सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी के बावजूद प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के निदेशक संजय मिश्रा को केंद्र सरकार का साथ मिला. सरकार ने सॉलिसिटर जनरल के जरिए अदालत में मिश्रा के सेवा विस्तार बढ़ाने की वकालत की. मिश्रा के एक्सटेंशन पर सरकार के रूख से सियासी गलियारों में कई तरह की चर्चाएं शुरू हो गई है.
मिश्रा 1984 बैच के भारतीय राजस्व सेवा अधिकारी हैं और 2018 में केंद्र ने उन्हें प्रवर्तन निदेशालय का डायरेक्टर नियुक्त किया था. मिश्रा इसके बाद मोदी सरकार के टॉप-5 पावरफुल ब्यूरोक्रेट्स की लिस्ट में शामिल हो गए. विपक्ष का आरोप है कि मिश्रा को शक्ति देकर सरकार राजनीतिक हित साध रही है.
सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार को जमकर फटकार भी लगाई और कहा कि मिश्रा के अलावा आपके पास कोई और अफसर नहीं है? कोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल से कहा कि मिश्रा की तरफदारी कर आप पूरे विभाग को नकारा साबित कर रहे हैं. कोर्ट पहले ही मिश्रा के सेवा विस्तार को अवैध ठहरा चुकी है.
मिश्रा के सेवा विस्तार के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में रिट याचिका दाखिल की गई थी, जिसमें कहा गया था कि कोर्ट के कहने के बावजूद केंद्र सरकार ने मिश्रा को तीन बार सेवा विस्तार दिया. 11 जुलाई 2023 को मामले में कोर्ट ने सरकार को फटकार लगाते हुए मिश्रा की नियुक्ति को अवैध करार दिया था.
इस स्टोरी में मिश्रा की कहानी, मोदी सरकार के टॉप 5 पावरफुल ब्यूरोक्रेट्स के बारे में विस्तार से जानते हैं...
पहले कहानी संजय मिश्रा की...
यूपी के लखनऊ से बायो कैमेस्ट्री की पढ़ाई करने वाले मिश्रा 1984 में सिविल सेवा के लिए सिलेक्ट हुए. उन्हें भारतीय राजस्व विभाग के लिए चयन किया गया. शुरुआत में मिश्रा को इनकम टैक्स डिपार्टमेंट में नियुक्ति दी गई.
1988 में वे प्रवर्तन निदेशालय में भेज दिए गए. उस वक्त यह विभाग सिर्फ विदेशी पैसों से संबंधित मामले को देखता था.
सर्विस करियर के दौरान मिश्रा इनकम टैक्स, ईडी और सीबीडीटी जैसे विभागों में तैनात रहे हैं. मिश्रा ने बीएसपी प्रमुख मायावती के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति और नेशनल हेराल्ड जैसे हाई-प्रोफाइल मामलों की जांच में महत्तवपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं.
2018 में संजय मिश्रा की ईडी में ग्रैंड एंट्री हुई. उस वक्त मिश्रा इनकम टैक्स विभाग में दिल्ली के आयुक्त (4) पद पर कार्यरत थे. सरकार ने उन्हें अंतरिम निदेशक के तौर पर नियुक्त किया था. जल्द ही उन्हें केंद्रीय कैबिनेट ने 2 साल के लिए परमानेंट नियुक्ति भी दे दी.
मिश्रा के कार्यकाल में ईडी ने खूब सुर्खियां बटोरी. कांग्रेस का आरोप है कि ईडी ने 95 प्रतिशत केस विपक्षी नेताओं के खिलाफ पिछले 9 साल में दर्ज किया. वहीं सरकार का कहना है कि ईडी की सजा काफी अधिक है. सरकार ने संसद को बताया कि ईडी का कन्विक्शन रेट (सजा दर) 96 फीसदी है.
वर्तमान में कई विपक्षी नेताओं के खिलाफ ईडी का केस दर्ज है. इनमें सोनिया गांधी, राहुल गांधी, अभिषेक बनर्जी, तेजस्वी यादव का नाम प्रमुख रूप से शामिल हैं.
2021 में संजय मिश्रा की नियुक्ति के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गई, जिसके बाद कोर्ट ने कहा कि नवंबर 2022 के बाद मिश्रा अपने पद पर नहीं रह सकते हैं, लेकिन केंद्र ने उनका सेवा विस्तार कर दिया था.
संजय मिश्रा के लिए सरकार को कोर्ट जाने पर आरजेडी सांसद मनोज झा ने तीखी प्रतिक्रिया दी है. झा ने कहा कि यह डेढ़ महीने का वक्त इसलिए लिया गया है कि कुछ और राज्यों में राजनीति अस्थिरता पैदा की जा सके. झा ने आगे कहा कि सरकार परंपराओं का कत्ल कर रही है.
अब कहानी 4 टॉप पावरफुल ब्यूरोक्रेट्स की...
1. अजय कुमार भल्ला- केंद्रीय गृह सचिव अजय कुमार भल्ला को भी अब तक 2 बार सेवा विस्तार मिल चुका है. भल्ला अगस्त 2019 में केंद्रीय गृह सचिव नियुक्त हुए थे, लेकिन 2020 में सेवा अवधि खत्म होने के बाद केंद्र ने उन्हें एक्सटेंशन देने का फैसला किया. भल्ला की गिनती मोदी सरकार में पावरफुल ब्यूरोक्रेट्स में होती है.
भल्ला 1984 बैच के आईएएस अधिकारी हैं, जिन्हें असम-मेघालय काडर आवंटित हुआ था. 2002 में भल्ला केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर आए तो उन्हें जलमार्ग विभाग में बंदरगाह के निदेशक के रूप में तैनाती मिली. 2005-2007 तक वे इस विभाग में संयुक्त सचिव भी रहे.
भल्ला मनमोहन सरकार के दौरान कोयला, वाणिज्य जैसे अहम मंत्रालय की कमान संभाल चुके हैं. 2017 में भल्ला को उर्जा विभाग का सचिव नियुक्त किया गया. उनके नेतृत्व में हर घर बिजली अभियान की शुरुआत की गई. 2019 में उन्हें गृह मंत्रालय में ओएसडी बनाकर लाया गया.
जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने की रणनीति में भल्ला ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. संसद से बिल पास होने के तुरंत बाद भल्ला को इसका ईनाम भी मिला. अगस्त 2019 में वे केंद्रीय गृह सचिव बनाए गए. भल्ला ने दिल्ली विश्वविद्यालय से एमए (वनस्पति विज्ञान) और आस्ट्रेलिया से एमबीए की पढ़ाई की है.
2. राजीव गौबा- भारत सरकार के कैबिनेट सचिव राजीव गौबा भी सेवा विस्तार पर ही चल रहे हैं. ब्यूरोक्रेट्स की दुनिया में कैबिनेट सचिव का पद सबसे पावरफुल माना जाता है. कैबिनेट सचिव ही प्रधानमंत्री और मंत्रियों के बीच कॉर्डिनेशन का काम करते हैं.
गौबा को 2019 में भारत का कैबिनेट सचिव बनाया गया था. इस पद पर गौबा को 2 बार सेवा विस्तार मिल चुका है. कैबिनेट सचिव रहने से पहले गौबा भारत के गृह सचिव पद पर भी थे. उन्हीं के नेतृत्व में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद-370 हटाने का ड्राफ्ट तैयार किया गया था.
राजीव गौबा 1982 बैच के आईएएस अधिकारी हैं. गौबा पटना विश्वविद्यालय से फिजिक्स में ग्रेजुएशन करने के बाद सिविल सेवा में आ गए. उन्हें बिहार काडर आवंटित हुआ था. वे नालंदा, मुजफ्फरपुर और गया के जिलाधिकारी पद पर भी रह चुके हैं.
झारखंड बनने के बाद उनका काडर ट्रांसफर हो गया. झारखंड में नक्सलवाद खत्म करने के लिए उन्होंने कई बड़े अभियान चलाए. 2015 में गौबा को झारखंड का मुख्य सचिव बनाया गया. हालांकि, वे जल्द ही केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर आ गए.
गौबा पहले शहरी विकास मंत्रालय में सचिव बनाए गए और फिर गृह मंत्रालय में आए. गृह मंत्रालय में आने के बाद गौबा काफी पावरफुल हो गए.
3. अमित खरे- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सलाहकार अमित खरे की गिनती भी पावरफुल ब्यूरोक्रेट्स में होती है. 30 सितंबर 2021 को भारतीय प्रशासनिक सेवा से रिटायर होने के बाद केंद्र सरकार ने खरे को प्रधानमंत्री का सलाहकार नियुक्त किया.
खरे 1985 बैच के आईएएस अधिकारी रहे हैं. शुरुआत में उन्हें बिहार काडर मिला था, लेकिन झारखंड बनने के बाद वे वहां शिफ्ट हो गए. सैंट स्टीफंस औरआईआईएम धनबाद से अपनी पढ़ाई पूरी करने वाले अमित की छवि एक गंभीर प्रशासक की रही है.
वे पटना, दरभंगा, चायबासा और बेगूसराय के जिलाधिकारी भी रह चुके हैं. चायबासा के डीएम रहते वक्त उन्होंने चारा घोटाले का खुलासा किया था, जिसमें 2 पूर्व मुख्यमंत्री भी आरोपी बनाए गए थे.
झारखंड के वित्त विभाग और शिक्षा विभाग में सचिव रहने के बाद अमित केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर आ गए. केंद्र सरकार में पहले उन्हें सूचना प्रसारण मंत्रालय का सचिव बनाया गया और फिर मानव संसाधन विकास विभाग का. 2021 में वे मानव संसाधन विकास विभाग के सचिव पद से रिटायर हुए.
नई शिक्षा नीति-2020 और आइटी रुल्स-2021 के प्रावधानों को बनाने में भूमिका के लिए भी अमित खरे चर्चा में रहे हैं.
4. प्रमोद कुमार मिश्रा- प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव प्रमोद कुमार मिश्रा उर्फ पीके मिश्रा की गिनती सरकार में टॉप ब्यूरोक्रेट्स में होती है. मिश्रा को 2008 में पहली बार सेवा विस्तार मिला था. इसके बाद से वे लगातार सेवा विस्तार पर ही हैं. 2019 में मिश्रा को प्रधानमंत्री का प्रधान सचिव बनाया गया. मिश्रा मूल रूप से ओडिशा के संबलपुर के रहने वाले हैं.
1972 बैच के गुजरात काडर के अधिकारी पीके मिश्रा 2014 में प्रधानमंत्री के अतिरिक्त सचिव बनाए गए थे. उन्हें प्रधानमंत्री का काफी करीबी माना जाता है. गुजरात काडर में रहने के दौरान वे 2001-2004 तक मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव भी रह चुके हैं. उस वक्त नरेंद्र मोदी ही गुजरात के मुख्यमंत्री थे.
कहा जाता है कि मिश्रा पहली बार मोदी के गुडलिस्ट में भुज भूकंप के दौरान आए. 2004 में वे शरद पवार के साथ केंद्रीय कृषि मंत्रालय में भी रहे. गुजरात में बिजली और कृषि के क्षेत्र में उन्होंने कई ऐतिहासिक काम किए, जिसे बीजेपी ने गुजरात मॉडल के रूप में भुनाया.
सेवा विस्तार का नियम क्या है?
कार्मिक मंत्रालय के मौलिक नियम या एफआर 56 (डी) के मुताबिक, 'किसी भी सरकारी कर्मचारी को 60 वर्ष की सेवानिवृत्ति की आयु से अधिक सेवा में विस्तार नहीं दिया जाएगा.' हालांकि, इसमें एक अपवाद जोड़ा गया है.
इसके तहत केंद्र सरकार को रक्षा सचिव, विदेश सचिव, गृह सचिव, खुफिया ब्यूरो के निदेशक सहित अनुसंधान और विश्लेषण विंग के सचिव और कई अन्य अधिकारियों की सेवा अवधि में विस्तार देने की अनुमति दी गई है. अखिल भारतीय सेवा (मृत्यु-सह-सेवानिवृत्ति लाभ) नियम, 1958 के नियम 16(1ए) में भी इसी तरह का प्रावधान है.
अधिकांश अधिकारियों को इन्हीं नियमों के तहत सेवा विस्तार मिल जाता है.