्से बाद किसी सीरीज में पत्रकार या पत्रकारिता को सकारात्मक अंदाज में दिखाया गया है. घोटाले को कैमरे में कैद करते पत्रकार के पकड़े जाने पर उसे जान से मारने की हद तक पीटा जाता है, तब एक घोटालेबाज का संवाद हैः पत्रकार सस्ते सही, पर उनकी जान महंगी पड़ जाती है.

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