Yudhra Review: राघव जुयाल की एंट्री होती है और थिएटर में लोग सीटियां तालियां बजाने लगते हैं. हालांकि एंट्री काफी देर बाद होती है, दर्शकों का ये प्यार राघव ने अपनी फिल्म किल से कमाया है. हालांकि ये फिल्म राघव ने किल से पहले शूट की थी और एनिमल और किल के बाद तो वॉयलेंट फिल्मों का पैमाना ही बदल गया है. ये फिल्म उससे पहले आई होती तो शायद बवाल काट देती लेकिन किल के सामने ये अभी भी उसका छोटा भाई है लेकिन तब भी देख सकते हैं युध्रा और इसकी वजह किल वाले राघव जुयाल और मालविका मोहनन हैं.
कहानी
जन्म के वक्त युध्रा के दिमाग में 5 मिनट तक ऑक्सीजन नहीं जाती जिस वजह से कोई केमिकल लोचा हो जाता है और युध्रा अपने गुस्से पर कंट्रोल नहीं कर पाता. पुलिस अफसर पिता की क्रिमिनल जान ले लेते हैं, और पिता के एक दोस्त ही उसे पालते हैं जो अब राजनेता बन गए हैं. पिता का एक और दोस्त उसे पुलिस का अंडर कवर एजेंट बनाकर एक ड्रग्स रैकेट का पर्दाफाश करने का काम देता है और फिर एक एक करके पता चलता है कि कौन अपना कौन पराया. कहानी में कुछ ऐसा नयापन नहीं है कि आप कहानी के लिए ये फिल्म देखें.
कैसी है फिल्म
ये फिल्म सिर्फ इसके एक्शन के लिए, सिद्धांत, मालविका मोहनन और राघव जुयाल की परफॉर्मेंस के लिए देखी जा सकती है. ये फिल्म अगर कुछ टाइम पहले आई होती तो शायद लगता कि इसमें क्या बवाल एक्शन है लेकिन एनिमल और किल ये पैमाना बदल चुकी हैं. फिल्म ठीक ठाक पेस से चलती है, हर थोड़ी देर बाद एक्शन सीन आते हैं और कुछ एक सीन ही हैं जो हैरान करते हैं. एक वक्त के बाद फिल्म लंबी लगने लगती है, ऐसा लगता है कि बस खत्म हो जाए, लेकिन अच्छे एक्टर्स की वजह से मामला संभल जाता है. एक्शन के शौकीन हैं तो ये फिल्म आपको जरूर पसंद आएगी.
एक्टिंग
सिद्धांत चतुर्वेदी की एक्टिंग अच्छी है, उन्होंने एक्शन कमाल तरीके से किया है. हालांकि एक्स्प्रेशन्स के मामले में वो थोड़ा पीछे रह गए. हर जगह एक जैसे एक्प्रेशन एक वक्त के बाद खटकते हैं. मालविका मोहनन इस फिल्म की खोज हैं, उनमें एक बड़ी हीरोइन बनने का माद्दा है. उनकी स्क्रीन प्रेजेंस गजब की है, और उनकी एक्टिंग भी शानदार है. वो 2017 में बियॉन्ड द क्लाउड्स में दिख चुकी हैं लेकिन उसका उन्हें हिंदी बेल्ट में कोई खास फायदा नहीं हुआ था. यहां उन्हें सही तरीके से इस्तेमाल किया गया है और उम्मीद है कि अब दूसरे डायरेक्टर इनके टैलेंट का इस्तेमाल करेंगे. राघव जुयाल नेगेटिव रोल में हैं और कमाल कर गए हैं. ये फिल्म किल से पहले की है और उसके बाद राघव अपना पैमाना काफी ऊंचा कर चुके हैं. यहां कम स्क्रीन स्पेस के बाद भी वो छा गए हैं. राम कपूर का काम जबरदस्त है, गजराज राव अच्छे लगे हैं. शिल्पा शुक्ला ठीक ठाक हैं, राज अर्जुन ओके हैं वो विलेन के तौर पर वो खौफ पैदा नहीं कर पाते जो हीरो को उसकी हीरोगीरी के लिए चाहिए.
डायरेक्शन और राइटिंग
रवि उदयवर का डायरेक्शन ठीक है, उन्हें फिल्म थोड़ी और छोटी करनी चाहिए थी. श्रीधर राघवन की कहानी बहुत कमजोर है, ये कहानी कितनी बार हम देख चुके हैं और अगर कहानी और स्क्रीनप्ले अच्छा होता तो ये और बेहतर फिल्म बनती.
म्यूजिक
शंकर एहसान लॉय का म्यूजिक ठीक ठाक ही है. दो गाने जावेद अख्तर ने भी लिखे हैं लेकिन फिल्म के बीच ये गाने इरिटेट ही करते हैं. वैसे इन्हें सुनेंगे तो अच्छे लग सकते हैं.
कुल मिलाकर एक्शन के शौकीन हैं तो देख लीजिए.
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