लोकसभा चुनाव 2024 के लिए अभी से गोलबंदी शुरू हो गई है. सभी पक्ष समीकरण के हिसाब से सियासी गठबंधन तैयार करने में जुटे हैं. चुनाव में इन समीकरणों की बदौलत सियासत बदलने का दावा भी किया जा रहा है. राजनीतिक पार्टियां गठबंधन के गणित को एक-एक सीट के हिसाब से दुरुस्त कर रही है.


अब तक सत्ताधारी दल बीजेपी ने अपने पक्ष में 37 दलों को जोड़ा है, जो 5 राज्यों में काफी ज्यादा प्रभावी हैं. इसी तरह 13 राज्यों में असर रखने वाले 25 दलों को कांग्रेस ने भी जोड़ा है. कहा जा रहा है कि गठबंधन का गणित 2024 की सियासत बदल सकती है. 


इसी बीच अदालतों में लंबित उन मामलों ने भी राजनीतिक दलों की धड़कनें बढ़ा दी है, जिस पर 2024 से पहले फैसला आ सकता है. सियासी जानकारों का कहना है कि अदालतों में लंबित कम से कम 5 ऐसे मामले हैं, जो 2024 के चुनाव को प्रभावित कर सकते हैं.


कुछ मामले तो ऐसे हैं, जो पूरी सियासत का रूख ही मोड़ सकते हैं.इस स्टोरी में ऐसे ही 5 मामलों के बारे में विस्तार से जानते हैं...


1. जातीय जनगणना (सर्वे) का मामला
बिहार में जातीय सर्वे के सरकारी आदेश के खिलाफ पटना हाईकोर्ट में सुनवाई पूरी हो चुकी है. हाईकोर्ट से इस पर कभी भी फैसला आ सकता है. हाईकोर्ट का आदेश भले किसी पक्ष में आए, इसको सुप्रीम कोर्ट में चुनौती मिलना तय माना जा रहा है. 


हाईकोर्ट के आदेश के बाद यह मुद्दा बिहार समेत उत्तर भारत की राजनीति में उबाल ला सकती है. विपक्षी गठबंधन पहले से इसे पूरे देश में मुद्दा बनाने की बात कह चुका है. कोर्ट के फैसले के बाद जातीय जनगणना का मुद्दा अगर तूल पकड़ता है तो इसका सीधा असर 2024 के लोकसभा चुनाव पर होगा.


जातीय जनगणना का मुद्दा अन्य पिछड़ा जातियों को सीधे तौर पर हिट करता है. सीएसडीएस के मुताबिक 2014 में ओबीसी समुदाय का 34 प्रतिशत और 2019 में 44 प्रतिशत वोट बीजेपी को मिला था. हिंदी हर्टलैंड में ओबीसी समुदाय का दबदबा हैं, जहां की 225 सीटों पर बीजेपी ने एकतरफा जीत दर्ज की थी. 


जातीय जनगणना की मांग दशकों पुरानी है और अलग-अलग क्षेत्रीय पार्टियां इसे लगातार उठा रही है. राजनीतिक पार्टियों का कहना है कि जातीय जनगणना से वेलफेयर स्कीम को लागू करने में आसानी होगी. हालांकि, जानकारों का मानना है कि इससे आरक्षण का स्ट्रक्चर प्रभावित हो सकता है.


जुलाई 2022 में संसद में सरकार ने कहा कि केंद्र जातीय जनगणना नहीं करवाएगी. केंद्र की दलील उपजातियों को लेकर थी. केंद्र सरकार के इनकार के बाद जातीय जनगणना कराए जाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गई है.


2. वाराणसी स्थित ज्ञानवापी में सर्वे का मामला
वाराणसी के ज्ञानवापी मस्जिद का मामला भी कोर्ट में है. हाल ही में निचली अदालत ने एक आदेश में परिसर के भीतर एएसआई सर्वे का आदेश दिया था. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट में सुनवाई शुरू होने तक इस पर रोक लगा दी है. 


मुस्लिम पक्षों का कहना है कि प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट के तहत इन मामलों की सुनवाई ही कोर्ट में नहीं हो सकती है. अगस्त 2021 में ज्ञानवापी का विवाद कोर्ट पहुंचा था. उस वक्त पांच हिंदू श्रद्धालुओं ने वाराणसी की दीवानी अदालत में याचिका दायर की थी.


इन श्रद्धालुओं का कहना था कि परिसर के भीतर शृंगार गौरी की पूजा करने की अनुमति दी जाए. यह मामला हाईकोर्ट होते हुए सुप्रीम कोर्ट पहुंचा. सर्वोच्च अदालत ने यथास्थिति का आदेश देते हुए केस को वाराणसी जिला जज के पास ट्रांसफर कर दिया. 


ज्ञानवापी परिसर का सर्वे होगा या नहीं, कोर्ट का यह फैसला भी सियासत को बदल सकता है. जानकारों का मानना है कि ज्ञानवापी का मामला अगर तुल पकड़ता है, तो 2024 के चुनाव में यूपी और बिहार की सियासत में काफी कुछ बदल सकता है.


यूपी और बिहार में लोकसभा की कुल 120 सीटें हैं, जिसमें से 85 सीटें अभी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के पास है. दिल्ली दरबार में एंट्री के लिए यूपी-बिहार की सीटें काफी महत्वपूर्ण हैं.


3. राहुल गांधी की सदस्यता का मामला
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी को सूरत की एक अदालत ने मानहानि मामले में 2 साल की सजा सुनाई, जिसके बाद उनकी लोकसभा सांसदी चली गई. राहुल ने इस सजा के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की, लेकिन हाईकोर्ट ने उन्हें इस मामले में राहत नहीं दी. 


उलटे हाईकोर्ट ने अपने फैसले में राहुल गांधी और सख्त टिप्पणी ही कर दी. हाईकोर्ट से राहत नहीं मिलने के बाद राहुल गांधी ने सुप्रीम कोर्ट का रूख किया है. सर्वोच्च अदालत राहुल के दोषसिद्धी के खिलाफ दाखिल याचिका पर तत्काल सुनवाई करेगी. 


राहुल की सदस्यता का मामला भी राजनीति को प्रभावित कर सकता है. सुप्रीम कोर्ट अगर राहुल के दोषसिद्धी पर स्टे लगाती है, तो कांग्रेस नए सिरे से बीजेपी पर हमलावर होगी. राहुल के चुनाव लड़ने की स्थिति में दक्षिण की सियासत भी बदलेगी. 


वहीं कोर्ट अगर राहुल को राहत नहीं देती है, तो कांग्रेस का फोकस विपक्षी एका को मजबूत करने का होगा. राहुल के चुनाव नहीं लड़ने की स्थिति में गांधी परिवार से प्रियंका गांधी चुनाव लड़ सकती है. गांधी परिवार के परंपरागत अमेठी से प्रियंका के चुनाव लड़ने की अटकलें भी हैं. 


प्रियंका के चुनाव लड़ने से यूपी की सियासत में भी बहुत कुछ बदल सकता है. बता दें कि 2019 के चुनाव में मोदी को चोर कहने पर बीजेपी विधायक नीरव मोदी ने मानहानि का केस दाखिल किया था. 


इसी मामले में सूरत कोर्ट ने राहुल गांधी को 2 साल की सजा सुना दी. राहुल को अगर कोर्ट राहत नहीं देती है, तो वे 2031 तक चुनाव नहीं लड़ पाएंगे. 


4. जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 का मामला
जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के खिलाफ दाखिल 20 याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट रेगुलर सुनवाई करेगा. 2 अगस्त कोर्ट की संवैधानिक बेंच में मामले की सुनवाई होगी. कोर्ट ने सभी पक्षों से 27 जुलाई तक अपनी लिखित दलीलें सौंपने के लिए कहा है. 


हाल ही में केंद्र सरकार ने एफिडेविट जमा कर कहा था कि आतंकवाद पर कंट्रोल के लिए जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को खत्म किया गया. केंद्र ने कहा कि 370 हटने के बाद टेरर नेटवर्क पूरी तरह से तबाह हो गया. अब पत्थरबाजी की घटना अतीत का हिस्सा है. 


2019 में केंद्र के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी. याचिकाकर्ताओं का कहना था कि अनुच्छेद 370 अंवैधानिक तरीके से खत्म किया गया है. याचिकाकर्ताओं का दलील है कि विधानसभा की राय लिए बिना यह नहीं किया जा सकता है.


अनुच्छेद 370 पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला 2024 की सियासत बदल सकती है. बीजेपी इसे फिर से भुनाने की कोशिश करेगी. गठन के वक्त से ही पार्टी के मैनिफेस्टों में यह मुद्दा शामिल रहा है. 


अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर को विशेष प्रावधान मिला हुआ था. इसके तहत रक्षा, विदेशी, वित्त और संचार के मामलों को छोड़कर भारत का कोई भी कानून लागू करने के लिए जम्मू-कश्मीर सरकार बाध्य नहीं है. अगस्त 2019 में केंद्र ने इसे खत्म कर दिया.


केंद्र ने 370 खत्म करने के साथ-साथ जम्मू-कश्मीर को एक केंद्रशासित प्रदेश बना दिया. इतना ही नहीं कश्मीर से लद्दाख को अलग कर उसे भी केंद्र शासित प्रदेश घोषित कर दिया. 


5. दिल्ली में 'शक्ति' को लेकर जारी विवाद
दिल्ली सरकार को शक्ति देने के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ केंद्र ने अध्यादेश जारी किया है. इस अध्यादेश के खिलाफ भी सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच सुनवाई करेगी. कोर्ट ने कहा है कि वो 2 सवालों का जवाब ढूंढेगी. 


पहला, दिल्ली के लिए कानून बनाने की संसद की शक्तियों की सीमाएं क्या हैं? और दूसरा, क्या संसद अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए प्रशासनिक सेवाओं पर नियंत्रण वापस लेने के संबंध में कानून बनाकर दिल्ली सरकार के लिए 'शासन के संवैधानिक सिद्धांतों को निरस्त' कर सकती है?


मई में कोर्ट ने सर्विस का अधिकार दिल्ली सरकार को दिया था. कोर्ट ने कहा था कि सरकार को लोगों ने चुना है, इसलिए उनके पास भी कुछ अधिकार होने चाहिए. कोर्ट ने कहा कि उपराज्यपाल सरकार की सलाह पर ही काम करें. 


बाद में सुप्रीम फैसले को केंद्र ने अध्यादेश के जरिए पलट दिया. केंद्र ने कहा कि दिल्ली राजधानी है और अगर अध्यादेश नहीं लाते तो यहां की प्रशासनिक व्यवस्था ध्वस्त हो जाती. 


विपक्षी गठबंधन ने अध्यादेश को असंवैधानिक बताया है और केंद्र पर जबरन राज्य हित के साथ समझौता का आरोप लगाया है. इस मामले में कोर्ट का फैसला 2024 की सियासत बदल सकती है.