निर्माता करन जौहर और निर्देशक शकुन बत्रा कुछ साल पहले विवादित आध्यात्मिक गुरु ओशो (भगवान रजनीश) की सेक्रेटरी रहीं मां आनंद शीला की बायोपिक बनाने की तैयारी में थे. जिसमें आलिया भट्ट को शीला का रोल निभाना था. अब शायद वह फिल्म न आए क्योंकि करन और शकुन मिलकर मां आनंद शीला की कुछ साल पहले की गई भारत यात्रा पर एक डॉक्युमेंट्री ‘सर्चिंग फॉर शीला’ लाए हैं. यह नेटफ्लिक्स पर रिलीज हुई है. चौंकाने वाली बात यह कि इसका कोई डायरेक्टर नहीं है. यही वजह है कि डॉक्युमेंट्री में कोई दिशा नहीं दिखती. इसमें बस दिल्ली, अहमदाबाद, मुंबई और पुणे की यात्रा पर शीला के वीडियो से लेकर 1980 के दशक में अमेरिका में शूट ओशो और उनके कम्यून के कुछ फुटेज यहां-वहां बेतरतीब जुड़े नजर आते हैं. 59 मिनिट में यहां शीला के प्रायोजित इंटरव्यू और उनकी जुबानी सामने आने वाली बातें थकी और दोहराव भरी हैं.
मां आनंद शीला बार-बार खुद को ओशो की प्रेमिका बताती हैं. जबकि ओशो उन्हें अपनी चालाक और भगोड़ी सेक्रेटरी से अधिक कुछ नहीं बताते. ओशो को पुणे से अमेरिका ले जाने और वहां ओशोपुरम बसाने में शीला की सबसे बड़ी भूमिका थी. डॉक्युमेंट्री में वह बताती हैं कि उन पर अमेरिकी अदालत में जो मुकदमा चला, उसमें सबसे प्रमुख आरोप यही था कि वह फर्जी कागजात के आधार पर इस आध्यात्मिक गुरु को वहां ले गईं. जबकि मीडिया की सुर्खियां शीला को ऑरगन काउंटी (अमेरिका) में सामूहिक रूप से लोगों को जहर देकर मारने के प्रयास, अवैध रूप से हथियार रखने और कई हत्याओं के षड्यंत्रों की जिम्मेदार ठहराती हैं.
22 जुलाई 1986 को यूएस कोर्ट ने शीला को विभिन्न मामलों में 20 साल जेल की सजा सुनाई थी. शीला 39 महीने जेल में बिताने के बाद अच्छे बर्ताव के कारण रिहा कर दी गईं. 1990 वह स्विट्जरलैंड चली गईं, जहां वह अब वृद्धों और बीमारों की सेवा करती हैं. दुनिया शीला को भुला चुकी थी मगर नेटफ्लिक्स की 2018 में आई डॉक्युमेंट्री ‘वाइल्ड वाइल्ड कंट्री’ से वह फिर सुर्खियों में आ गईं. हालांकि 2013 में शीला ने ओशो के साथ अपने जीवन की यादें ‘डोंट किल हिम’ नाम की किताब में दर्ज की थीं.
शीला का जितना जीवन, विवाद और आरोपों पर सफाई ‘सर्चिंग फॉर शीला’ में है, उससे अधिक और स्पष्ट आप ‘वाइल्ड वाइल्ड कंट्री’ में देख सकते हैं. बिना निर्देशक की ‘सर्चिंग फॉर शीला’ असल में 35 साल बाद भारत लौटीं शीला की भारत-यात्रा और मेल-मुलाकातें दिखाती रहती हैं. यह ठीक वैसा है, जैसे किसी न्यूज चैनल का कैमरा बेमतलब किसी का पीछा करता रहे. डॉक्युमेंट्री में यह जरूर देख सकते हैं कि सेलेब्रिटी पत्रकार कैसे उनसे मूर्खता भरे सवाल करते हैं और शीला बार-बार कहती हैं कि वह सैकड़ों बार इन सवालों का जवाब दे चुकी हैं. किसी पत्रकार के पास उनसे पूछने को नए सवाल नहीं होते. करन जौहर भी एक इंटरव्यू में शीला से पूछते हैं कि क्या ओशो के साथ आपका प्रेम सचमुच सिर्फ आध्यात्मिक स्तर पर था, तो शीला कहती हैं कि अगर आपका इशारा किसी खास तरफ है तो कह दूं कि मैंने उनके साथ सेक्स नहीं किया.
डॉक्युमेंट्री शीला को पेज 3 सर्किल की पार्टियों में दिखाती है. उनकी कार यात्राओं को कवर करती है. बड़ौदा में शीला अपने स्वर्गीय पिता के घर जाती हैं और वहां पुरानी यादों के साथ भावुक नजर आती हैं. मुंबई के जिस फ्लैट में वह पहली बार ओशो से मिली थीं, वहां पहुंचने पर दरवाजा बंद मिलता है. नौकर कहता है कि मालकिन घर में नहीं हैं और उनकी इजाजत के बिना वह उन्हें अंदर नहीं आने देगा. ‘सर्चिंग फॉर शीला’ में आपको सिर्फ वही शीला दिखती है, जिन्हें आप पहले ही अन्य स्रोतों से जानते हैं. डॉक्युमेंट्री न तो उनके जीवन का कोई नया पक्ष दिखा पाती है और न कोई नई बात शीला से जान पाती है. ऐसा लगता है कि तमाम फुटेज एडिटर के हवाले कर दिए गए और कहा गया कि प्रायोजित पत्रकारों के इंटरव्यू, शीला के होटल, कार यात्रा और पार्टियों से लोगों के मिलने-जुलने के दृश्य निकाल कर बस सिलसिलेवार जोड़ दिए जाएं. वैसे एडिटर के पास भी कोई नजरिया होता तो डॉक्युमेंट्री में कुछ बात हो सकती थी परंतु ऐसा नहीं हुआ.
ओशो प्रेमियों के लिए शीला की इस डॉक्युमेंट्री का कोई मतलब नहीं है. साथ ही जिन्होंने ‘वाइल्ड वाइल्ड कंट्री’ में जवान, खूबसूरत, मजबूत और विवादित शीला को देखा, उन्हें भी यहां निराशा मिलेगी. डॉक्युमेंट्री देखते हुए यही लगता है कि अपनी मृत्यु की आहटों को सुन रही एक बूढ़ी महिला उन जगहों को आंखों में चमक लिए आखिरी बार देखने आई है, जहां उसके बचपन और यौवन की कुछ निशानियां अब लगभग मिट चुकी है. उन जगहों को देख कर पुरानी यादों के कुछ पल फिर जी लेने के बाद, अब शायद वह फिर यहां कभी लौटना नहीं चाहेगी.