Freedom At Midnight Review: देश की आजादी और बंटवारे पर कई फिल्में बन चुकी हैं. वेब सीरीज वाले भी इसपर कुछ न कुछ बनाने की कोशिश करते रहते हैं. ये एक ऐसा दर्द है जिसे पर्दे पर भुनाने की कोशिश कई बार होती है.


वेब सीरीज 'फ्रीडम एट मिडनाइट' भी एक ऐसी ही कोशिश है और इस बार ये कोशिश काफी शानदार है. ये सीरीज शायद सबके लिए नहीं है, लेकिन जिनके लिए है उन्हें ये काफी पसंद आएगी.


कहानी
देश के बंटवारे को लेकर हम काफी कुछ सुन चुके हैं. क्या हुआ था, कैसे हुआ था, उस वक्त गांधी ,नेहरू, सरदार पटेल, जिन्ना के दिमाग में क्या कुछ चल रहा था? क्या राजनीति हुई थी? ये सब Freedom at midnight नाम की किताब में दर्ज है, जिसे Dominique Lapierre और Larry collins ने लिखा है और उसी पर ये सीरीज बनी है.


कैसी है सीरीज?
अगर आपको हिस्ट्री मैं दिलचस्पी है और पॉलिटिकल शोज पसंद हैं, तो आपको ये सीरीज शानदार लगेगी. इस सीरीज में बड़े कायदे से चीजों को दिखाया गया है. कहीं किसी को जबरदस्ती हीरो या विलेन नहीं बनाया गया, हर पक्ष हर पहलू पर बात की गई है. ये सीरीज किसी का पक्ष लेती नहीं दिखी, इसका कोई एजेंडा नहीं है. एक-एक सीन की अपनी अहमियत है, कलाकारों का सिलेक्शन उम्दा है और डायलॉग्स असरदार हैं.


आप इमोशनल लेवल पर भी इस सीरीज से जुड़ते हैं क्योंकि सब्जेक्ट ही ऐसा है. काफी कुछ आपको ऐसा पता चलता है जो नहीं पता होगा. ये सीरीज स्लो है, मार-धाड़ और एक्शन वाले शोज देखने वाले दर्शकों को शायद पसंद न आए. लेकिन इस सीरीज की अपनी एक वैल्यू है और इसका दर्शक ये बात समझ जाएगा. अगर ये जोनर आपको नहीं भी पसंद तो भी ये सीरीज देखिए.


एक्टिंग
इस सीरीज का बहुत मजबूत पक्ष है इसके कलाकार, नेहरू के किरदार में सिद्धांत गुप्ता लाजवाब हैं. वो अपने अंदाज से आपको यकीन दिला देते हैं कि वही नेहरू हैं. चिराग वोहरा ने गांधीजी का किरदार परफेक्शन के साथ निभाया है, कई सीन में वो इमोशनल कर देते हैं. सरदार पटेल के रोल में राजेंद्र चावला जमे हैं, आरिफ जकारिया ने जिन्ना का किरदार बहुत जबरदस्त तरीके ने निभाया है. उनका किरदार ही इस सीरीज की सबसे अहम कड़ी है और उनकी एक्टिंग ने इस सीरीज को एक अलग ही स्केल दिया है.


लियाकत अली खान बने राजेश कुमार चौंकाते है. अकसर सीधे-सादे रोल करने वाले राजेश जब जला-कटा बोलते हैं तो ये उनकी एक्टिंग का एक और नायब नमूना सामने आता है. इस सीरीज में काफी सारे एक्टर हैं और सबने कमाल का काम किया है.


डायरेक्शन
निखिल आडवाणी की पिछली फिल्म 'वेदा' मुझे अच्छी नहीं लगी थी लेकिन यहां निखिल ने कमाल का डायरेक्शन किया है. ये उनके बेस्ट कामों में से एक माना जाएगा. वो इस सीरीज के असली स्टार हैं, उन्होंने सिनेमैटिक लिबर्टी का यहां कोई फायदा नहीं लिया. हिस्ट्री को हिस्ट्री की तरह दिखाया जो आज के दौर में मुश्किल काम है. तो कुल मिलाकर ये सीरीज जरूर देखिए.


ये भी पढ़ें: The Sabarmati Report Review: विक्रांत मैसी की एक और कमाल परफॉर्मेंस, सास बहू से साबरमती तक पहुंचीं एकता को भी सलाम