Mirzapur Season 3 Review: 'जब तक इंसान मजबूर नहीं होता, तब तक इंसान मजबूत नहीं होता...', मिर्जापुर का ही डायलॉग है और गुड्डू भैया का डायलॉग तो याद ही होगा- 'शुरू मजबूरी में किए थे लेकिन अब मजा आ रहा है.' मिर्जापुर शुरू भौकाल के साथ हुआ था और मजा आ रहा था. पहले सीजन में काफी ज्यादा मजा आया, दूसरे में थोड़ा कम और तीसरे में थोड़ा और कम मजा आया.
भौकाल भले ही कायम है लेकिन इस बार मामला पहले दो सीजन के मुकाबले फीका लग रहा है. लेकिन तब भी मिर्जापुर के फैन हैं तो देखना तो बनता है, जान लीजिए क्या अच्छा है और क्या अच्छा नहीं है.
कहानी
मुन्ना भैया इस दुनिया से जा चुके हैं, कालीन भैया कोमा में हैं और गुड्डू भैया मिर्जापुर की गद्दी पर बैठ चुके हैं. लेकिन पूर्वांचल का बाहुबली कौन होगा, इस पर लड़ाई अब भी जारी है. शरद शुक्ला को भी पूर्वांचल की गद्दी चाहिए और शत्रुघन को भी यही चाहिए. इस बीच राजनीति का अलग खेल चल रहा है, पंडित जी पर एसएसपी की मौत का केस चल रहा है, वहीं डिंपी और रॉबिन की लव स्टोरी भी आगे बढ़ती है. लेकिन गद्दी पर कौन बैठेगा, कालीन भैया का क्या होगा, ये सब जानने के लिए आपको मिर्जापुर का सीजन 3 देखना पड़ेगा.
कैसी है सीरीज
मिर्जापुर यानि वो सीरीज जिसका भौकाल है, जिसका एक अलग फैन बेस है. इस सीरीज को देखने के लिए लोग खासतौर पर छुट्टी लेते हैं, लेकिन इस बार भौकाल पहले दो सीजन के मुकाबले कम है. सीरीज थोड़ी खींची हुई लगती है, भौकाल वाले सीन भी कम हैं और वॉयलेंस कम है. मुन्ना भैया की कमी खलती है और कालीन भैया भी ज्यादा भौकाल नहीं मचाते हैं. कुछ एक सीन हैं जो मजेदार हैं लेकिन ऐसे सीन कम हैं, और एक-दो ही ऐसे सीन हैं जो आपको हिला डालते हैं.
मिर्जापुर से उम्मीदें काफी ज्यादा होती हैं, ये सीरीज अच्छी है लेकिन शानदार नहीं और हां खराब तो बिल्कुल नहीं है. मिर्जापुर के फैंस को अच्छी तो लगेगी लेकिन उन्हें भी भौकाल में कमी जरूर महसूस होगी. कई सीक्वेंस जरूरत से ज्यादा खींचे गए हैं, गुड्डू भैया के कंधों पर पूरी जिम्मेदारी है. वो जब जब आते हैं मजा आ जाता है, लेकिन 10 एपिसोड को गुड्डू भैया अकेले तो खींच नहीं सकते थे.
एक्टिंग
अली फजल ने गुड्डू भैया के किरदार में जान डाली है. वो जिस तरह से लोगों को मारते हैं, हिला डालते हैं. इस बार उन्होंने एक अलग तरह का इमोशन भी दिखाया है. ये सीजन अली फजल के कंधों पर टिका है और उन्होंने पूरी तरह से इंसाफ किया है. पंकज त्रिपाठी का रोल और भौकाल दोनों कम है, इसलिए मजा भी कम आया है. बाकी त्रिपाठी जी तो मंझे हुए एक्टर है, सबके कालीन भैया हैं तो उनकी एक्टिंग तो कमाल की है ही. रसिका दुग्गल यानि बीना भाभी का काम शानदार है, वो पल पल रंग बदलती हैं और इन शेड्स को रसिका ने जबरदस्त अंदाज में पेश किया है.
अंजुम का काम अच्छा है और उनका रोल भी बड़ा और काफी अहम है. विजय वर्मा ठीक-ठाक हैं, वो पिछले तीन साल में इतना आगे बढ़ चुके हैं कि उनसे उम्मीदें अब बहुत ज्यादा की रहती हैं और यहां उनका किरदार शायद उतनी मजबूती से लिखा नहीं गया लेकिन काम उन्होंंने अच्छा किया है. श्वेता त्रिपाठी शर्मा यानि गोलू ने शानदार काम किया है. गुड्डू भैया का जबरदस्त तरीके से साथ दिया है और खूब भौकाल मचाया है.
राजेश तैलंग को इस बार काफी स्पेस दिया गया है और उन्होंने अपने काम के साथ पूरी तरह से इंसाफ किया है. मुख्यमंत्री के किरादर में ईशा तलवार जमी हैं, दद्दा के रोल में लिलिपुट ने बहुत अच्छा काम किया है, प्रियांशू पेन्यूली का काम भी ठीक-ठाक है.
डायरेक्शन
गुरमीत सिंह और आनंद अय्यर ने शो को डायरेक्ट किया है और उनका डायरेक्शन ठीक है, उनसे बेहतर की उम्मीद थी. मिर्जापुर जैसी सीरीज में भौकाल बढ़ना चाहिए था, लेकिन यहां कम हुआ और इसका वजह कहीं ना कहीं डायरेक्टर हैं. उन्हें कुछ और मसाले ऐसे डालने चाहिए थे कि दर्शक बंधे रहें. कुल मिलाकर शो देखा जा सकता है, बहुत शानदार नहीं है लेकिन मिर्जापुर के फैन हैं तो मिस मत कीजिए.