Toofaan Review: भाग मिल्खा भाग (2013) के कमाल के बाद निर्देशक राकेश ओमप्रकाश मेहरा और ऐक्टर फरहान अख्तर दोनों को सफलता की तलाश थी. इस बीच मेहरा की मिर्जिया (2016), फन्ने खां (2018) और मेरे प्यारे प्राइम मिनिस्टर (2019) दर्शकों को लुभाने में नाकाम रही थीं. जबकि फरहान निजी जिंदगी की उलझनों के बीच आधा दर्जन से अधिक फिल्मों में दिखने के बावजूद प्रभावित नहीं कर सके थे. तूफान में मेहरा और फरहान की जोड़ी साथ है और इस बार वे पुराना जादू जगाने में कामयाब हैं. अमेजन प्राइम पर रिलीज हुई इस फिल्म के साथ दोनों ने ओटीटी डेब्यू भी किया है.
दो घंटे 40 मिनिट की तूफान उन दर्शकों के लिए है जो बॉलीवुड अंदाज की फिल्मों को पसंद करते हैं. इस फिल्म में उनके लिए वे सारे मसाले हैं, जो पारंपरिक हिंदी सिनेमा में देखने मिलते हैं. हालांकि मेहरा ने इसे नए जमाने का टच देने की भी कोशिश की है. फिल्म का मूल आइडिया फरहान अख्तर का है. यह ऐसे बॉक्सर की कहानी कहता है जो अपनी उम्र के प्राइम टाइम में रिंग के बाहर रहने के बाद भी प्यार की खातिर रिंग में लौटता और चैंपियन बनता है. बॉक्सिंग पर हिंदी में बॉक्सर (1984/मिथुन चक्रवर्ती), आर्यन (2006/सोहेल खान), अपने (2007/बॉबी देओल), लाहौर (2010/अनहद), मैरी कॉम (2014/प्रियंका चोपड़ा), साला खड़ूस (2016/रितिका सिंह) और मुक्काबाज (2017/विनीत कुमार सिंह) जैसी चर्चित फिल्में बनी हैं. दारा सिंह, अमिताभ बच्चन से लेकर अजय देवगन और आमिर खान तक पर्दे पर बॉक्सिंग रिंग में नजर आए हैं. बॉक्सिंग वाली हर फिल्म में नायक-नायिका अंत में चैंपियन बने हैं. उनके चैंपियन बनने के रास्ते और वजहें जरूर अलग-अलग रही हैं. आमतौर ऐसी कहानियां किरदारों के निजी संघर्षों की रही हैं.
तूफान भी अजीज अली (फरहान) की निजी कहानी है. एक अनाथ बच्चे के रूप में पला-बढ़ा अली मुंबई के डोंगरी इलाके में भाईगिरी करता है. वसूली और तोड़-फोड़ करता है लेकिन फिर उसे एक दिन सही राह मिलती है. वह समझ जाता है कि लोग उसे सलाम जरूर करते हैं मगर इज्जत नहीं करते. उसे यह भी मालूम चल जाता है कि रिंग में फोड़ा-फाड़ी करने से इज्जत मिलती है. वह कड़ी मेहनत करके मुंबई के बेस्ट बॉक्सिंग कोच नाना (परेश रावल) की शागिर्दी हासिल करता है, जो उसके टेलेंट को निखार कर स्टेट लेवल चैंपियन बना देते हैं. अली को रिंग में उतर कर नाम मिलने लगता है और इसी रिंग की वजह से प्यार भी मिलता है. डॉ. अनाया प्रभु (मृणाल ठाकुर). दोनों का यही प्यार कहानी का सबसे बड़ा ट्विस्ट है.
मेहरा ने कहानी के इमोशनल ग्राफ को नीचे नहीं आने दिया. वह बार-बार बॉक्सिंग की बात करते रहे लेकिन अनाया और अली की प्रेम कहानी को हाशिये से दूर रखने में सफल रहे. इस तरह वह बॉक्सिंग और प्रेम को समानांतर रूप से लेकर आगे बढ़ते रहे. उन्होंने कहानी कहने के पारंपरिक अंदाज को यहां बनाए रखा है. परिवार, दोस्त और मूल्यों की बातें की है. मगर इनके बीच हिंदू-मुस्लिम मुद्दे पर कुछ ऐसी बातें रखी हैं, जो दोनों तरफ के कट्टरपंथियों को अच्छी नहीं लगेंगी. कैसे दोनों वर्ग अपने रूढ़ीवादी नजरिये से एक-दूसरे को देखते हैं, मेहरा ने यह बात कहानी में कही है. वे काफी हद तक इन बातों पर जोर देते दिखे कि समय के साथ रूढ़ीवादियों को अपने नजरिये में बदलाव लाना होगा. सिनेमा परिवर्तन भले नहीं लाता मगर इतना जरूर है कि वह परिवर्तन के रास्ते तैयार करता है. मेहरा की यह फिल्म भी हिंदू-मुस्लिम कट्टरपंथ के मसले पर एक ठोस विचार रखती है.
फिल्म में अली के किरदार में ढलने के लिए फरहान अख्तर ने खूब मेहनत की है. उन्होंने खुद को बॉक्सर के सांचे में ढाला है. मांस-पेशियां बनाने के लिए खूब पसीना बहाया है. वह स्क्रीन पर जमे हैं. रिंग में वह पूरे कौशल से मुक्के बरसाते हैं. उनकी चुस्ती-फुर्ती देखने काबिल है. जिस तरह वह भाग मिल्खा भाग में मिल्खा सिंह बने थे, उतनी ही शिद्दत से वह यहां बॉक्सर अजीज अली बने हैं. भावुक दृश्यों में भी फरहान ने खुद को डुबा कर काम किया और आम बॉलीवुड स्टार की तरह परेश रावल तथा मृणाल ठाकुर के साथ दृश्यों में कहीं हावी होने की कोशिश वह नहीं करते.
परेश शानदार ऐक्टर हैं और लंबे समय बाद यादगार रोल में हैं. बॉक्सिंग कोच के रूप में वह जबर्दस्त रूप से फिट हैं. उनके हिस्से कुछ रोचक संवाद आए हैं. जिन पर कुछ लोग तालियां बजा सकते हैं तो कुछ को वह डायलॉग चुभ भी सकते हैं. टीवी की दुनिया के रास्ते आईं मृणाल ठाकुर के लिए अच्छा यह है कि उन्हें इस फिल्म में सुपर 30 और बाटला हाउस से बेहतर भूमिका और स्क्रीन टाइम मिला है. हालांकि अभी उन्हें जमने के लिए लंबा सफर तय करना है. गीत-संगीत बेहतर होता तो फिल्म और निखर सकती थी. कैमरावर्क और लाइट्स बढ़िया हैं. कुल मिला कर स्पोर्ट्स फिल्मों के शौकीनों और फरहान अख्तर के फैन्स को यह फिल्म पसंद आएगी.